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________________ मुमुक्षा के चार बीज का अंत न हो, तो उतनी उत्तेजना पैदा नहीं होती, क्यों? ___ अगर कहानी बिलकुल सुखांत हो तो उसमें रस ज्यादा नहीं आयेगा, क्योंकि सुख दूसरे को मिल रहा हो तो हमें कोई रस नहीं आता। दुख दूसरे को मिल रहा हो, तो ही हमें रस आता है। इसलिए दुनिया में नब्बे प्रतिशत कहानियां दुखांत लिखी जाती हैं, केवल दस प्रतिशत सुखांत लिखी जाती हैं। और वह दस प्रतिशत भी बाजार में टिक नहीं पाती हैं, दुखांत कहानियों के मुकाबले। ___ आदमी अजीब है। अगर दुख का अनुभव हो तो वह उसे भूलने की कोशिश करता है। जीवन के ढंग को बदलने की नहीं, ताकि दुख से ऊपर उठ जाये, और वे कारण मिट जायें जिनसे दुख पैदा होता है / जब कोई व्यक्ति दुख को मिटाने की तैयारी करता है, भुलाने की नहीं तो मुमुक्षा का जन्म होता है, तो मोक्ष की खोज शुरू हो जाती है। ___ दर्शन से श्रद्धा और चारित्र्य श्रद्धा से / श्रद्धावान ही चारित्र्य को उपलब्ध होता है / जब अपना अनुभव बता देता है कि क्या सही है और क्या गलत है, और जब अपने अनुभव पर भरोसा प्रगाढ़ हो जाता है, तो चरित्र बदलना शुरू हो जाता है / जो सही है, उस दिशा में चरित्र अपने-आप बहने लगता है। वैसे ही, जैसे पानी ढाल की तरफ बहता है। जो गलत है, उस तरफ से जीवन अपने-आप मुड़ना शुरू हो जाता है / गलत की तरफ से मुड़ना पड़ता है हमें, क्योंकि हमारे जीवन में कोई श्रद्धा और कोई अनुभव नहीं है। सही को लाने की कोशिश करनी पड़ती है, क्योंकि हमारे जीवन में कोई श्रद्धा नहीं है। ममक्षा हो, ज्ञान हो, दर्शन हो, श्रद्धा हो तो चारित्र्य ऐसे आता है, जैसे छाया आपके पीछे आती है। उसको लाना नहीं पड़ता। आप रुक-रुककर पीछे देखते नहीं कि छाया आ रही है, कि नहीं आ रही है-आती है। श्रद्धा की छाया है चारित्र्य। अश्रद्धावान दुष्चरित्र हो जाता है, श्रद्धावान चरित्र को उपलब्ध हो जाता है। लेकिन श्रद्धा का आप अर्थ समझ लेना, महावीर का अर्थ श्रद्धा का क्या है ? श्रद्धा कोई ऐसी बात नहीं है कि आपने मेरी बात मान ली तो श्रद्धा हो गई। जब तक आपके अनुभव से मेल न खा जाये, तब तक श्रद्धा न होगी। तो महावीर की बात आप सुन रहे हैं, उसे थोड़ा जीवन में प्रयोग करना / जहां-जहां लगेगा कि महावीर जो कहते हैं, वह जीवन से मेल खाता है, वहीं-वहीं श्रद्धा का जन्म होगा। जहां-जहां श्रद्धा का जन्म होगा, वहीं-वहीं चरित्र की छाया पीछे चलने लगेगी। __ठीक के विपरीत जाना असंभव है, लेकिन सभी लोग ठीक के विपरीत चले गये हैं। यूनान में बहुत पुराना विवाद था, सुकरात ने उठाया / सकरात ने कहा कि ठीक के विपरीत जाना असंभव है। सैंकडों वर्ष तक विवाद चला, और सैंकडों दार्शनिकों ने कहा कि सकरात की बात ठीक नहीं है, क्योंकि हमें पता है कि ठीक क्या है? फिर भी हम विपरीत जाते हैं। अनुभव तो यही कहता है बाहर का, जगत का कि लोगों को मालूम है कि ठीक क्या है। आपको मालूम नहीं है कि ठीक क्या है? आपको बिलकुल मालूम है कि ठीक क्या है, फिर भी आप विपरीत जाते हैं। लेकिन ये सुकरात, महावीर, बुद्ध, कृष्ण-ये बड़ी उल्टी बातें कहते हैं / ये कहते हैं कि ठीक के विपरीत जाना असंभव है। ___ ज्ञान चरित्र है / तब जरूर कहीं न कहीं कोई भूल-चूक हो रही है, हमारे शब्दों में कहीं कोई अड़चन हो रही है। हम जिसको ठीक का ज्ञान कहते हैं, वह ज्ञान ही नहीं है, सिर्फ जानकारी है / वही अड़चन हो रही है। आपको भी पता है कि सत्य बोलना चाहिए। आपको इसका बोध है। लेकिन यह सुना हुआ बोध है / किसी ने आपको कहा है; पिता ने कहा है, गुरु ने कहा है, शास्त्र से पढ़ा है, हवा है चारों तरफ कि सत्य बोलना चाहिये. लेकिन जब कठिनाई आती है तो आप जानते हैं कि झठ बोलकर बचा जा सकता है। वही है कि सत्य बोलकर फंसेंगे, झूठ बोलकर बचेंगे। और सभी बचना चाहते हैं। वह बचाव-असल में आपका ज्ञान यही है कि झूठ बोलकर बचा जा सकता है। 235 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340039
Book TitleMahavir Vani Lecture 39 Mumuksha ke Char Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size73 MB
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