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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 यह फैलेसी है, यह भ्रांति है। सदा भीतर लौट आयें। कोई गाली दे, तो हमारा ध्यान, पता है कहां जाता है? देनेवाले पर जाता है / सदा जब कोई गाली दे तो ध्यान वहां जाये, जिसको गाली दी गयी है। जब कोई क्रोध में आग-बबूला हो, तो उस पर ध्यान न दें, उस क्रोध का जो परिणाम आप पर हो रहा है, भीतर जो क्रोध उबल रहा है, उस पर ध्यान दें। जब भी कहीं कोई आपको लगे कि ध्यान का कारण बाहर है, तत्काल आंख बन्द कर लें और ध्यान को भीतर ले जायें, तो आपको अपने परम शत्रु से मिलन हो जायेगा। वह आप ही हैं। और जिस दिन आपको अपने परम शत्र से मिलन होगा, उसी दिन आप जीतने की यात्रा पर निकलेंगे। ___ और मजा यह है कि स्वयं को न जानने से ही वह शत्रु है / और जैसे-जैसे ध्यान भीतर बढ़ने लगेगा, वैसे-वैसे स्वयं का जानना बढ़ने लगेगा / और जो शत्रु था, वह एक दिन मित्र हो जायेगा / जो जहर है, वह अमृत हो जाता है, सिर्फ ध्यान के जोड़ को बदलने की बात है। सारी कीमिया. सारी अल्केमी एक है। टांसफर आफ अटेंशन, ध्यान का हटाना / गलत जगह ध्यान दे रहे हैं, और जहां देना चाहिए, वहां नहीं दे रहे हैं। ___ बस, इतना ही हो पाये कि मैं ध्यान आब्जेक्ट से हटाकर सब्जेक्ट पर बदल दूं, विषय से हटा लूं, विषयी पर चला जाऊं। जो कुछ भी हो रहा है, मेरा जगत मैं हूं, और सारे कारण मेरे भीतर हैं। अपमान हो, सुख हो, दुख हो, प्रीति हो, सम्मान हो, जो कुछ भी हो, तत्काल मौके को मत चूकें / फौरन ध्यान को भीतर ले जायें और देखें, भीतर क्या हो रहा है। जल्दी ही भीतर का शत्रु मिल जायेगा। फिर ध्यान को बढ़ाये चले जायें / उसी शत्रु के भीतर छिपा हुआ परम मित्र भी मिल जायेगा / उस परम मित्र को महावीर ने आत्मा कहा है। वह परम मित्र सबके भीतर छिपा है, लेकिन हमने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया है। आज इतना ही। कीर्तन करें, और फिर जायें / 156 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340035
Book TitleMahavir Vani Lecture 35 Aap hi Hai Apne Param Mitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size70 MB
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