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________________ पहले ज्ञान, बाद में दया फिर आगे नहीं बढ़ा जाता / जिस फिल्म में सभी कुछ शुभ हो, उसे देखने कोई जायेगा ही नहीं। अशुभ हमें खींचता है / जिस कहानी में सिर्फ संतों की चर्चा हो, उसमें कुछ कहानी जैसा न रह जायेगा। आस्कर वाइल्ड ने कहा है : अच्छे आदमियों का कोई चरित्र ही नहीं होता। उसने ठीक कहा है। अच्छे आदमी का कोई चरित्र नहीं होता, चरित्र बुरे आदमी का होता है / इसलिए अच्छे आदमी के आसपास कहानी खड़ी नहीं हो सकती-चरित्र ही नहीं है ! बरे आदमी के आसपास कहानी खड़ी होती है। ___ अच्छा आदमी निश्चरित्र होता है, ऐसा समझना चाहिए-शून्य होता है; खाली होता है। कुछ घटना उसके आसपास घटती नहीं। न हत्या होती है, न चोरी होती है, न बेईमानी होती है—कुछ नहीं होता / वह खाली होता है, जैसे न होता, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। अच्छा आदमी हट जाये तो कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि अच्छा आदमी कुछ कर ही नहीं रहा है। ___ महावीर कहते हैं : जैसे ही होश बढ़ना शुरू होता है, वैसे ही पाप के प्रति जो हमारा प्रबल आकर्षण है, जो आस्रव है, जो हमें खींच रहा है और हम खिंचे जा रहे हैं, वह गिरने लगता है। पाप के प्रति हमारी रुचि क्षीण होने लगती है। आप चाहे पाप न कर रहे हों, लेकिन कोई पाप करता है, उसमें आपका रस है / वह रस भी पाप करने जैसा ही है। वह पाप है प्राक्सी के द्वारा / दूसरे के माध्यम से आप पाप का मजा ले रहे हैं। __ आपने देखा, फिल्म देखते वक्त आप आइडेंटिफाइड हो जाते हैं किसी पात्र से, आप एक हो जाते हैं किसी पात्र से। और वह पात्र आपके जीवन को जीने लगता है। आप अपने भीतर से जो निकालना चाहते थे और नहीं निकाल पाये हैं, वह आप उस पात्र में निकालते हैं। यह प्राक्सी से जीवन है। यह अभिनेता के माध्यम से आप काम कर रहे हैं। इसमें आपका निकास होता है—मनोवैज्ञानिक कहते हैं, कैथारसिस होता है / वे ठीक कहते हैं। अगर आप खून से भरी फिल्म, हत्याओं से भरी फिल्म देखकर घर लौटते हैं, तो आपकी खुद की हत्या करने की वृत्ति और खून करने की वृत्ति थोड़ी-सी राहत पाती है। किसी के द्वारा आपने यह काम कर लिया। घर आप हलके होकर लौटते हैं। ___ मनोवैज्ञानिकों का तो कहना है कि यह फिल्में हत्या आप में बढ़ाती नहीं, कम करती हैं। उनकी बात में सत्य हो सकता है। क्योंकि ये आपको थोड़ा-सा हत्या करने का मौका दे देती हैं; और बिना किसी झंझट के, बिना किसी अपराध में फंसे। थोड़े-से पैसे फेंककर और तीन घंटे अपराध करके आप घर वापस आ जाते हैं। क्या आपने देखा है, अगर फिल्म में कोई अश्लील, कामुक दृश्य हो, तो आप कामोत्तेजित हो जाते हैं। उसका अध्ययन नहीं किया गया—किया जाना चाहिए। लोगों पर यंत्र लगाये जा सकते हैं, जो उनके मस्तिष्क की खबर दें। जब कोई नग्न स्त्री चित्र में आती है, तो आप कामोत्तेजित हो जाते हैं। वह कामोत्तेजना एक तरह का संभोग है-प्राक्सी...। मुल्ला नसरुद्दीन एक फिल्म में बैठा हआ है। खब पी गया है। पहला शो खत्म हो गया है, लेकिन वह वहां से हटता नहीं। नौकर आकर उसे कहते हैं कि यह शो खत्म हो गया है / वह कहता है, दूसरी टिकट लाकर यहीं दे दो। दूसरा शो भी खत्म हो गया। वह कहता है, तीसरी टिकट भी लाकर... / मैनेजर भागा हुआ आता है... आप होश में हैं, नसरुद्दीन?' नसरुद्दीन कहता है कि जरा कुछ कारण है। मैनेजर पूछता है, 'कारण क्या है ?' 'फिल्म में एक दृश्य है कि कुछ स्त्रियां कपड़े उतारकर तालाब में कूदने की तैयारी कर रही हैं / वे बिलकुल उन्होंने कपड़े उतार दिये हैं। आखिरी कपड़ा उतारने को रह गया है और तभी एक रेलगाड़ी दृश्य को ढांक लेती है। पानी में कूदने की आवाज आती है, लेकिन 499 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340051
Book TitleMahavir Vani Lecture 51 Pahle Gyan Bad me Daya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size86 MB
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