________________ महावीर-वाणी भाग : 2 लिया। लेकिन अगर कोई ठीक से समझे तो महावीर ब्राह्मण के दुश्मन नहीं हैं, ब्राह्मण ही ब्राह्मण के दुश्मन हैं / महावीर तो परम प्रेमी मालूम पड़ते हैं ब्राह्मणत्व के / ब्राह्मण को उन्होंने ठीक ब्राह्मण के निकट बिठा दिया / और ब्रह्मण तभी कहने का कोई अपने को अधिकारी है, जब महावीर की परिभाषा पूरी करता है। जन्म से जो ब्राह्मण है, उसका ब्राह्मणत्व औपचारिक है, फारमल है। उसका कोई मूल्य नहीं है। ब्राह्मण की उपलब्धि और ब्रह्म की उपलब्धि के मार्ग पर चलते हुए, पड़ते हुए कदम और पडाव, वे ही ब्राह्मण होने के पड़ाव हैं। आज इतना ही। 356 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org