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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 हम आंगन की तरह छोटे-छोटे सत्यवाले लोग हैं। ___ तो महावीर कहते हैं कि निर्वाण है उसके लिये, जो 'कैवल्य' में पहुंच गया। निर्वाण नहीं है उसके लिये, जो अभी श्रुत में पड़ा है। संसार में जो खड़ा है, उसके लिए निर्वाण नहीं है। कहां है? क्योंकि जो मेरा अनुभव नहीं है, उसके होने का क्या अर्थ है? महावीर से कोई पूछता है, 'क्या संसार माया है ?' क्योंकि मायावादी हैं, वे कहते हैं. संसार माया है। महावीर कहते हैं, 'है' भी. 'नहीं' भी। क्योंकि जो संसार में खडा है, उसके लिये संसार माया नहीं है, और जो संसार के पार उठ गया, उसके लिये संसार माया है। वहां कुछ भी नहीं बचा, स्वप्न छूट गया। इंद्रधनुष दूर से देखे जाने पर है, पास से देखे जाने पर नहीं है। तो महावीर कहते हैं : सभी सत्य जो हम कहते हैं, आंशिक हैं, और उनसे विपरीत भी सच हो सकता है। ऐसा व्यक्ति अपने ज्ञान के आवृत करनेवाले कर्मों को काट देता है। मताग्रह बंधन है-अनाग्रह चित्त! ___ महावीर बड़े अदभुत हैं। अभी महात्मा गांधी ने एक शब्द चलाया-सत्याग्रह / महावीर उसको भी राजी नहीं हैं। कहते हैं, सत्य का भी आग्रह नहीं; क्योंकि जहां आग्रह आया, वहां असत्य आ जाता है। महावीर कहते हैं-अनाग्रह / हम तो असत्य का भी आग्रह करते हैं। क्योंकि मेरा असत्य आपके सत्य से मुझे ज्यादा प्रीतिकर मालूम पड़ता है / क्योंकि 'मेरा' है। मेरे असत्य के लिये मैं लडूंगा, मैं कहूंगा, यही सत्य है / क्यों...? इतनी लड़ाई क्या है? कारण है / अगर यह असत्य टूटता है, तो मैं टूटता हूं। इसके सहारे मैं खड़ा हूं। अगर मेरी सारी धारणाएं गलत हो जाएं, तो मैं गलत हो गया। लेकिन जो व्यक्ति ज्ञान की खोज में चला है, वह तैयार है पूरी तरह गलत होने को / जो पूरी तरह गलत होने के लिए तैयार है, वह पूरी तरह सही हो जायेगा। उसकी यात्रा शुरू हो गयी। ___ महावीर कहते हैं, दूसरा है दर्शन को आवृत्त करनेवाला—कर्मों का जाल / आपकी आंखों पर, आपके दर्शन पर भी पर्दा है। आप जो देखते हैं उसमें आपकी व्याख्या प्रविष्ट हो जाती है। समझिये। ____ मैंने सुना है, अमरीका का एक करोड़पति पिकासो के चित्र को खरीदकर ले गया। लाखों रुपये पिकासो के चित्र के दाम हैं / उसने लाखों रुपये खर्च किये, पिकासो का चित्र ले गया। उसने अपने बैठकखाने में उस चित्र को लगाया / वह उस की बड़ी प्रशंसा करता था। जो भी आता, उसे दिखाता कि कितने रुपये खर्च किये, कैसा अदभुत चित्र है। एक दिन पता चला खोज बीन से कि वह पिकासो का चित्र नकली है: पिकासो का बनाया हआ नहीं. किसी ने नकल की है। बात खत्म हो गई। वह जो संदर चित्र था बहमुल्य, उसका सौंदर्य खो गया, मूल्य खो गया / वह चित्र उसने उठाकर कबाड़खाने में डाल दिया। इस आदमी को सच में सौंदर्य दिखाई पड़ता था या सिर्फ खयाल था? अगर इसने अपनी आंखों से चित्र का सौंदर्य देखा होता तो यह कहता, 'क्या फर्क पड़ता है कि किसने बनाया? चित्र सुंदर है और बैठक में रहेगा। और लाखों रुपये का है, चाहे नकल ही क्यों न की गयी हो / उससे फर्क पड़ता है? यह चित्र अपने आप में सुंदर है, और जिसने नकल की है, वह पिकासो से बड़ा कलाकार है; क्योंकि पिकासो की नकल कर सका। शायद पिकासो भी अपने चित्र की नकल न कर सके / इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन चित्र उठाकर फेंक दिया गया, क्योंकि असली सवाल चित्र से नहीं था। पिकासो का है, इससे था। लेकिन कुछ महीने बाद पता चला कि वह धारणा गलत थी, चित्र पिकासो का ही है। चित्र उठाकर वापस बैठकखाने में लगा दिया गया / झाड़-पोंछ की गई उसकी फिर से, क्योंकि कचरा-कूड़ा उस पर जम गया था। और वह फिर से कहने लगा कि 'कैसा अदभूत चित्र है।' आपकी आंखें हैं या क्या-आप भी यही कर रहे हैं। 262 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340040
Book TitleMahavir Vani Lecture 40 Panch Gyan aur Aath Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size102 MB
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