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________________ राग, द्वेष, भय से रहित है ब्राह्मण आर्य-वचन में आनंद लेने का अर्थ है कि मैं—आर्य-वचन जो कह रहे हैं, वहां तक पहुंचना चाहता हूं। दूर है मंजिल, लेकिन आंखें मेरी उसी तरफ लगी हैं। पैर मेरे कमजोर हों, लेकिन चलने की मेरी चेष्टा है / गिरूं, न पहुंच पाऊं, यह भी हो सकता है, लेकिन पहुंचने की चेष्टा मैं जारी रखूगा। आर्य वचन में आनंद लेने का अर्थ है कि हम संभावना का द्वार खोल रहे हैं। लोग हैं, जिन्हें यह सुनकर प्रसन्नता होती है कि ईश्वर नहीं है। लोग हैं जिन्हें सुनकर प्रसन्नता होती है कि आत्मा नहीं है। लोग हैं जिन्हें सुनकर सुख होता है कि मोक्ष नहीं है / बस, यही जीवन सब कुछ है; खाओ, पियो और मौज करो। अगर उनको खयाल आ जाये कि परमात्मा है, तो उनके सुख में एक कंकड़ पड़ गया। उन्हें खयाल आ जाये कि इस जीवन के समाप्त होने पर और जीवन है, तो सिर्फ खाओ, पियो और मौज करो काफी नहीं मालूम होगा। फिर कुछ और भी करो। फिर जीवन अपने में लक्ष्य नहीं रह जाता, साधन हो जाता है, किसी और परम जीवन को पाने के लिए। हम जो इनकार करते हैं कि ईश्वर नहीं है, आत्मा नहीं है, मोक्ष नहीं है, वह इनकार हम अपने को बचाने के लिए करते हैं। क्योंकि अगर ये तत्व हैं, तो फिर हम क्या कर रहे हैं / फिर समय नहीं है / फिर जीवन बहुत छोटा है और शक्ति को व्यर्थ खोना उचित नहीं है। अगर पश्चिम में इतना भौतिकवाद फैला. तो उसके फैलने का एक कारण तो यह था कि ईसाइयत ने कहा कि कोई पनर्जन्म नहीं है। पश्चिम में भौतिकता के इतनी तीव्रता से फैल जाने का एक कारण बना ईसाइयत की यह धारणा कि कोई पुनर्जन्म नहीं है, एक ही जीवन है। अगर एक ही जीवन है, तो लोगों को लगा कि फिर इसी जीवन को लक्ष्य बनाकर जी लेना उचित है। कोई और जीवन नहीं है जिसके लिए इस जीवन को समर्पित किया जाये, त्यागा जाये, साधना में लगाया जाये। समय हाथ से छूटा जा रहा है, इसे भोग लो। पश्चिम में भोगवाद एक जीवन की धारणा के कारण बड़ी आसानी से फैल सका / जीसस के प्रयोजन दूसरे थे। मगर जीसस, महावीर या बुद्ध के प्रयोजनों से हमें कुछ लेना-देना नहीं। हम उनके प्रयोजन से भी अपना स्वार्थ निकाल लेते हैं। __ जीसस का प्रयोजन था इस बात पर जोर देने के लिए कि एक ही जन्म है, ऐसा नहीं कि जीसस को पता नहीं था। जीसस ने ऐसी बहुत-सी बातों का उल्लेख किया है जिनसे साबित होता है कि उन्हें पता है कि पुनर्जन्म है। क्योंकि जीसस से किसी ने पूछा कि तुम्हारी उम्र क्या है, तो जीसस ने कहा कि इब्राहिम के पहले भी में था। इब्राहिम को हुए तब दो हजार साल हो चुके थे। ___ तो जीसस को पूरा पता है; होगा ही। इतने ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति को अगर इतना भी पता न हो कि जीवन एक अनंत धारणा है, एक अनंत फैलाव है...लेकिन फिर भी जीसस ने लोगों से कहा कि एक ही जीवन है। और प्रयोजन यह था कि ताकि लोग तीव्रता से मोक्ष को पाने की चेष्टा में लग जाएं / क्योंकि ज्यादा समय नहीं है खोने को, समय कम है, लेकिन लोग बड़े होशियार हैं। उन्होंने देखा कि समय इतना कम है, कहां का मोक्ष, कहां का परमात्मा ! पहले इसे तो भोग लो ! हाथ की आधी रोटी, दूर सपनों की पूरी रोटी से बेहतर है। लोग अपने मतलब से लेते हैं। ___ मैंने सुना है, बाजार से एक संभ्रांत आदमी गुजर रहा था / अपने व्यवसाय की वेशभूषा में सजा-धजा / और एक छोटे-से गरीब लड़के ने आकर कहा, 'महानुभाव, क्या आप बता सकेंगे कि कितना समय है? ___ उसने इतने आदर से पूछा कि व्यापारी रुक गया / खीसे से शान से उसने अपनी सोने की घड़ी निकाली, देखा, घड़ी वापस रखी और कहा कि अभी तीन बजने में पंद्रह मिनट कम हैं। उस लड़के ने कहा, 'धन्यवाद ! ठीक तीन बजे तुम मेरा पैर चूमोगे।' और भाग खड़ा हुआ। स्वभावतः व्यवसायी क्रोध से भर गया / भागा आग-बबूला होकर उसके पीछे / कोई दो मील भाग पाया होगा, हांफ रहा है, उम्र ज्यादा 347 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340044
Book TitleMahavir Vani Lecture 44 Rag Dwesh Bhay se Rahit hai Bramhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size77 MB
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