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________________ पांच ज्ञान और आठ कर्म ध्वनि जा रही है। पूरे शरीर से श्वास जा रही है भीतर / और अगर हवा पूरे शरीर से भीतर जा रही है, तो ध्वनि भी भीतर जा रही है। थोड़ी कल्पना करें, अगर आपके पूरे शरीर से ध्वनि का अनुभव हो, तो संगीत का जो आनंद आप ले पायेंगे, और जो अनुभव, और जो ज्ञान होगा, वह अभी आपको नहीं हो सकता / लेकिन थोड़ा आपको भी खयाल होता है कि जब भी आप संगीत सुनते हैं तो आपका पैर नाचने लगता है, हाथ थपकी देने लगता है, उसका मतलब इतना है कि हाथ भी सुन रहा है, पैर भी पकड़ रहा है। अगर कोई व्यक्ति संगीत को सुनकर नाचने लगे, उसका रोआं-रोआं नाचने लगे, तो उसे पूरा अनुभव होगा ध्वनि का / नहीं तो उसे पूरा ध्वनि का अनुभव नहीं होगा। __ मति-ज्ञान का अर्थ है : हमारी इंद्रियां परिशुद्ध हों, द्वार उन्मुक्त हों, और जीवन को भीतर लेने की हमारी तैयारी हो। और हमारी तैयारी जीवन में बाहर जाने की भी हो। आप स्नान करते हैं, लेकिन आप व्यर्थ कर लेते हैं। मैं जैसा कहूं, ऐसा स्नान करें : फव्वारे के नीचे खड़े हो जाएं, सब विचार छोड़ दें, दुनिया को भूल जायें / जो मंदिर में नहीं हो सकता, वह आपके स्नानगृह में हो सकता है। लेकिन सिर्फ पानी के स्पर्श को, जो आपके सिर पर गिर रहा है और शरीर पर जिसकी धाराएं बही जा रही है, उसके सिर्फ स्पर्श का पीछा करें। पूरे शरीर से उसके स्पर्श को पीयें। रोएं-रोएं से पानी की ताजगी को भीतर जाने दें। आप पचहत्तर प्रतिशत पानी हैं-आपका शरीर / तो जब पानी आपको बाहर से स्पर्श करता है, अगर आपका पूरा शरीर संवेदनशील हो तो भीतर का पानी भी आंदोलित होने लगेगा। आप पानी ही हैं, पचहत्तर प्रतिशत / इसलिए चांद की जब पूरी रात होती है तो आपको बहुत आनंद मालूम होता है / वह आपको मालूम नहीं हो रहा, वह आपके भीतर का पचहत्तर प्रतिशत पानी सागर की तरह आंदोलित होने लगता है। पूरे चांद की रात, आपको जो अच्छा लगता है, वह अच्छा इसलिए लगता है कि आपके भीतर का पानी अभी भी सागर का हिस्सा है। आप जानकर हैरान होंगे कि आपके शरीर के पानी में उतने ही तत्व हैं, जितने सागर के पानी में हैं। वैसा ही नमक, वैसे ही केमिकल्स-ठीक उसी अनुपात में / क्योंकि वैज्ञानिक कहते हैं, आदमी का पहला जन्म मछली की तरह हुआ, वह पहली यात्रा है। अब भी आप बहुत विकसित हो गये हैं; लेकिन भीतर आपका जीवन अभी भी सागर की ही जरूरत मानता है। वहां अब भी सागर है। जब आप सागर के किनारे बैठे हैं, तो सागर के आंदोलन को गौर से देखें और इतने लीन हो जायें कि आपके भीतर का सागर एक छलांग लगाकर बाहर के सागर से मिलने लगे तो आपको इंद्रिय ज्ञान होगा। महावीर उसे 'मति' कहते हैं। छोटे बच्चों को होता है। जैसे-जैसे आप बड़े होते जाते हैं, वैसे-वैसे भूलता जाता है। फिर तो उन्हीं को होता है, जो ध्यान में प्रवेश करते हैं, जो फिर छोटे बच्चों की तरह हो जाते हैं। तब हवा का हल्का झोंका भी स्वर्ग की खबर देता है; जब फूल का छोटा सा स्पंदन भी जीवन का नृत्य बन जाता है; दिये की लपटती-भागती लौ सारे प्राण की ऊर्जा का अनुभव बन जाती है, तब आपको मति ज्ञान होना शुरू होता है। ___ पश्चिम में चल रही ट्रेनिंग कि लोग अपनी इंद्रियों को फिर सजग कर लें, हमें बहुत बचकानी मालूम पड़ेगी; क्योंकि हमारे खयाल में नहीं है। तीन सप्ताह, चार सप्ताह के लिए लोग इकट्टे होते हैं किसी केंद्र पर-सब तरह से जीवन को अनुभव करने की कोशिश करते हैं / समुद्र की रेत में आंख बंद करके लेटते हैं, ताकि रेत का स्पर्श अनुभव हो सके; पानी के झरने में सिर झुकाकर बैठते हैं, ताकि पानी का अनुभव हो सके, आंख बंद करके एक-दूसरे को स्पर्श करते हैं, ताकि एक-दूसरे के शरीर के स्पर्श की प्रतीति हो सके। ___ दो प्रेमी भी एक-दूसरे के शरीर से बड़े आर्थोडाक्स, बंधे-बंधाए ढंग से परिचित होते हैं। कभी आपने अपनी प्रेयसी को अपनी पीठ और उसकी पीठ को भी मिलाकर देखा है कि दोनों कैसा अनुभव करते हैं? बड़ा भिन्न अनुभव होगा, अगर आप अपनी प्रेयसी की पीठ 251 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340040
Book TitleMahavir Vani Lecture 40 Panch Gyan aur Aath Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size102 MB
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