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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 इस मन की साधारण जकड़ को अपने ही जीवन के अनुभव में खोजना चाहिए। जब भी कुछ घटता है, आप तत्क्षण दूसरे को जिम्मेवार ठहरा देते हैं। मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी अपने वकील के पास गयी थी / और उससे बोली कि अब बहुत हो चुका, और अब आगे सहना असंभव है। अब तलाक का इंतजाम करवा ही दें। उसके वकील ने पूछा कि ऐसा क्या कारण आ गया है? तो उसने कहा कि मुल्ला नसरुद्दीन विश्वासघाती है। उसने मुझे धोखा दिया है। निश्चित ही उसके दूसरी स्त्रियों से संबंध हैं। और, अब और सहना असंभव है। वकील ने पूछा, 'कोई प्रमाण ? क्योंकि प्रमाण की जरूरत होगी / और कैसे तुम्हें पता चला, इसका कोई ठीक-ठीक सबूत, कोई गवाह?' उसकी पत्नी ने कहा, 'किसी गवाह की कोई जरूरत नहीं है। आइ ऐम प्रेटी श्योर दैट ही इज नॉट दि फादर ऑफ माइ चाइल्ड–पूर्ण निश्चय है मुझे कि मेरे बच्चे का पिता मुल्ला नसरुद्दीन नहीं है।' लेकिन हमारा जैसा मन है, उसमें हम सदा दूसरे को ही जिम्मेवार ठहराते हैं। हम दूसरे को परदे की तरह बना लेते हैं और जो कुछ भी है उसे प्रोजेक्ट करते हैं, उसे परदे पर डालते चले जाते हैं। धीरे-धीरे प्रोजेक्टर तो दिखाई पड़ना बंद हो जाता है.... / ___ आप फिल्म गृह में बैठते हैं, तो आप पीछे लौटकर कभी नहीं देखते जहां असली फिल्म चल रही है; परदे पर ही देखते रहते हैं, जहां केवल छाया पड़ रही है। प्रोजेक्टर तो आपकी पीठ के पीछे लगा होता है-जहां से फिल्म आ रही है; जहां से प्रकाश की किरणें आ रही हैं, लेकिन दिखाई परदे पर पड़ती हैं। आप वहीं देखते रहते हैं। परदा सब कुछ हो जाता है, जो मूल नहीं है। ___ हर दूसरा व्यक्ति, जिससे हम संबंधित होते हैं, परदे का काम करता है। भीतर से वृत्तियां आती हैं, जो हम उस पर ढालते चले जाते हैं। इसलिए जो हमारे निकट होते हैं, वे ही हमारे लिए परदा बन जाते हैं। और फिर हम यह भूल ही जाते हैं कि हमारे भीतर कुछ घट रहा है, जो उनमें दिखाई पड़ता है; उनकी आंखों में, उनके चेहरों में, उनके व्यवहार में। यह सारा जगत एक परदा है और सारे संबंध परदे हैं और प्रोजेक्टर हमारा अपना मन है। और अगर इस परदे पर हम कुछ बदलाहट करना चाहें तो असंभव है। अगर कोई भी बदलाहट करनी हो तो पीछे प्रोजेक्टर को ही बदलना होगा, जहां से स्रोत है। धर्म की खोज ही तब शुरू होती है, जब मैं परदे को भूलकर उसे देखना शुरू कर देता हूं जहां से मेरे जीवन का स्रोत है; जहां से सारी वृत्तियां आ रही हैं और जग रही हैं। जैसे ही मुझे यह दिखाई पड़ने लगता है कि मैं ही जिम्मेवार हूं, सुख और दुख मैं ही पैदा कर रहा हूं, मेरे संबंध भी मेरे ही भीतर से आ रहे हैं, दूसरा केवल बहाना है, वैसे ही व्यक्ति कामवृत्ति के ऊपर उठना शुरू हो जाता है। लेकिन, जीवन के गणित को पकड़ने में थोड़ी सी कठिनाई है। एक स्त्री को आप प्रेम करते हैं, दुख पाते हैं; कलह है, संघर्ष है। बाइबिल में पुरानी कथा है—बाइबिल में दो कथाएं हैं—एक कथा आपने सुनी है, दूसरी आमतौर से प्रचलित नहीं है; उसे भुला दिया गया है। एक कथा है कि परमात्मा ने अदम को बनाया और अदम के साथ ही लिलिथ नाम की स्त्री को बनाया। दोनों को एक सा बनाया. नाया। बनाकर वह निपटा भी नहीं था कि दोनों में झगड़ा शुरू हो गया। झगड़ा इस बात का था कि कौन ऊपर सोये, कौन नीचे सोये। लिलिथ ने कहा : मैं तुम्हारे समान हूं। मुझे भी परमात्मा ने बनाया है, और उसी मिट्टी से बनाया है जिस मिट्टी से तुम्हें बनाया। और मेरे भी प्राणों में श्वास डाली; और तुम्हारे भी प्राणों में श्वास डाली; हम दोनों एक के ही निर्माण हैं और एक ही मिट्टी और एक ही प्राण से बने हैं। तो नीचे-ऊपर कोई भी नहीं है। 534 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340053
Book TitleMahavir Vani Lecture 53 Antasa Bahya Sambandho se Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size73 MB
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