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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 नहीं है। उसकी भीतर की आंख जहां उसे ले जायेगी, वही ठीक है। ___ यह भारतीय और गैर-भारतीय धर्मों के बीच बुनियादी फर्क है। इस्लाम या ईसाइयत दोनों इस अर्थों में नैतिक धर्म हैं। उनका सारा आधार नीति पर है। जैन, बौद्ध और हिंदू इस अर्थ में अति-नैतिक धर्म हैं, सुपर मारल धर्म हैं। उनका आधार नीति पर नहीं है। उनकी सारी फिक्र इस बात की है कि भीतर की चेतना परिशुद्ध हो। और अगर भीतर की चेतना परिशुद्ध है, तो आचरण अपने आप परिशुद्ध हो जायेगा। ___ आचरण को नहीं बदलना है, अंतरात्मा को बदलना है। आप क्या करते हैं, वह मूल्यवान नहीं है। आप क्या हैं, वही मूल्यवान है। आपके डूइंग का बहुत मूल्य नहीं है, आपके बीईंग का, आपके अस्तित्व का मूल्य है। और गलत अस्तित्व हो भीतर और ठीक आचरण हो, तो सिवाय पाखंड के कुछ भी नहीं है। और ठीक अस्तित्व हो भीतर, तो गलत आचरण के होने का कोई उपाय नहीं है। यह मौलिक भेद है धर्म और नीति का। नीति सामाजिक व्यवस्था है। इसलिए अधार्मिक समाज में भी नीति की जरूरत होगी। सोवियत रूस धर्म से इनकार कर सकता है, नीति से नहीं। उसको भी नैतिक नियम बनाने पड़े। आदमी कैसा व्यवहार करे, इसकी चिंता नास्तिक को भी करनी पड़ेगी। अगर पूरी पृथ्वी भी नास्तिक हो जाये, तो नीति नष्ट नहीं होगी। नीति तो रहेगी, धर्म नष्ट हो जायेगा। और अगर पूरी पृथ्वी धार्मिक हो जाये, तो नीति की कोई जरूरत न रहेगी। वह ऊपरी खोल की तरह फेंकी जा सकती है। अगर लोग सच में भीतर से अच्छे हों, तो बाह्य आचरण, नियम, व्यवस्था की कोई भी आवश्यकता नहीं है। जितनी हमें बाहर की व्यवस्था करनी पड़ती है, उतनी ही खबर मिलती है कि भीतर हम विकृत और रुग्ण हैं। वह जो सड़क पर खड़ा हुआ पुलिस का सिपाही है, अदालत में बैठा हुआ मजिस्ट्रेट है, वह आपकी वजह से वहां बैठा है; चूंकि आप गलत हैं। अगर लोग ठीक हों तो पुलिस वाले और मजिस्ट्रेट की कोई जरूरत नहीं। वह विदा हो जायेगा। उसे रखना फिजूल हो जायेगा; व्यर्थ हो जायेगा। कानून इसलिए हैं कि आप गलत हैं। ___ लाओत्से ने कहा है, नीति का जन्म तभी होता है, जब धर्म खो जाता है। जब भीतर का ताओ नष्ट हो जाता है, तो बाहर आचरण का हमें इंतजाम करना पड़ता है। जब प्रेम नहीं होता तो कर्तव्य को जगह देनी पड़ती है। ___ एक बेटा अपनी मां की सेवा कर रहा हो। अगर यह प्रेम के कारण है तो बेटा यह कभी भी नहीं कहेगा कि मेरा कर्तव्य है, इसलिए मैं मां की सेवा करता हूं। प्रेम के लिए ड्यूटी और कर्तव्य से ज्यादा कुरूप और भद्दा कोई शब्द नहीं है। प्रेम, इसलिए सेवा करता है कि सेवा आनंद है। जब प्रेम नहीं रह जाता, तो फिर बेटे को समझाना पड़ता है कि तुम्हारा कर्तव्य है, कि तुम मां की सेवा करो; तुम्हारी मां है; उसने तुम्हें जन्म दिया है, उसने तुम्हें बड़ा किया है; कि बूढ़े बाप के पैर दबाओ, यह तुम्हारा कर्तव्य है। और जब भी आप कहने लगते हैं, 'मेरा कर्तव्य है' तब आप समझना कि भीतर का प्रेम खो गया। ___ एक पति कहता है कि मैं पत्नी के लिए काम कर रहा हूं; नौकरी कर रहा हूं; धन कमा रहा हूं क्योंकि कर्तव्य है, ड्यूटी है-इसका अर्थ हुआ कि प्रेम समाप्त हो गया। जो पति प्रेम में है वह यह भूलकर भी सोच नहीं सकता कि यह कर्तव्य है। वह कहेगा, यह मेरा आनंद है। जिसे मैं प्रेम करता हूं, उसके लिए मैं सब कुछ करूंगा। यह मेरा आनंद है, कर्तव्य नहीं; करने योग्य नहीं है, यही मेरा रस है। अगर मैं न करूं तो दुखी होऊंगा, करता है तो आनंदित है। कर्तव्य वाले आदमी को अगर मौका मिल जाये कर्तव्य से बचने का, तो वह सुखी होगा। तो अगर वह नर्स को खोज सके मां की सेवा के लिए, तो नर्स को लगाना पसंद करेगा; क्योंकि कर्तव्य ही है। और नर्स कर्तव्य आपसे ज्यादा बेहतर ढंग से कर सकेगी-ट्रेंड है, प्रशिक्षित है। अगर मां अपने बेटे को इसलिए पाल रही है, क्योंकि कर्तव्य है, तो उचित होगा कि वह दाई को रख ले। दाई वह 488 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340051
Book TitleMahavir Vani Lecture 51 Pahle Gyan Bad me Daya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size86 MB
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