SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-वाणी भाग : 2 तब तक उस रेलगाड़ी ने सब गड़बड़ कर दिया। वे पानी में खड़ी हैं। वह रेलगाडी चली गयी।' नसरुद्दीन कहता है, 'कभी तो रेलगाड़ी लेट होगी। मैं यहां से हटनेवाला नहीं हूं, कब तक ठीक वक्त पर आती चली जायेगी ! एक सेकेंड भी लेट हो गयी कि...! आदमी पाप के लिए बिलकुल आतुर है / महावीर इस पाप की आतुरता को 'आस्रव' कहते हैं / जैसे होश बढ़ता है, वैसे ही ये आस्रव क्षीण होने लगते हैं। 'जो चंचल इंद्रियों का दमन कर चुका है...।' यह 'दमन' शब्द समझ लेना जरूरी है। क्योंकि जिन अर्थों में महावीर ने ढाई हजार साल पहले इसका उपयोग किया, उस अर्थ में आज इसका उपयोग नहीं होता / दमन का आज अर्थ होता है, रिप्रेशन और फ्रायड ने इसका अलग अर्थ साफ कर दिया है, किसी चीज को दबा लेने का नाम दमन है। __ महावीर के लिए दमन का अर्थ था : किसी चीज का शांत हो जाना / दम का अर्थ है : शांत हो जाना / दमन का अर्थ है, कोई चीज इतनी शांत हो गयी कि अब आप में हिलती-डुलती नहीं। महावीर के लिए दमन का अर्थ दमन नहीं था. रिप्रेशन नहीं था। महावीर के लिए अर्थ था : किसी चीज का बिलकुल शांत हो जाना, निर्जीव हो जाना। तो जिसकी चंचल इंद्रियां इतनी शांत हो गयी हैं। वह जैसे ही होश बढ़ता है, चंचल इंद्रियां शांत हो जाती हैं। उनकी चंचलता हमारी बेहोशी के कारण है / जैसे हवा चलती है तो वृक्ष के पत्ते कंपते हैं; हवा रुक जाती है तो पत्ते रुक जाते हैं। आप पत्तों को रोककर हवा को नहीं रोक सकते / कि एक-एक पत्ते को पकड़कर रोकेंगे? और पत्ते आप पकड़कर रोक भी लें तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा-हवा चल रही है। पत्तों को रोकना बिलकुल पागलपन होगा, क्योंकि हवा धक्के मारती ही रहेगी। हवा रुक जाये, पत्ते रुक जाते हैं। __ आपकी इंद्रियां चंचल हैं, क्योंकि भीतर मूर्छा है, हवा चल रही है / मूर्छा में चंचलता होगी। सिर्फ होश में स्थिरता हो सकती है। तो जैसे ही भीतर की हवा चलनी बंद हो जाती है, इंद्रियां थिर हो जाती हैं। कोई इंद्रियों को थिर करके मूर्छा से नहीं ऊपर उठता, लेकिन मुर्छा से ऊपर उठ जाये तो इंद्रियां थिर हो जाती हैं। 'चंचल इंद्रियों का जो दमन कर चुका है...।' जो पार हो चुका है इंद्रियों की अशांति के, और इंद्रियां शांत हो गयीं-उसे पाप-कर्म का बंधन नहीं होता / 'पहले ज्ञान है, बाद में दया-पढमं नाणं तओ दया।' * यह सूत्र बड़ा अदभुत है। और जैन इस सूत्र को बिलकुल भी नहीं समझ पाये या बिलकुल ही गलत समझे / इस सूत्र से क्रांतिकारी सूत्र खोजना कठिन है-पहले ज्ञान बाद में दया / महावीर कहते हैं : अहिंसा पहले नहीं हो सकती-पहले आत्मज्ञान है। पहले भीतर का ज्ञान न हो, तो जीवन का आचरण दयापूर्ण नहीं हो सकता; अहिंसापूर्ण नहीं हो सकता। क्योंकि जिसके भीतर ज्ञान का ही उदय नहीं हुआ, उसके जीवन में हिंसा होगी ही / वह लक्षण है। उसे हम ठीक से समझ लें। . ___ एक आदमी को बुखार चढ़ा है। शरीर का गर्म हो जाना लक्षण है, बीमारी नहीं है / लेकिन कोई नासमझ यह कर सकता है कि ठंडे पानी से इसको नहलाओ ताकि इसकी गर्मी कम हो जाये; बीमारी ठीक हो जायेगी / बुखार बीमारी नहीं है, बुखार तो केवल लक्षण है। बीमारी तो भीतर है / उस बीमारी के कारण शरीर उत्तप्त है। क्योंकि शरीर के कोष्ठ आपस में लड़ रहे हैं। शरीर में एक संघर्ष छिड़ा है। शरीर में कोई विजातीय जीवाणु प्रवेश कर गये हैं, और शरीर के जीवाणु उन जीवाणुओं से लड़ रहे हैं। उस लड़ने के कारण गर्मी पैदा 500 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340051
Book TitleMahavir Vani Lecture 51 Pahle Gyan Bad me Daya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size86 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy