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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 पृथ्वी के राज्य में अंतिम खड़े होने को राजी हैं। __ध्यान रहे, ‘अंतिम खड़े हैं', ऐसा नहीं कहा है- 'अंतिम खड़े हैं, लेकिन वे अंतिम खड़े होने को राजी हैं।' अंतिम तो बहुत लोग खड़े नहीं रहना चाहते हैं वहां / मजबूरी है कि क्यू में कोई आगे जाने ही नहीं देता, ज्यादा ताकतवर लोग आगे खड़े हैं। क्यू से निकल नहीं पाते हैं, लेकिन इच्छा तो निकलने की है। दिल तो क्यू में आगे ही खड़े होने का है। लेकिन खड़े पीछे हैं, यह मजबूरी है। इस मजबूरीवाले को प्रभु के राज्य में प्रथम मौका मिल जायेगा, ऐसा नहीं है। ___ जीसस कहते हैं जो अंतिम खड़ा होने को राजी है। जो पहले की तलाश ही नहीं करता, जो चुपचाप पीछे खड़ा है, और पीछे है, संतुष्ट है। और हैरान है कि आगे होने की इतनी दौड़ क्यों चल रही है? क्या होगा...? आगे होकर क्या होगा? ___ संन्यासी का अर्थ है : जिसने महत्वाकांक्षा छोड़ दी, जिसने संघर्ष छोड़ दिया; जिसने दूसरे अहंकारों से लड़ने की वृत्ति छोड़ दी / इस घड़ी में चेहरे के आस-पास लाल, गैरिक रंग का उदय होता है। जैसे सुबह का सूरज जब उगता है, जैसा रंग उस पर होता है, वैसा रंग पैदा होता है / इसलिए संन्यासी अगर सच में संन्यासी हो, तो उसके चेहरे पर जो रक्ताभ, जो लाली होगी, जो सूर्य के उदय के क्षण की ताजगी होगी, वही खबर दे देगी। पदम'...महावीर कहते हैं, दूसरी धर्म लेश्या है पीत / इस लाली के बाद जब जल जायेगा अहंकार...स्वभावतः अग्नि की तभी तक जरूरत है जब तक अहंकार जल न जाये। जैसे ही अहंकार जल जायेगा, तो लाली पीत होने लगेगी। जैसे, सुबह का सूरज जैसे-जैसे ऊपर उठने लगेगा, वैसा लाल नहीं रह जायेगा, पीला हो जायेगा। स्वर्ण का पीत रंग प्रगट होने लगेगा / जब स्पर्धा छूट जाती है, संघर्ष छट जाता है, दूसरों से तुलना छट जाती है और व्यक्ति अपने साथ राजी हो जाता है-अपने में ही जीने लगता है जैसे संसार हो या न हो कोई फर्क नहीं पड़ता-यह ध्यान की अवस्था है। ___ लाल रंग की अवस्था में व्यक्ति पूरी तरह प्रेम से भरा होगा, खुद मिट जायेगा, दूसरे महत्वपूर्ण हो जायेंगे। पीत की अवस्था में न खुद रहेगा, न दूसरे रहेंगे, सब शांत हो जायेगा। पीत ध्यान की अवस्था है -जब व्यक्ति अपने में होता है, दूसरे का पता ही नहीं चलता कि दूसरा है भी। जिस क्षण मुझे भूल जाता है कि 'मैं हूं' , उसी क्षण यह भी भूल जायेगा कि दूसरा भी है। पीत, बड़ा शांत, बड़ा मौन, अनउद्विग्न रंग है / स्वर्ण की तरह शुद्ध, लेकिन कोई उत्तेजना नहीं। लाल रंग में उत्तेजना है, वह धर्म का पहला चरण है। इसलिए, ध्यान रहे, जो लोग धर्म के पहले चरण में होते हैं, बड़े उत्तेजित होते हैं। धर्म उनके लिये खींचता है-जोर से-धर्म के प्रति बड़े आब्सेज्ड होते हैं / धर्म भी उनके लिये एक ज्वर की तरह होता है। लेकिन, जैसे-जैसे धर्म में गति होती जाती है, वैसे-वैसे सब शांत हो जाता है। पश्चिम के धर्म हैं-ईसाइयत, वह लाल रंग को अभी भी पार नहीं कर पाई; क्योंकि अभी भी दूसरे को कन्वर्ट करने की आकांक्षा है। इस्लाम लाल रंग को पार नहीं कर पाया / गहन दूसरे पर ध्यान है, कि दूसरों को बदल देना है, किसी भी तरह बदल देना है उसकी वजह से एक मतांधता है। ___ आप जानकर हैरान होंगे कि दुनिया के दो पुराने धर्म-हिंदू और यहूदी, दोनों पीत अवस्था में हैं। हिंदुओं और यहूदियों ने कभी किसी को बदलने की कोशिश नहीं की / बल्कि, कोई आ भी जाये तो बड़ा मुश्किल है उसको भीतर लेना / द्वार जैसे बंद हैं, सब शांत है। दूसरे में कोई उत्सुकता नहीं है। संख्या कितनी है, इसकी कोई फिक्र नहीं है। व्यक्ति जब पहली दफा धार्मिक होना शुरू होता है, तो बड़ा धार्मिक जोश खरोश होता है / यही लोग उपद्रव का कारण भी हो जाते 286 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340041
Book TitleMahavir Vani Lecture 41 Chah Leshyaye Chetna me Uthi Lahre
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size78 MB
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