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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 का बहुत साफ है कि जब कोई मारने से मरता ही नहीं, मारा नहीं जाता, तो अर्जुन, तू फिजूल की बकवास में क्यों पड़ा है कि लोग मर जायेंगे? यह अज्ञान है। __ बड़ा कठिन है। महावीर भी जानते हैं कि आत्मा मरती नहीं; आत्मा मिट नहीं सकती / सच तो यह है कि कृष्ण से भी ज्यादा महावीर का मानना है कि आत्मा को मिटाने का कोई उपाय नहीं है। क्योंकि कृष्ण तो कहते हैं, परमात्मा की लीला है कि वह बनाता है और चाहे तो मिटा सकता है। महावीर के लिए तो कोई मिटानेवाला भी नहीं है। परमात्मा भी नहीं है। आदमी की तो सामर्थ्य नहीं है। को न कोई पैदा करता है, और न कोई मिटा सकता है। आत्मा शाश्वत है; अमृतत्व उसका गण है। फिर भी महावीर कहते हैं—हिंसा और अहिंसा / तो समझ लें इस संदर्भ में। महावीर कहते हैं कि जब तुम हिंसा करते हो, तो तुम दूसरे को नहीं मारते, लेकिन हिंसा के भाव से खुद के लिए दुख पैदा करते हो। तुम मारने की धारणा बनाते हो, उस धारणा से ही तुम पीड़ित होते हो / दूसरे के मरने से पाप नहीं होगा। क्योंकि दूसरा मर नहीं सकता। लेकिन तुमने पाप करना चाहा / तुम पाप के विचार से भरे / तुमने दूसरे को नुकसान पहुंचाना चाहा; उसका जीवन छीन लेना चाहा / तुम नहीं छीन पाते। यह तुम्हारे हाथ की बात नहीं है। यह जगत का नियम है। लेकिन तुमने अपनी पूरी कोशिश की। उस कोशिश, उस विचार, उस भावना, उस वासना, उस दुष्ट वासना के कारण तुम अपने लिए दुख पैदा करोगे। हिंसा दुख लायेगी-दूसरे के लिए मृत्यु नहीं, तुम्हारे लिए दुख / अहिंसा दूसरे को बचायेगी नहीं, क्योंकि दूसरा बचा हुआ है अपने आंतरिक जीवन से। कोई उसे बचा नहीं सकता। लेकिन दूसरे को बचाने की धारणा तुम्हारे जीवन में सुख के फूल खिलायेगी। हावीर कहते हैं. तम जो भी करते हो. वह तम्हीं को हो रहा है और निरंतर तम्हीं को होता चला जाता है। तो दसरे कैसे हैं अच्छे या बुरे-इसका विचार नहीं करना / अच्छे हैं तो अपने कारण; बुरे हैं तो अपने कारण / यह उनकी निजी बात है। इससे दूसरों को कोई लेना-देना नहीं है / वे नर्क जायेंगे कि स्वर्ग जायेंगे, यह उनकी चिंता है। इसमें दूसरों को चिंता लेने का कोई कारण नहीं है। जो दूसरों की चिंता छोड़कर अपने सुधार की चिंता करता है...। हम सारे लोग बड़े सुधारक हैं / हम जैसा सुधारक खोजना मुश्किल है। हम सारे जगत को भी सुधारने में लगे रहते हैं सिर्फ अपने को छोड़कर / और अपने को सुधारने का कोई सवाल ही नहीं है। क्योंकि वहां हम सोचते हैं, सुधरे ही हुए हैं। सारा जगत बिगड़ा हुआ मालूम पड़ता है। इसलिए सुधारो / इसलिए सुधार करनेवाले लोग जितना मिसचीफ पैदा करते हैं दुनिया में, कोई दूसरा पैदा नहीं करता। ये असली उपद्रवी हैं। ये किसी को चैन से नहीं रहने देते / ये सभी को बदलने में लगे हैं। ये हर हालत में बदल के रहेंगे / इनका रस सचमुच बदलने में नहीं है कि कोई अच्छी दुनिया पैदा हो / इनका रस बदलने की प्रक्रिया में है। क्योंकि जब ये बदलते हैं किसी को, तो तोड़ते हैं; मिटाते हैं; नया करते हैं। दूसरा खिलौना हो जाता है, ये मालिक हो जाते हैं। ___ असल में दूसरों को बदलने के लिए जो बहुत आतुर हैं, वे हिंसक हैं / जो अपने को बदलने को आतुर हैं, वे साधु हैं / और बड़े मजे की बात यह है कि जो अपने को बदल लेता है, उसके पास बहुत-से लोग बदलना शुरू हो जाते हैं। और जो दूसरे को बदलना चाहता है, उसके पास कोई नहीं बदलता / साधुओं के आश्रम में जाकर देखें, जहां बदलने की भयंकर चेष्टा चलती है। वहां कोई बदलता दिखाई नहीं पड़ता। गांधी जी अपने आश्रम में ब्रह्मचर्य को बड़े जोर से थोपते थे। लेकिन रोज उपद्रव खड़ा होता था। ब्रह्मचर्य कभी फलित नहीं हुआ। खुद उनके निजी, प्राइवेट सेक्रेटरी प्यारेलाल उलझ गये। ब्रह्मचर्य मुश्किल था। और गांधी की चेष्टा भारी थी। जितने जोर से थोपा जा सके ब्रह्मचर्य, उतना थोप देना / लेकिन वह हआ नहीं। और गांधी ने जो-जो थोपना चाहा अपने शिष्यों पर, शिष्य ठीक उसके विपरीत 476 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340050
Book TitleMahavir Vani Lecture 50 Kalyan Path par Khada hai Bhikshu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size86 MB
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