________________ महावीर-वाणी भाग : 2 आटोइरोटिक हो जाता है आदमी। तो आप भागकर जायेंगे कहां? आप अपनी वासना को अपने हाथों ही पूरा करने लगेंगे। और अगर आपने अपने हाथ भी बांध लिये, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता; क्योंकि स्वप्न में आपकी वासना आपको पकड़ेगी। स्वप्न में स्खलन हो जायेगा। भाग नहीं सकते संसार से, क्योंकि संसार भीतर है। हां, भीतर से संसार विसर्जित कर दिया जाये तो संसार में रहकर भी आदमी संन्यस्त हो जाता है। महावीर विरोध में नहीं हैं कि कोई संसार न छोड़े। वे कहते हैं, संसार छोड़े लेकिन तभी छोड़े, जब संसार छूट चुका हो / इसे थोड़ा समझ लें। कच्चा न छोड़े, क्योंकि कच्चा आदमी दिक्कत में पड़ेगा। वह भागकर जायेगा, मुसीबत खड़ी करेगा। नये रोग, नयी विकृतियां, परवर्शन्स खड़े हो जायेंगे। संसार छोड़े तभी, जब पक्का अनुभव हो जाये कि संसार भीतर से छूट चुका है। अब यहां रहने की कोई जरूरत नहीं। यह परीक्षा पूरी हो गयी। इस विद्यालय की शिक्षा पूर्ण हो चुकी। तो एक तो वे हैं, जो विद्यालय से भाग खड़े होते हैं कि परीक्षा न देनी पड़े, निन्यानबे प्रतिशत, और एक वे हैं, जो विद्यालय की सब परीक्षाएं पास कर जाते हैं, और विद्यालय उनसे कहता है कि अब आप कृपा करके जाइये; अब यहां होने की कोई आवश्यकता नहीं है। ___ महावीर और बुद्ध इस संसार के विद्यालय को पास करके छोड़ते हैं। यह व्यर्थ हो जाता है इसलिए छोड़ते हैं / जैसे सूखा पत्ता वृक्ष से गिरता है, कच्चा पत्ता उस शान से नहीं गिर सकता, क्योंकि कच्चा पत्ता गिरेगा तो पीड़ा होगी; पत्ते को भी होगी, वृक्ष को भी होगी, घाव भी छूट जायेगा / सूखा पत्ता टूटता है; न पत्ते को पता चलता है, न वृक्ष को खबर होती है कि कब छूट गया, न कोई घाव होता है। ___ महावीर कहते हैं : ब्राह्मण वह है जो संसार में रहकर कामवासना से ऐसे अलिप्त हो गया, जैसे कमल का पत्ता पानी से अलग है। ऐसा ब्राह्मण संन्यस्त हो तो संन्यास में गरिमा होती है. गौरव होता है; संन्यास में एक स्वास्थ्य होता है। ऐसे संन्यास में संसार का विरोध नहीं होता, संसार का अतिक्रमण होता है, ट्रांसेंडेन्स होता है / यह आदमी संसार से भयभीत होकर नहीं गया है। यह आदमी संसार को पार करके ऊपर उठ गया है। यह बियांड हो गया है। यह संसार से जरा भी भयभीत नहीं है। संसार में होने में अब कोई अर्थ नहीं रहा, इसलिए गया है। जो भय से भागता है, उसे अर्थ अभी है। इसलिए जब भी संन्यासी को आप संसार से भयभीत देखें तो समझ लेना कि अभी यह आदमी जल्दी में चला गया, कच्चा पत्ता था, इसे अभी रुकना था। बेहतर था, अभी यह संसार में और जी लेता। एक साठ वर्ष के बूढ़े साधु ने मुझे कहा कि मैं नौ वर्ष का था, तब मेरे पिता ने मुझे दीक्षा दी। पिता भी साधु थे। और अकसर पिताओं की इच्छा होती है कि जो वे हैं, वही उनके बेटे भी हो जायें! लेकिन पिता ने संन्यास लिया भी पैंतालिस साल की उम्र में; बेटे को संन्यास दे दिया नौ साल की उम्र में / यह बेटा अब साठ साल का हो गया, लेकिन इसकी बुद्धि नौ साल से आगे नहीं बढ़ी। ___ बढ़ नहीं सकती। क्योंकि इसको बढ़ने का कोई मौका ही नहीं है, अवसर ही नहीं है। साठ साल का बूढ़ा, लेकिन बुद्धि अटक कर रह गयी नौ साल पर / अभी हालत इसकी वही है कि अगर इसको कुलफी बेचनेवाला दिखायी पड़ जाये तो कुलफी खाने का मन होता है। सिनेमा घर के सामने क्यू लगा होता है, तो इसका मन होता है कि भीतर पता नहीं क्या हो रहा है; मैं भी देख लूं / स्त्री देखकर उसे बड़ी कठिनाई होती है, क्योंकि इस स्त्री में क्या छिपा है, जो इतना आकर्षित करती है; अपरिचित है। इसकी सारी साधना सिर्फ संघर्ष है, और अतिक्रम कुछ भी नहीं हो रहा है / हो नहीं सकता / अनुभव अतिक्रम लाता है। जीवन से सस्ते छूटने का कोई उपाय नहीं है, और जो सस्ता छूटना चाहता है, वह भटकेगा बहुत बार / जीवन में शार्टकट होते ही नहीं। कोई उपाय नहीं। यहां कोई अपवाद नहीं है / महावीर भी जन्मों-जन्मों के अनुभव के बाद संन्यस्त होते हैं / बुद्ध भी जन्मों-जन्मों के अनुभव के बाद संन्यस्त होते हैं। आप को तो पिछले जन्मों की कोई याद ही नहीं है। आपका कोई अनुभव ही नहीं बना है। अनुभव 372 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org