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________________ संयम है संतुलन की परम अवस्था का सबसे श्रेष्ठ रूप है। इन्द्रियों को भोगने की जो पराकाष्ठा है, वह इन्द्र है। __ और बड़े मजे बात है; उसने भी बड़ी तपश्चर्या से यह अवस्था पायी है। इसलिए जब भी कोई दूसरा वैसी तपश्चर्या करने लगता है, इन्द्र घबड़ा जाता है। तब वह क्या करता है, तब वह उर्वशी को या किसी और अप्सरा को भेजता है कि जाकर जरा इस साधु महाराज को थोड़ा डिगाओ; इन्हें थोड़ा हिलाओ, मेरा सिंहासन हिल रहा है- इन्हें थोड़ा हिलाओ तो मेरा सिंहासन थिर हो जाये। यह आदमी प्रतियोगी मालूम पड़ता है। __ और बड़ा मजा यह है कि अप्सराएं साधु-महात्माओं को डिगा जाती हैं। ये उसी साधु-महात्मा को डिगा सकती हैं, जिसने भीतर के बोध से संयम को नहीं पाया है; जो भीतर तो अंधेरे में खड़ा है, जिसने बाहर से जबरदस्ती थोप लिया है। ___ तो आप स्त्रियों से बच सकते हैं थोपकर, अप्सराओं से नहीं बच सकते; क्योंकि अप्सराएं बाहर खड़ी नहीं होती, मन में खड़ी होती हैं। अप्सराएं कल्पना के रूप हैं। इसलिए जो साधु जिस चीज का दमन करता है, उसी के सपने आने शुरू हो जाते हैं। ___ अब यह बड़े मजे की बात है, जिन समाजों में...जैसे यहूदी हैं, वे अपने साधु को भी विवाह का मौका देते हैं। तो एक भी यहूदी संत के जीवन में ऐसा उल्लेख नहीं है कि जब वह परमज्ञान के पास आया, तो अप्सराओं ने उसे परेशान किया। करने का कोई कारण नहीं है। अप्सराएं पहले ही काफी परेशान कर चुकी हैं। अब कोई अप्सरा परेशान नहीं कर सकती।। __तो यहूदी धर्म एक बहुत वैज्ञानिक बात मानता है कि उसके पुरोहित तो शादी-शुदा होने ही चाहिए; उनका संत तो शादी-शुदा होना ही चाहिए, नहीं तो वह स्त्रियों के पार नहीं जा पायेगा। और तब फिर आखिर में स्त्रियां सताती हैं। . जिन-जिन धर्मों ने स्त्री से बचने को संयम का प्राथमिक चरण बना दिया, उन-उन धर्मों में स्त्रियां सताती हैं। निश्चित ही कोई कारण कारण साफ है : जो दबाया जाता है बाहर से, वह भीतर से उभरना शुरू हो जाता है। जिसे हम बाहर से छोड़ देते हैं, वह भीतर कल्पना में, स्वप्न में पकड़ लेता है। वह वहां सताने लगता है। अप्सराएं कहीं आती नहीं बाहर से। उनके धुंघरू ऋषियों को ही सुनाई पड़ते हैं। उन्हीं के पास ग्वाले अपनी गायें चरा रहे हैं, उनको सुनाई नहीं पड़ते; उनको दिखाई नहीं पड़तीं वे अप्सराएं-ऋषि ही परेशान होते हैं। दमित वासना विकृत होकर स्वप्न बन जाती है। जो अपने को उपवास की साधना में लगा देते हैं बिना भीतर के ज्ञान के, उनको भोजन सताने लगता है। उनके सारे स्वप्न भोजन से भर जाते हैं। आप जरा किसी दिन उपवास करके देखें, बात साफ हो जायेगी। दिन में उपवास करें, रात सम्राट, जो अब बचे ही नहीं, वे आपको निमंत्रण देंगे-राज-भोज! वहां छप्पन प्रकार के व्यंजन आपके लिए तैयार ये छप्पन प्रकार के व्यंजन ऋषि-मुनियों ने देखे नहीं, सिर्फ उपवास में इन्हें दिखाई पड़े हैं। यह कहीं हैं नहीं। फिर उनका रंग और उनकी सगंध-बात ही और है! वह अलौकिक है। वह इस लोक की है नहीं। इस पृथ्वी से उसका कोई संबंध नहीं है। दमित चित्त विकत हो जाता है। महावीर की साधना में कहीं भी दमन नहीं है-बोध पर जोर है, विवेक पर जोर है, जागरूकता पर जोर है। लेकिन यह हुआ नहीं है। उनकी परंपरा में जो हुआ है, वह दमन है। और जितना उनके पीछे चलनेवालों ने दमन किया, इस जमीन पर किसी दूसरी धार्मिक परंपरा ने नहीं किया। जितना दमित जैन साधु है, उतना दमित कोई भी नहीं है। दमन आसान है, जागरण कठिन है। जो आसान है वह हम कर लेते हैं, जो कठिन है उसे बाद के लिए पोस्टपोन करते चले जाते 529 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340052
Book TitleMahavir Vani Lecture 52 Samay hai Santulan ki Param Avastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size80 MB
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