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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 आपको पता भी नहीं कि इंद्रियों की संवेदना आपकी मर चुकी है। जब आप किसी को छूते हैं ---सच में छूते हैं? जब किसी का हाथ, हाथ में लेते हैं तो मुर्दे की तरह, आपकी जीवन-ऊर्जा आपके हाथ से बहती है! उस व्यक्ति को प्रवेश करती है; उसको छूती है-या बस, हाथ हाथ में ले लेते हैं ? ___ अगर आप पचास लोगों के हाथ हाथ में लें, तो आप अलग-अलग अनुभव करेंगे। अगर आप सचेत हैं तो कोई हाथ बिलकुल मुर्दा मालूम पड़ेगा कि वह आदमी मिलना नहीं चाहता था। हाथ तो उसने हाथ में दे दिया है, लेकिन खुद को पीछे खींच लिया है। तो सिर्फ हाथ है वहां, आत्मा नहीं है। कोई आदमी तटस्थ मालूम पड़ेगा, कि ठीक है वह हाथ तक आया है, लेकिन आपमें प्रवेश नहीं करेगा, वहीं हाथ पर खड़ा रहेगा। जैसे दो व्यक्ति अपनी-अपनी सीमाओं पर, अपने-अपने घर के घेरे में खड़े हैं। कोई व्यक्ति को लगेगा कि उसके हाथ से ऊर्जा ने एक छलांग ली है और वह आप में प्रवेश कर गया है। उसने हाथ ही नहीं छुआ, आपके हदय तक अपने हाथ को फैलाया। अलग-अलग हाथ अलग-अलग स्पर्श देगा। लेकिन यह भी उसको ही देगा, जिसको स्पर्श बोध की क्षमता है। वह हमारा मर गया है। हमें किसी चीज में कुछ पता ही नहीं चलता / हमें खयाल ही नहीं आता कि हम चारों तरफ प्रतिक्षण अनंत संवेदनाओं से घिरे हैं, लेकिन उनका हम अनुभव नहीं कर रहे। कभी आराम से कुर्सी पर बैठकर ही अनुभव करें कि कितनी संवेदनाएं घट रही हैं : कुर्सी पर आपके शरीर का दबाव, कुर्सी का आपको स्पर्श; जमीन पर रखे आपके पैर; हवा का झोंका जो आपको छू रहा है; फूल की गंध जो खिड़की से भीतर आ गई है; चौके में बर्तनों की आवाज, बनते हुए भोजन की गंध जो आपके नासापुटों को छू रही है; छोटे बच्चे की किलकारी जो आपको छूती है और आह्लादित कर जाती है; किसी का चीत्कार, किसी का रोना जो आपको भीतर कंपित कर जाता है। पर रोज पन्द्रह मिनट कोई चुप बैठकर अपने चारों तरफ की संवेदनाओं का ही अनुभव करे तो भी बड़े गहरे ध्यान को उपलब्ध होने लगेगा। ___ इंद्रियां द्वार हैं—अदभुत द्वार हैं, और उनसे हम जीवन में प्रवेश करते हैं। लेकिन हमारी इंद्रियां बिलकुल मुर्दा हो गई हैं। द्वार बंद है, हम उनको खोलते ही नहीं / एक हैरानी की बात है कि हमारी इंद्रियां पशुओं से कमजोर हो गई हैं। कुत्ता आपसे ज्यादा सूंघता है, आश्चर्य की बात है! घोड़ा मीलों दूर से गंध ले लेता है, हम नहीं ले पाते! ध्वनि, पशु हमसे ज्यादा गहराई से सुनते हैं। सांप को आपने नाचते देखा? मदारी बजा रहा है अपनी बांसुरी या तुरही और सांप नाच रहा है। और वैज्ञानिक कहते हैं, सांप को कान नहीं हैं तो सांप सुन नहीं सकता। यह बड़ी मुश्किल की बात है। लेकिन हजारों साल की धारणा है कि सांप संगीत से आंदोलित होता है। और वैज्ञानिक कहते हैं, सांप को कान हैं ही नहीं, इसलिए सवाल ही नहीं उठता आंदोलित होने का / लेकिन वैज्ञानिक भी देखते हैं कि सांप बांसुरी की आवाज सुनकर नाचता है, तो मामला क्या है? खोज से पता चला कि, सांप पूरे शरीर से सुनता है। कान नहीं है। उसका रो-रोआं ध्वनि से आंदोलित होता है। उसके रोएं-रोएं से ध्वनि प्रवेश करती है। इसलिए उसके नाच की जो मस्ती है, वह आपके पास कितने ही अच्छे कान हों, तो भी नहीं है। लेकिन आप भी रोएं-रोएं से सुन सकते हैं; क्योंकि रोएं-रोएं से वायु प्रवेश करती है, और वायु के साथ ध्वनि प्रवेश करती है। __ आश्चर्य न होगा कि किसी आदि समय में मनुष्य पूरे शरीर से सुनता रहा हो; क्योंकि आप सिर्फ नाक से ही श्वास नहीं लेते हैं, आप पूरे शरीर से श्वास लेते हैं। और अगर आपकी नाक खुली छोड़ दी जाये, और पूरे शरीर को लीप-पोतकर बंद कर दिया जाये, तो आप तीन घंटे में मर जायेंगे, कितनी ही श्वास लें। क्योंकि हवा ध्वनि को ले जानेवाली है, सिर्फ कान में ही ध्वनि नहीं जा रही, पूरे शरीर में 250 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340040
Book TitleMahavir Vani Lecture 40 Panch Gyan aur Aath Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size102 MB
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