SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विकास की ओर गति है धर्म मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी भाग गई थी तो वह छाती पीट-पीटकर रो रहा था / मित्रों ने सलाह दी कि ऐसा भी क्या है, छह महीने में सब घाव भर जायेगा, तुम फिर किसी के प्रेम में गिरोगे, फिर तुम शादी करोगे, ऐसा मत जार-जार होकर रोओ। सभी घाव भर जाते हैं, सिर्फ समय की बात है। मुल्ला ने कहा, छह महीने, और आज रात मैं क्या करूंगा? वे पत्नी के लिए रो भी नहीं रहे हैं। एक आदत है। तो सेक्स भी आदत हो जाती है, प्रेम भी आदत हो जाती है। अच्छी हैं, बुरी आदतें हैं, पर धर्म की फिकर इस बात की है कि आदत न हो, आप मुक्त हों। कोई भी चीज बांधती न हो, किसी चीज़ का व्यसन न हो। ऐसी मक्ति आपको धर्म की दिशा में ले जायेगी। और व्यसन कुछ भी हों-धार्मिक व्यसन हों, कि रोज जाकर धर्म की चर्चा सुननी, कि रोज मंदिर जाना है, नहीं कह रहा हूं कि रोज मंदिर मत जायें। लेकिन रोज मंदिर जाना आदत बन जाये, तो मुर्दा बात हो गई, आप यंत्र की भांति जाते हैं और आते हैं, कोई परिणाम नहीं है। मंदिर तो चेतना को मुक्त करे, ऐसा चाहिये। महावीर का यह सूत्र बड़ा विचारणीय है : धर्म द्रव्य का लक्षण है, गति / तो जहां-जहां आप गत्यात्मक हैं, डायनैमिक हैं, वहां-वहां धर्म है। लेकिन जैन साधुओं को देखें, उनसे ज्यादा अगति में लोगों को पाना कठिन है / जैन साधु को कोई गत्यात्मक नहीं कह सकता, कि उसमें गति है। उसमें गति है ही नहीं। ढाई हजार साल पहले जो जैन साधु की लक्षणा थी, वही अब भी है। ढाई हजार साल में समय जैसे बहा ही नहीं, चीजें बदली ही नहीं। वह अभी भी वहीं जी रहा है, जहां वह ढाई हजार साल पहले था। सब कुछ बदल गया है, लेकिन वह अपनी आदतों से जकड़ा है, वह वहीं खड़ा है। फिर भी वह सूत्र रोज पढ़ता है कि धर्म का लक्षण है गति / अगर धर्म का लक्षण है गति, तो जैन साधु से ज्यादा क्रांतिकारी व्यक्तित्व दूसरा नहीं होना चाहिये / उसे तो रुकना ही नहीं चाहिये / उसे तो जीवन के प्रवाह में गतिमान होना चाहिये। __ लेकिन वह ठहरा हुआ है जड़ की तरह, पत्थर की तरह। और जितना पथरीला हो, उतने अनुयायी कहते हैं कि तपस्वी है। और अगर उसमें जरा-सी भी हलन-चलन दिखाई पड़े, जरा-सा कुछ अंकुरित होता दिखाई पड़े, तो वह आदमी विद्रोही है, वह आदमी ठीक नहीं है, वह मार्ग से च्युत हो गया। अगर गति दिखाई पड़े तो मार्ग से च्युत है, अगर अगति दिखाई पड़े तो बिलकुल ठीक है। __ हम सब अगति के पूजक हैं, हम सब अधर्म के पूजक हैं, इसलिए हम सब आर्थोडाक्स हैं। ध्यान रहे, अगर महावीर की बात हमारे खयाल में आ जाये तो आर्थोडाक्स धर्म जैसी कोई चीज नहीं हो सकती, या हो सकती है? जो भी आर्थोडाक्स होगा, रूढ़ होगा, वह अधर्म होगा। धर्म तो सिर्फ क्रांतिकारी ही हो सकता है। धर्म का कोई रूप जड़ नहीं हो सकता / धर्म प्रवाहमान होगा, उसमें गति होगी। __ मैं तो कहता हं कि धर्म यानी क्रांति / और जिस दिन धर्म क्रांति नहीं रहता उस दिन संप्रदाय बन जाता है। और जैसे ही संप्रदाय बनता है, वैसे ही व्यर्थ बोझ और कारागृह हो जाता है। धर्म का लक्षण है, गति / अधर्म का लक्षण है, स्थित, स्टेटिक, ठहरे होना। आप अगर ठहरे हैं, तो अधार्मिक हैं; चाहे रोज मंदिर जा रहे हों, चाहे रोज पूजा कर रहे हों; अगर ठहरे हैं, तो अधार्मिक हैं। अगर गति कर रहे हैं, नदी की तरह बह रहे हैं, तालाब की तरह बन्द नहीं हैं - रोज सागर की तरफ जा रहे हैं, और भयभीत भी नहीं हैं कि कल क्या होगा, कल का आनंदपूर्ण स्वीकार है, स्वागत है, तो आप धार्मिक हैं। लेकिन हमारा मन स्थिति को पकड़ता है / इसे थोड़ा समझ लें। __हमारा मन सदा स्थिति को पकड़ता है, क्यों? क्योंकि मन के लिए सुविधापूर्ण है। जब भी कुछ नई बात होती है, तो मन को असुविधा होती है। क्योंकि मन को नई बात सीखनी पड़ती है। जब भी कोई नई घटना घटती है, तो मन को फिर से समायोजित होना पड़ता है, री-एडजस्टमेंट करना पड़ता है। इसलिए मन हमेशा आदतें पसंद करता है। क्योंकि आदतों के साथ कुछ नया नहीं है, सब पुराना है, 191 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340037
Book TitleMahavir Vani Lecture 37 Vikas ki aur Gati Hai Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size92 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy