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________________ शान का कोई शिक्षण संभव नहीं है। शिक्षण सूचनाओं का हो सकता है। ज्ञान का उदभावन होता है, आविर्भाव होता है। ज्ञान कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो बाहर से भीतर डाली जा सके / ज्ञान जीवन की उस धारा का नाम है, जो भीतर से बाहर की ओर आती है। सूचनाएं बाहर से भीतर की ओर आती हैं, ज्ञान भीतर से बाहर की ओर आता है। इसलिए कोई विद्यालय, कोई विद्यापीठ ज्ञान नहीं दे सकता; सूचनाएं दे सकता है, इनफरमेशन्स दे सकता है। कोई शास्त्र, कोई गुरु ज्ञान नहीं दे सकता, सूचनाएं दे सकता है। जो ज्ञान दिया जा सकता है, वह ज्ञान नहीं होगा, इस मौलिक बात को ठीक से खयाल में ले लें। ___ ज्ञान आत्मा का स्वभाव है। उसे लेकर ही आप पैदा हुए हैं, जैसे बीज में वृक्ष छिपा हो-वैसे ज्ञान आपमें छिपा है। इसलिए ज्ञान को पाने के लिए कुछ और नहीं करना, सिर्फ बीज को तोड़ना है। बीज मिट्टी में खो जाए, मिट जाये, तो ज्ञान का अंकुरण शुरू हो जायेगा। ज्ञान को हम लेकर ही पैदा होते हैं। ज्ञान हमारे होने की आंतरिक स्थिति है। जो बीज की खोल है, वह बाधा है। इसलिए ज्ञान को पाने की प्रक्रिया नकारात्मक है, निगेटिव है / कुछ तोड़ना है, कुछ पाना नहीं है; कुछ मिटाना है, कुछ बनाना नहीं है, कुछ गिराना है, कुछ निर्मित नहीं करना है। अस्मिता टूट जाये, 'मैं का भाव टूट जाए, ज्ञान का जन्म हो जाता है। ___ इसलिए महावीर ने कहा है : अहंकार के अतिरिक्त और कोई अज्ञान नहीं। और जिस ज्ञान को हम बाहर से भीतर ले जाते हैं, वह भी हमारे अहंकार को ही मजबूत करता है। अहंकार टूटना चाहिये; उल्टा मजबूत होता है। जितना हम जानने लगते हैं, जितना हमें खयाल आता है कि मैं जान गया, उतना ही 'मैं' मजबूत हो जाता है। जिसे हम ज्ञान कहते हैं, वह हमारे अहंकार का भोजन बन जाता है। महावीर जिसे ज्ञान कहते हैं, वह अहंकार की मृत्यु पर घटित होता है / इस फर्क को ठीक-से समझ लेना जरूरी है। और हमारे 'मैं' की कोई सीमा नहीं है / हम कहते हैं कि 'परमात्मा असीम है', हम कहते हैं कि आत्मा असीम है, हम कहते हैं, 'सत्य असीम है', लेकिन वे सब सुने हुए शब्द हैं। हमारी अपनी अनुभव की तो बात इतनी ही है कि 'अहंकार असीम है' और अहंकार असत्य है। ___ मैंने सुना है, जनरल दीगाल एक रात अपने बिस्तर पर सोये हैं। मैडम दीगाल ने आधी रात कहा, 'माई गाड, इट इज सो कोल्ड-हे भगवान, रात बहुत सर्द है।' दीगाल ने करवट बदली और कहा, 'मैडम, इन बेड यू कैन काल मी चार्ल्स-रात बिस्तर में तुम मुझे चार्ल्स कहकर बुला सकती हो।' पत्नी कह रही है, 'हे भगवान, रात बड़ी सर्द है', और दीगाल ने समझा कि 'हे भगवान' पत्नी उनसे कह रही है ! अहंकार असीम है। 227 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340039
Book TitleMahavir Vani Lecture 39 Mumuksha ke Char Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size73 MB
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