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________________ राग, द्वेष, भय से रहित है ब्राह्मण इंतजाम कर दिया है। उन्होंने नरक बना दिया कि अगर तुमने पाप किया, अगर राग किया, द्वेष किया, यह किया, वह किया तो नरक में सड़ोगे। नरक के डर के कारण बहुत-से लोग धार्मिक बने हैं। ___ अब यह नरक का डर रोज-रोज कम होता जा रहा है, लोगों का धर्म भी कम होता जा रहा है उसी अनुपात में / जिस दिन नरक बिलकुल समाप्त हो जायेगा, आप बिलकुल अधार्मिक हो जायेंगे, क्योंकि आपका धर्म सिवाय भय के कुछ भी नहीं है। भगवान की मूर्ति के सामने जब आप घुटने टेकते हैं, वह भय में टेके गये घुटने हैं। और भय से क्या संबंध सत्य से हो सकता है ! महावीर कहते हैं, अभय सत्य की खोज का पहला चरण है। और जो अभय नहीं है, वह ब्राह्मण नहीं हो सकता। इसलिए महावीर ने तो प्रार्थना तक को विसर्जित कर दिया। महावीर ने कहा, प्रार्थना में भय छिपा रहता है, मांग छिपी रहती है। प्रार्थना की भी कोई जरूरत नहीं है, सिर्फ अभय हो जाने की जरूरत है। कौन आदमी अभय हो सकता है? भय मौजूद है, वास्तविक है। मौत है, दुख है, पीड़ा है। तो एक तो उपाय यह है कि कोई दुख न रह जाये, तब आदमी निर्भय हो जाये, अभय हो जाये। पर दुख तो रहेंगे। कोई दुनिया का विज्ञान आदमी को दुख से मुक्त नहीं कर सकता; एक दुख को बदलकर दूसरे दुख में ही डाल सकता है / कोई स्थिति नहीं हो सकती जमीन पर, जब कोई दुख न हो। पांच हजार साल का अनुभव है। पुराने दुख हट जाते हैं, नये दुख आ जाते हैं। पुरानी बीमारियां चली जाती हैं / प्लेग नहीं है अब / बहुत-से मुल्कों से मलेरिया विदा हो गया। प्लेग खो गई / काला बुखार नहीं रहा; लेकिन क्या फर्क पड़ता है, उससे भी भयंकर बीमारियां मौजूद हो गयी हैं। आदमी सुख में नहीं हो सकता, अकेले सुख में नहीं हो सकता; दुख सुख के साथ जुड़ा है। हम इधर सुख का इंतजाम करते हैं, उतने ही दुख का इंतजाम उसके साथ ही हो जाता है। तो महावीर कहते हैं कि दुख से मुक्त होने की कोशिश एक ही अर्थ रखती है कि मेरी चेतना दुख और सुख से पृथक हो जाये / और कोई उपाय नहीं है। ___ विज्ञान मनुष्य को आनंद में नहीं उतार सकता; बड़े सुख में ले जा सकता है, लेकिन साथ ही बड़े दुख में भी ले जायेगा। इसलिए जितना विज्ञान सुविधा जुटाता है, उतना ही आदमी को असुविधा का अनुभव होने लगता है। एक आदमी धूप में दिनभर काम करता है, उसे धूप का दुख निरंतर अनुभव से कम हो जाता है। एक आदमी छाया में बैठकर काम करता है। छाया में निरंतर बैठने से छाया का सुख होता है, लेकिन धूप का दुख बढ़ जाता है। धूप में जायेगा तो बहुत दुख पायेगा, जो धूप में काम करनेवाला कभी नहीं पायेगा। आप जितना सुख बढ़ाते हैं, उनके साथ ही दुख की क्षमता बढ़ती जाती है। क्योंकि सुख के साथ ही साथ आप डेलिकेट होते जाते हैं, नाजक होते जाते हैं और जितने नाजक होते हैं, उतना रेजिस्टेन्स कम हो जाता है, प्रतिरोध कम हो जाता है। तो हमने सब बीमारियों का इंतजाम कर लिया, लेकिन आदमी का प्रतिरोध कम हो गया और आदमी का प्रतिरोध कम हो जाने से हजार नयी बीमारियां खड़ी हो गयीं। हम आदमी को जितना सुख देंगे, उतना ही उसके साथ दुख की खाई बढ़ती जायेगी / विज्ञान बड़े सुख दे सकता है; बड़े दुख देगा। महावीर कहते हैं, आनंद की तो एक ही संभावना है कि सुख दुख से मैं अपनी चेतना को पृथक कर लूं। राग, द्वेष से अलग होने का अर्थ है, मैं साक्षी हो जाऊं। न तो मैं किसी के खिलाफ, न किसी के पक्ष में, न तो सुख की आकांक्षा और न दुख का विरोध / जो भी घटित हो, मैं उसका देखनेवाला रह जाऊं। महावीर का धर्म अभय पर खड़ा धर्म है / अंग्रेजी में एक शब्द है, गाड फियरिंग / हिंदी में भी एक शब्द है, ईश्वरभीरु-ईश्वर से डरने वाला, महावीर ऐसे शब्द को धर्मशास्त्र में जगह नहीं देंगे। महावीर कहेंगे, जो डरता है, वह तो कभी सत्य को उपलब्ध नहीं हो सकता। भयभीत चित्त का कोई संबंध सत्य से होने की संभावना नहीं है। तो महावीर कहते हैं : राग, द्वेष और भय से जो रहित है, उसे हम ब्राह्मण 353 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340044
Book TitleMahavir Vani Lecture 44 Rag Dwesh Bhay se Rahit hai Bramhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size77 MB
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