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________________ कल्याण-पथ पर खड़ा है भिक्षु चले गये। इधर पिछले तीस साल का इतिहास कहता है / जो-जो उन्होंने चाहा था, शिष्य उसके उलटे गये—सादगी चाही थी, तो भोग पैदा हुआ; चाहा था दीन-दरिद्र, संन्यस्त की तरह रहें, वह नहीं हो सका। ब्रह्मचर्य का तो कोई सवाल ही नहीं है। कहां भूल है? दूसरे को बदला नहीं जा सकता। असल में जब हम बदलने की बहुत कोशिश करते हैं, तो दूसरे के अहंकार में प्रतिरोध पैदा होता है, रेजिस्टेन्स पैदा होता है। __मनसविद कहते हैं कि दुनिया में अच्छे बच्चे पैदा हो सकते हैं, अगर मां-बाप अच्छा बनाने की थोड़ी कोशिश कम करें / वे इतना अच्छा बनाने की कोशिश करते हैं, कि बच्चों को बिगाड़ देते हैं / इसलिए अच्छे बाप का अच्छा बेटा पाना बड़ा मुश्किल है—कभी बुरे बाप का अच्छा बेटा हो भी जाये। ___एक शराबी का बेटा साधु हो जाये, यह हो सकता है। साधु का बेटा शराबी न हो, यह जरा मुश्किल है। बहुत मुश्किल है। खुद महात्मा गांधी का बेटा, हरिदास, ठीक उलटा गया / और हरिदास कीमती आदमी था; और कीमती था इसलिए उलटा गया / बाकी मिट्टी के थे। मिट्टी के पुतलों को आप कैसा भी बना दें, ढाल दें, वे कुछ इनकार न करेंगे। लेकिन जिंदगी इनकार करेगी; लड़ेगी, क्योंकि जिंदगी का लक्षण प्रतिरोध है। ___ हरिदास ने इनकार किया। तो हरिदास मुसलमान हो गये; शराब पीने लगे। अपना नाम उन्होंने रख लिया, अब्दुल्ला गांधी / वह गांधी के विपरीत जा रहा है। और जाने का कारण गांधी की चेष्टा में है। गांधी की पूरी चेष्टा है। गांधी कहते हैं, हिंदू-मुसलमान सब एक हैं। तो हरिदास हो गया मुसलमान। और जब उसे पता चला कि गांधी पीड़ित हए, तो उसने कहा कि पीड़ित होने की क्या बात है? हिंदू-मुसलमान सब एक, तो पीड़ित होने की क्या बात है ? और हरिदास शराब पीने लगा। और गांधी पीड़ित हुए / बाप पीड़ित होगा ही। और बाप की बड़ी इच्छा थी कि अच्छा बना ले। भली इच्छा है / इच्छा में कुछ बुराई भी नहीं है। लेकिन विज्ञान का बोध नहीं है। ___ तो हरिदास ने कहा, जब प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र है, तो मैं क्या करता हूं, क्या नहीं करता हूं, यह मेरी बात है। इससे किसी को क्या लेना-देना ? और इतनी आसक्ति क्यों रखते हैं मुझ पर वे कि मेरा बेटा है ? यह भी ममत्व है / मेरा बेटा बुरा न हो जाये, इसमें भी अहंकार है। मेरा बेटा अच्छा हो, इसमें भी अहंकार है। हरिदास लड़ रहा है एक भले बाप से। सभी हरिदास लड़ते हैं। भले बाप खतरनाक होते हैं। क्योंकि वे भला करने की इतनी चेष्टा करते हैं कि प्रतिरोध पैदाकर देते हैं। ___ महावीर कहते हैं, साधु दूसरे को बदलने की चिंता में नहीं पड़ता / इसका यह मतलब नहीं कि उसकी शुभाकांक्षा नहीं है। लेकिन महावीर गणित को जानते हैं जीवन के / शुभाकांक्षा तभी कारगर हो सकती है, जब आक्रमक न हो। और जब मैं दूसरे को बदलना चाहता हूं, तो मैं आक्रमक हूं; हिंसक हूं। आखिर दूसरा दूसरा है। उसकी अपनी निजी जीवन की धारा है। अगर मुझे कुछ ठीक लगता है तो वैसा मैं हो जाऊं। अगर मेरे होने से वह आंदोलित और प्रभावित हो तो ठीक, और न हो तो मेरे वश के बाहर है / फिर मैं हूं कौन? फिर मैं कौन हूं कि किसी को ठीक करने का जिम्मा अपने सिर लूं। यह अहंकार ही हो सकता है, अच्छे आदमी का अहंकार-कि दूसरे को भी मैं मेरे जैसा बना लूं। लेकिन क्यों? मेरी अपनी आत्मा है, उसकी अपनी आत्मा है। और दोनों की अपनी परम सत्ता है। महावीर कहते हैं कि जो अपने को बदलने की फिक्र करता है; जो दूसरों की निंद्य चेष्टा भी हो, उसे लगता भी हो कि बिलकुल गलत हो रहा है, तो भी उसकी निंदा में नहीं पड़ता। एक ही उपाय है साधु के पास-अनाक्रमक जीवन / उसके जीवन की ज्योति ऐसी होनी चाहिए कि कोई प्रभावित हो, तो हो जाये। 477 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340050
Book TitleMahavir Vani Lecture 50 Kalyan Path par Khada hai Bhikshu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size86 MB
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