________________ अकेले ही है भोगना अगर मैं ही जिम्मेवार हूं तो मैं मुक्त भी हो सकता हूं। अगर दूसरे भी जिम्मेवार हैं...अगर आप मुझे दुख दे सकते हैं, सुख दे सकते हैं, अगर आप मुझे आनंदित कर सकते हैं और पीड़ित कर सकते हैं तो फिर मेरी मुक्ति का कोई उपाय नहीं है / फिर आपके ऊपर मैं निर्भर हूं। आप मेरी मर्जी पर निर्भर हैं, मैं आपकी मर्जी पर निर्भर हूं / तब तो सारा संसार एक जाल है / उस जाल में से कोई हिस्सा नहीं छूट सकता। ___ महावीर कहते हैं, प्रत्येक व्यक्ति कितने ही संसार के बीच में खड़ा हो, अकेला है, टोटली अलोन, एकांतरूपेण, अकेला है। इस अकेलेपन को समझ ले तो संन्यास फलित हो जाता है, वह जहां भी है। इस अकेलेपन के भाव को समझ ले तो संन्यास फलित होता है, चाहे वह कहीं भी हो। अपने को अकेला जानना संन्यास है, अपने को साथियों में जानना संसार है। मित्रों में, परिवार में, समाज में, देश में, बंधा हुआ अंश की तरह जानना संसार है / मुक्त, अलग, टूटा हुआ, अकेला, आणविक, एटामिक, अकेला अपने को जानना संन्यास है। आज इतना ही। पांच मिनट कीर्तन करें। 115 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org