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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 मैंने सुना है यह भी कि जनरल दीगाल ने एक बार अमरीका के प्रेसिडेंट जान्सन को कहा कि फ्रांस को बचाने के लिए परमात्मा से मुझे सीधे आदेश प्राप्त हुए थे; 'आई रिसीव्ड डाइरेक्ट आर्डर फ्राम दि डिवाइन टु सेव फ्रांस / ' जान्सन ने कहा, 'स्टेंज, बिकाज आई डोंट रिमेंबर टु हैव गिवन एनी आर्डर्स टु यू ! मैंने कभी कोई आज्ञाएं तुम्हें भेजी नहीं!' हर आदमी अपने अहंकार में बड़ा विस्तीर्ण है, बड़ा असीम है / एक ही असीम तत्व हम जानते हैं; वह है अस्मिता, वह है अहंकार, और उससे बड़ा झूठ कुछ भी नहीं है; क्योंकि मनुष्य के जो होने की जो शुद्धता है, वहां 'मैं' का कभी कोई अनुभव नहीं होता / जितना अशुद्ध होता है मनुष्य, उतना ही 'मैं' का अनुभव होता है। जैसे-जैसे शुद्ध होता जाता है, वैसे-वैसे मैं' तिरोहित होता चला जाता है। परम शुद्धि की अवस्था में 'मैं' बिलकुल भी नहीं बचता / जैसे सोने से कचरा जल जाता है अग्नि में, वैसा ही जीवन से अहंकार जल जाता है। अहंकार की खोल है बीज के चारों तरफ, अकुंर भीतर छिपा है। इसका यह मतलब नहीं कि अहंकार व्यर्थ ही है; बीज की खोल भी सार्थक है। क्योंकि वह जो भीतर अंकर छिपा है; वह, अगर बीज की खोल न हो तो हो भी नहीं सकता। इसलिए बीज की खोल जरूरी है एक सीमा तक, क्योंकि रक्षा करती है, बचाती है। और एक सीमा तक जो रक्षा करती है, वही फिर बाधा बन जाती है / फिर अगर खोल इनकार कर दे टूटने से, मिटने से तो भी बीज मर जायेगा। तो अहंकार बिलकल जरूरी है जीवन के बचाव के लिए. सरक्षा के लिए। जो बच्चा बिना अहंकार के पैदा हो जाये. वह बच नहीं सकेगा, क्योंकि जीवन संघर्ष है। उस संघर्ष में 'मैं' का भाव चाहिए। अगर 'मैं' का कोई भाव न हो तो वह मिट जायेगा। उसे दूसरे 'मैं' मिटा देंगे। उसे 'मैं' चाहिये, यह प्राथमिक जरूरत है। लेकिन एक सीमा पर यह 'मैं' इतना मजबूत हो जाये, कि जब इसे छोड़ने का क्षण आए तब भी हम छोड़ न सकें, तो खतरा हो गया। फिर जो सीढ़ी थी, वह बाधा बन गयी, फिर जिसका सहारा लिया था, वह गुलामी हो गई। ___ अहंकार जरूरी है प्राथमिक चरण में, और अंतिम चरण में टूट जाना जरूरी है / इसलिए जैसे ही बच्चा पैदा होगा, हम उसे अहंकार सिखाना शुरू करते हैं। लेकिन अगर कोई मरते वक्त भी अहंकार में ही मर जाये, तो बीज खोल में ही मर गया, अंकुरित नहीं हो पाया, और न उस अंकुर ने-उसने आकाश जाना ही न सूर्य का प्रकाश जाना / वह अंकर छिपा-छिपा अंधा अंधेरे में ही मर गया / वह अवसर खो गया। ___ जन्म के साथ तो अहंकार जरूरी है, मृत्यु के पहले खो जाना जरूरी है। और जिस व्यक्ति का अहंकार मृत्यु के पहले खो जाता है, उस की मृत्यु, महावीर कहते हैं, मोक्ष बन जाती है। - मरते हम सब हैं। अगर अहंकार के साथ मरते हैं, तो नये जीवन में फिर प्रवेश करना होगा, क्योंकि जीवन से अभी परिचय ही नहीं हो पाया। फिर नया जीवन, ताकि जीवन से हम परिचित हो सकें। अगर अहंकार के साथ ही हम मर गये, खोल के साथ ही मर गये तो फिर हमें बीज में जन्म लेना पड़ेगा। अगर खोल टूट गई और खुला आकाश मोक्ष, मुक्ति का हमें अनुभव हो गया, और जीवन खोल से मुक्त होकर आकाश की तरफ उड़ने लगा, तो फिर दूसरे जन्म की कोई जरूरत न रह जायेगी। शिक्षण पूरा हो गया; अवसर का लाभ उठा लिया गया; जो हम हो सकते थे, हो गये; जो होना हमारी नियति थी, वह पूर्ण हो गई; अर्थ, अभिप्राय, सिद्धि उपलब्ध हो गई। फिर दूसरे जन्म की कोई भी जरूरत नहीं।। अहंकार मर जाये मृत्यु के पहले, तो मोक्ष उपलब्ध हो जाता है। अब हम सूत्र को लें। क्योंकि महावीर कहते हैं, 'मुमुक्षु-आत्मा ज्ञान से जीवादिक पदार्थों को जानता है।' 228 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340039
Book TitleMahavir Vani Lecture 39 Mumuksha ke Char Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size73 MB
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