SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अलिप्तता है ब्राह्मणत्व बनता तो याद होती। आपने पिछले जन्मों में कुछ सार निचोड़ा होता जीवन से, तो वह आपके साथ होता। वह दीये की तरह आपको रोशनी करता / वह तो है नहीं / कुछ अनुभव तो इकट्ठा किया नहीं है / फूलों के साथ आप रहे हैं, लेकिन इत्र बिलकुल नहीं निकाल पाये। इत्र साथ जाता है, फूल साथ नहीं ले जाये जा सकते / जब एक आदमी मरता है तो उस जीवन में जो उसने इत्र निकाल लिया है, ऐसेन्स, वह उसके साथ हो जाता है। फूल ही फूल के साथ खेलता रहा है, फूल तो पीछे छूट जाते हैं। शरीर पर थोड़ी-बहुत सुगंध जो रहती है, वह भी शरीर के साथ छूट जाती है। नये जन्म में फिर से इकट्ठा करना पड़ता है। और हर जन्म में हम इकट्ठा करते हैं और खोते हैं। जब तक आप परिपक्व न हो जायें, मैच्युरिटी न आ जाये, तब तक महावीर कहते हैं, संसार में ही अलिप्त होकर रहना ब्राह्मण होना है। अलिप्तता ब्राह्मणत्व है। __ 'जो अलोलुप है, जो अनासक्त-जीवी है, जो अनगार, बिना घर-बार का है, जो अकिंचन है, जो गृहस्थों के साथ आनेवाले संबंधों में अलिप्त है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।' ___ एक-एक शब्द को गौर से समझें , क्योंकि हर शब्द के साथ खतरा है कि आप गलत समझ लेंगे और गलत समझने की संभावना सदा ज्यादा है ठीक समझने की बजाय; क्योंकि हम गलत हैं / हमें एकदम से गलत चीज एकदम से समझ में आती है। वह हमारे लिए स्वाभाविक है, वह हमें ज्यादा प्राकृतिक है कि गलत हमको एकदम से समझ में आ जाये। हैं, जो अलोलुप है, जिसका लोभ चला गया है। हमें क्या समझ में आता है? हमें समझ में आता है कि धन छोड़ दो तो लोभ चला गया! धन छोड़ने से लोभ नहीं जाता है। धन पकड़ा जाता है लोभ के कारण / धन के पहले भी लोभ मौजूद रहता है, नहीं तो धन को कोई पकडेगा क्यों। धन आदमी इकट्ठा करता है लोभ के कारण / तो एक बात तो पक्की है नहीं तो धन को कोई पकड़ता क्यों / तो जो पहले था, वह धन को छोड़ने से मिट नहीं सकता। वह पीछे छिपा मौजूद रह जायेगा। धन पीछे आया है, तो धन छोड़ दो, कोई फर्क नहीं पड़ता। लोभ मौजूद रहेगा। ___ महावीर कहते हैं, जो अलोलुप है, और हम समझते हैं कि जो निर्धन है। तो हम समझते हैं कि असाधु धन छोड़ दे तो बस साधु हो गया। धन छोड़ने से लोभ जाता होता, तो बड़ी आसान बात हो जाती / इसका तो मतलब हुआ कि वस्तुओं को छोड़ने से आत्मा बदलती है। तब तो आत्मा कमजोर है; वस्तुयें ज्यादा सबल हैं। नहीं, वस्तुओं को छोड़ने से कुछ भी नहीं बदलता; हां, धोखा हो जाता है / अगर धन न हो, तो ऐसा लगता है कि अब मेरा कोई लोभ न रहा। और किसी को दिखायी भी नहीं पड़ता / क्योंकि जब धन नहीं है तो किसी को दिखायी भी कैसे पड़ेगा! दिखायी धन पड़ता है, लोभ तो दिखायी नहीं पड़ता / लोभ तो खुद को ही देखना पड़ता है। धन दूसरों को दिखायी पड़ता है। जो दूसरों को दिखायी पड़ता है, उसे छोड़ना बहुत आसान है। जो दूसरों को दिखायी नहीं पड़ता, मेरे भीतर छिपा है, असली सवाल वही है। तो महावीर नहीं कहते कि निर्धन ब्राह्मण है। महावीर कहते हैं अलोलुप / ये दोनों बड़े भिन्न हैं / तब यह भी हो सकता है कि कोई आदमी धन के बीच भी अलोलुप हो, और यह भी हो सकता है कि कोई आदमी निर्धन होकर भी लोलुप हो / लोलुपता मन की एक वृत्ति है, चीजों को पकड़ने की / लोलुपता मन की एक तरंग है / वस्तुओं से उसका संबंध नहीं है / वस्तुओं के सहारे वह फैलती है बाहर, लेकिन छिपी भीतर है / वस्तुएं हटा दें; वह भीतर जाकर सिकुड़ जाती है, लेकिन मौजूद रहती है। वह नयी चीजों से जुड़ने लगती है। तो देखें, एक लंगोटी वाला संन्यासी जिसके पास सिर्फ लंगोटी है, वह लंगोटी के प्रति भी लोलुप हो सकता है। सुना है मैंने कि ऐसा हुआ कि एक संन्यासी बड़ी यात्रा करता था; जगह-जगह गुरुओं के पास जाता था, लेकिन कहीं उसे ज्ञान न हुआ। तो उसके अंतिम गुरु ने कहा, 'हम तुझे ज्ञान न दे सकेंगे। तू बेहतर हो, जनक के पास चला जा।' उसने कहा, 'जनक मुझे 373 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340045
Book TitleMahavir Vani Lecture 45 Aliptata hai Bramhnatva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size97 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy