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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 है, कि नसरुद्दीन मिल गया, पुराना परिचित / उसने व्यापारी को रोका और कहा कि कहां भागे जा रहे हैं ? क्या हो गया है, इस उम्र में हांफ रहे हैं, पसीना-पसीना हो रहे हैं ! उस व्यापारी ने कहा कि वह देखते हैं, नालायक, वह लड़का ! उसने मुझसे पूछा कि कितना समय है? तो मैंने घड़ी निकाली उसके लिए रुका और मैंने कहा कि अभी पौने तीन बजे हैं। तो उसने कहा कि ठीक तीन बजे तुम मेरा पैर चूमोगे। ___ नसरुद्दीन ने कहा, 'देन व्हाट इज़ द हरी, यू हैव इनफ टाइम-यट टेन मिनट लैफ्ट / इतनी तेजी से क्यों दौड़ रहे हो? अरे, पैर ही चूमना है न तीन बजे ! इतनी जल्दी क्या है ?' __ क्या आदमी अर्थ लेगा, आदमी पर निर्भर है। जीसस ने कहा कि एक ही जन्म है, तेजी से लगो, समय ज्यादा नहीं, ताकि परमात्मा खो न जाये; क्योंकि दूसरा अवसर नहीं है। लोगों ने कहा, इतना ही जीवन है, दूसरे का हमें कुछ पता नहीं; ठीक से इसे भोग लो। __ महावीर, बुद्ध और कृष्ण ने कहा कि अनंत जीवन हैं। उन्होंने भी किसी प्रयोजन से ऐसा कहा। उन्होंने कहा कि अनंत जीवन हैं। बड़ा लंबा संघर्ष है; एक ही जीवन में पूरा न हो पायेगा। लेकिन चेष्टा करोगे तो अनंत जीवन में सत्य के निकट पहुंच जाओगे। ___ अनंत जीवन का खयाल इसलिए दिया ताकि तुम चेष्टा कर सको। अनंत जीवन का इसलिए खयाल दिया ताकि तुम इस जीवन को सब कुछ न समझ लो / इसे तुम उपकरण बनाओ, साधन बनाओ, अगले जीवन में और श्रेष्ठतर स्थिति पाने के लिए। यह जीवन सब कुछ न हो जाये, अनंत जीवन की धारणा दी। हमने क्या मतलब निकाला ! हमने कहा, अनंत पड़े हैं जीवन; पहले इसे तो भोग लें। क्या है? व्हाट इज़ द हरी? जल्दी क्या है, इस जन्म में नहीं हुआ तो अगले जन्म में कर लेंगे। अगले जन्म में नहीं हुआ, और अगले जन्म में करेंगे। अनंत अवसर हैं: जल्दी कछ भी नहीं है, पहले इसे तो भोग लें जो हाथ में है। आदमी बहुत बेईमान है। सभी सिद्धांतों से वह अपना मतलब और स्वार्थ खींच लेता है। महावीर कहते हैं कि आर्य-वचनों में जो आनंद पाता है, जो अपना स्वार्थ नहीं खोजता और आर्य-वचनों को अपने तल पर नहीं खींच लेता, बल्कि स्वयं को आर्य-वचनों के तल पर खींचने की कोशिश करता है, वह व्यक्ति ब्राह्मण है। उसे हम ब्राह्मण कहते हैं, 'जो अग्नि में डालकर शुद्ध किये हुए और कसौटी पर कसे हुए सोने के समान निर्मल है, जो राग, द्वेष तथा भय से रहित है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।' '...अग्नि में डालकर शुद्ध किए, कसौटी पर कसे हुए सोने के समान निर्मल है।' जिस अग्नि को आप जानते हैं वही अग्नि नहीं है, और भी अग्नियां हैं। जो बाहर दिखायी पड़ती है वही अग्नि नहीं है, भीतर भी अग्नि है / सारा जीवन अग्नि का ही फैलाव है। और जिस सोने को आप बाहर देखते हैं, वही सोना नहीं है, भीतर भी सोने की संभा है। लेकिन वहां सब मिट्टी मिला हुआ है, कचरा मिला हुआ है। हमने कभी उसे शुद्ध नहीं किया। असल में हम बाहर के सोने की चिंता में इतने पड़े रहते हैं कि भीतर के सोने की फिक्र कौन करे। और बाहर के सोने को ही खोजने में जीवन समाप्त हो जाता है; भीतर के सोने को खोजने का मौका ही नहीं आता। कभी दुख, पीड़ा में, परेशानी में हम भीतर का खयाल भी करते हैं, तो सुख में फिर भूल जाते हैं। सुख बहिर्गामी है। दुख में थोड़े-से भीतर भी जाते हैं, तो सुख के आते ही...! ___ मुल्ला नसरुद्दीन बहुत बीमार था, बहुत दुखी था / एक दिन बीमारी, पीड़ा की चिंता में मस्जिद चला गया; वैसे जाता नहीं था। मौलवी से जाकर कहा, मेरे लिए प्रार्थना करो। मैं तो पापी हूं, तुम तो पुण्यात्मा हो / तुम्हारी प्रार्थना जरूर स्वीकार होगी। मैं तो किस मुंह से प्रार्थना करूं, मेरे लिए प्रार्थना करो। अगर मैं बच गया इस बीमारी से, चिकित्सक कहते हैं कि बच न सकूँगा, बीमारी घातक है, अगर बच गया इस बीमारी से तो पांच रुपये-पांच रुपये काफी थे—'पांच रुपया मस्जिद को दान करूंगा!" 348 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340044
Book TitleMahavir Vani Lecture 44 Rag Dwesh Bhay se Rahit hai Bramhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size77 MB
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