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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 सारी जमीन आपको नीचे की तरफ खींचती है। जब आप क्रोध में होते हैं, तब आप वजनी हो जाते हैं / जब आप करुणा में होते हैं, तब आप हल्के हो जाते हैं। ___ अपने ही भीतर निरंतर कसना है और खोजना है कि क्या मुझे मुक्त करता है और क्या मुझे बांधता है? क्या है अधर्म और क्या है धर्म? ये प्रत्येक व्यक्ति को रोज-रोज कसकर जानने की बातें है। इनके कोई बंधे सूत्र वेद में उपलब्ध नहीं हैं। यही महावीर का आग्रह है, कोई किताब नहीं है जो आपके लिए काम दे देगी। किसी किताब के सहारे चलकर आपके भटकने की संभावना है, बजाय पहंचने की; क्योंकि हर किताब किसी व्यक्ति का निजी अनुभव है। और व्यक्ति भिन्न-भिन्न हैं। और धर्म का प्रत्येक व्यक्ति का अपना प्राथमिक अनुभव अलग-अलग होगा। __ गुरजिएफ के पास लोग पहुंचते थे, तो गुरजिएफ कभी-कभी बड़ी हैरानी की बातें खड़ी कर देता था जो हम सोच भी नहीं सकते कि धर्म हो सकती हैं। एक आदमी गुरजिएफ के पास पहुंचता है जिसने कभी सिगरेट नहीं पी, और एक आदमी पहुंचता है जो सिगरेट का आदी है और सिगरेट नहीं छोड़ सकता / तो जो सिगरेट का आदी है, उसको गुरजिएफ कहेगा कि 'सिगरेट बंद', और जिसने कभी नहीं पी, और जो दुश्मन है, जो कहता है कि 'पी लूं तो मुझे उल्टी हो जाये', उसको कहेगा कि 'तू शुरू कर!' हम सोच भी नहीं सकते कि उसका क्या प्रयोजन है! आदत बांधती है। फिर चाहे वह सिगरेट पीने की हो और चाहे सिगरेट न पीने की हो। आदत अधर्म है। ___ तो गुरजिएफ बड़ी उल्टी बात कह रहा है। वह जिसने कभी नहीं पी है, जो कहता है 'मैं, अगर कोई दूसरा भी पी रहा हो तो मेरे भीतर मतली खड़ी हो जाती है, उल्टी होने लगती है', उसे गुरजिएफ कहता है : तू पी, क्योंकि तू भी एक आदत में कुंद है, और यह भी एक आदत में कुंद है। इसको भी इसकी आदत के बाहर लाना है, तुझे भी तेरी आदत के बाहर लाना है। आदत अधर्म है। ___ गुरजिएफ को महावीर का कोई पता नहीं था, नहीं तो वह बड़ा खुश हुआ होता / लेकिन आपको पता है कि महावीर को माननेवालों को यह खयाल है कि आदत अधर्म है? नहीं, वे कहते हैं कि अच्छी आदतें धर्म हैं, बुरी आदतें अधर्म है। अच्छी और बुरी आदत का बड़ा सवाल नहीं है। आदत आपको जड़ बनाती है, तरलता खो जाती है। फिर आदत कुछ भी हो, चाहे रोज सुबह उठकर सामायिक करने की हो, या प्रार्थना करने की हो-अगर आदत है! ___ मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, 'आज ध्यान नहीं किया तो अच्छा नहीं लग रहा।' और जो आदमी सिगरेट पीता है, अगर वह भी नहीं पीता है तो उसको भी अच्छा नहीं लगता, फर्क क्या है? मगर जो सिगरेट न पिये और अच्छा न लगे तो हम कहेंगे-हिम्मत रखो, डटे रहो, ध्यानवाले से हम कहेंगे नहीं, ध्यान करना चाहिए था! मगर यह भी एक आदत का गुलाम हो रहा है, एक आदत इसके आस-पास घेरा बांध रही है। ___ बड़े मजे की बात है, लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं, ध्यान से कछ आनंद तो नहीं आता, लेकिन अगर न करो तो तकलीफ होती है। वही तो सिगरेटवाले की भी तकलीफ है / वह भी कहता है-सिगरेट पीने से कुछ मिल नहीं रहा है, लेकिन न पीओ तो बेचैनी होती है। ___ आदत का अर्थ यह है कि कुछ करने की एक यांत्रिक व्यवस्था बन गई है। उस यांत्रिकता में चलो तो ठीक लगता है, उस यांत्रिकता से हटो तो गलत लगता है। __ अयांत्रिक होना, धार्मिक होना, नान-मैकेनिकल होना है। कोई आदत पकड़े न, कारागृह न बने / और आदत से चेतना सदा मुक्त रहे / चेतना कभी आदत के नीचे न दबे, सदा आदत के ऊपर हावी रहे, और हमारे हाथ में हो। इसका यह मतलब नहीं है कि आप ध्यान न करें, इसका मतलब सिर्फ इतना है कि ध्यान भी आदत न हो। नहीं तो प्रेम भी आदत हो जाता है, ध्यान भी आदत हो जाता है। 190 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340037
Book TitleMahavir Vani Lecture 37 Vikas ki aur Gati Hai Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size92 MB
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