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________________ विकास की ओर गति है धर्म यह भी प्रत्येक व्यक्ति को सोचने जैसा है कि क्या उसे परमात्मा की तरफ ले जायेगा। जरूरी नहीं है कि दूसरा जिस ढंग से परमात्मा की तरफ जा रहा है, उसी ढंग से आप भी जा सकेंगे; क्योंकि दूसरा अलग बिंदु पर खड़ा है और आप अलग बिंदु पर खड़े हैं, दूसरा स्थति में खड़ा है, आप अलग स्थिति में खड़े हैं। और कभी-कभी दूसरे के पीछे चलकर आप उलझन में पड़ जाते हैं। और ऐसा भी नहीं है कि दूसरा गलत था, अपने लिए ठीक रहा हो / इसलिए धर्म बड़ी व्यक्तिगत खोज है। सुना है मैंने कि मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन लंगड़ा-लंगड़ाकर चल रहा है रास्ते पर / एक मित्र मिल गया और मित्र ने कहा कि यही तकलीफ मुझे भी थी। दांत मैंने निकलवा दिये, तब से बिलकुल चंगा हो गया। नसरुद्दीन ने सोचा कि कोई हर्ज तो है नहीं। दांत निकलवाने में क्या हर्ज है। दांत निकलवा दिये। लंगड़ाना तो जारी रहा, मुंह और खराब हो गया! दुसरा मित्र मिल गया। मित्रों की कोई कमी तो है नहीं। उसने कहा कि क्या! दांत से कुछ होनेवाला नहीं। तकलीफ यही मुझे भी थी, अपेन्डिक्स निकलवा दी, तब से बिलकुल चंगा हो गया हूं! ___ मुल्ला ने सोचा कि अपेन्डिक्स का कोई उपयोग तो है नहीं, निकलवा दी। हालत और खराब हो गई, कमर और झुक गई। तीसरा मित्र मिल गया, उसने कहा कि क्या कर रहे हो? अपेन्डिक्स और दांतों से कुछ होनेवाला नहीं-टान्सिल्स असली तकलीफ है / मैंने निकलवा दिये, तब से बिलकुल जवान हो गया। मुल्ला ने टान्सिल्स भी निकलवा दिये, कुछ लाभ न हुआ। लेकिन एक दिन पहला मित्र मिला, और देखा कि मुल्ला बिना लंगड़ाए शान से चल रहा है। उसने कहा कि अरे, मालूम होता है कि दांत निकलवा दिये, फायदा हो गया। मुल्ला ने कहा कि दांत निकलवाने से भी नहीं हुआ, अपेन्डिक्स निकलवाने से भी नहीं हुआ, टान्सिल्स निकलवाने से भी नहीं हुआ-जूते में एक कील थी, उसको निकलवाने से सब ठीक हो गया...! __ मित्रों से सावधान! गुरुओं से सावधान! हो सकता है उनको दांत निकलवाने से लाभ हुआ हो। कोई उनकी गलती नहीं है। लाभ हो सकता है। तकलीफ क्या थी, इस पर निर्भर है। __ आप अपनी तकलीफ पहचान लें, अपनी स्थिति, अपना बिंदु, वहीं से यात्रा होगी। आप, जहां से महावीर बोल रहे हैं, वहां से यात्रा नहीं कर सकते; जहां से मैं बोल रहा है, वहां से यात्रा नहीं कर सकते, जहां से कोई भी बोल रहा हो, वहां से यात्रा नहीं कर सकते; आप तो यात्रा वहीं से करेंगे, जहां आप खड़े हैं। इसलिए अपने जीवन में एक सतत निरीक्षण चाहिए कि क्या है जो मुझे रोक रहा है? क्या है जिससे मैं कुंद हो गया, पत्थर हो गया? क्या है जिससे मैं जड़ हो गया हूं? और क्या है जो मुझे खोलेगा? और क्या मुझे खोलता है? तब आपको किसी गुरु के पीछे चलने की जरूरत न होगी। आप अपने गुरु हो जायेंगे / और जब व्यक्ति अपना गुरु हो जाता है, और शांत निरीक्षण करता है अपनी जीवन स्थिति का, तो बहुत कठिन नहीं होता धर्म को जान लेना—कि धर्म क्या है? आप अगर खुद ही निरीक्षण करेंगे, तो आप पायेंगे क्रोध आपको बांधता है, रोकता है, जड़ कर देता है, मूर्छित करता है, होश खो जाता है, आप रुग्ण होते हैं, अस्थायी रूप से पागल हो जाते हैं। मनोवैज्ञानिक तो कहते हैं क्रोध, टेंपररी मैडनेस है। पागल जो स्थायी रूप से होता है क्रोध में, आप अस्थायी रूप से हो जाते हैं! बाकी आप हो वही जाते हैं। __ आप नीचे गिर रहे हैं, बहिर-आत्मा हो रहे हैं। जब आप किसी के प्रति दया और करुणा से देखते हैं, तो ठीक उल्टी घटना घटती है, क्रोध से उल्टी। आप खुलते हैं-बंधते नहीं, मुक्त होते हैं / खूटी टूटती है, नाव खुलती है, आप बहते हैं। जब भी आप करुणा के क्षण में होते हैं, तब आप पाते हैं शरीर का बोझ खो गया। जब आप क्रोध में होते हैं, तो पूरा ग्रेविटेशन, 189 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340037
Book TitleMahavir Vani Lecture 37 Vikas ki aur Gati Hai Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size92 MB
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