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________________ अकेले ही है भोगना है। और दगा यह आदमी पत्नी को पहले से ही दे रहा है। इसका कोई लेना-देना नहीं है पत्नी से। वह रुपया ही सारा-सारा हिसाब-किताब है। यह मन तो भीतर वही का वही है। अगर यह कल फिर शादी कर ले तो फिर यही करेगा। ___ पश्चिम में मनसविद जिन लोगों के तलाकों का अध्ययन करते हैं, वे कहते हैं, बड़ी हैरानी की बात है, आदमी एक स्त्री से शादी करता है, तलाक देकर दूसरी से शादी करता है। फिर दूसरी बार भी वैसी ही स्त्री चुन लेता है जैसी पहली बार चुनी थी। एक आदमी ने आठ बार तलाक किया / सॉल्टर ने उसकी पूरी जिन्दगी का विवरण दिया है, और हर बार उसने सोचा कि अब दुबारा ऐसी पत्नी नहीं चुनूंगा। और हर बार फिर वैसी ही पत्नी चुन ले / छह महीने बाद उसे पता चला कि वह फिर वैसी ही पत्नी चुन लाया है। ___ भारतीय इसलिए कुशल थे कि नाहक परेशान क्यों करना! एक ही पत्नी चुननी है बार-बार, तो एक से निपटा लेने में हर्जा क्या है? कम से कम इतनी राहत तो रहेगी कि मौका मिलता तो दूसरी भी चुन सकते थे। चुन नहीं सकते हैं आप। और इसलिए भारतीय बड़े अदभुत थे कि वे पत्नी के चुनाव का काम खुद को नहीं देते थे, मां-बाप से करवा लेते थे, जो ज्यादा अनुभवी थे। जो जिन्दगी देख चुके थे और जिन्दगी की नासमझियां समझ चुके थे। इसलिए हमने व्यक्तियों के ऊपर नहीं छोड़ा था चनाव। __ अमरीका में सॉल्टर ने कहा कि इस आदमी ने आठ दफा शादी की और हर बार वैसी ही पत्नी फिर चुन लाया / कारण क्या है? चुनाव जिस मन से होता है वह तो वही है / इसलिए मैं दूसरा चुन भी कैसे सकता हूं? मुझे एक स्त्री की आवाज अच्छी लगती है, आंख अच्छी लगती है, चलने का ढंग अच्छा लगता है, शरीर की बनावट अच्छी लगती है, अनुपात पसन्द पड़ता है, उठना-बैठना पसन्द पड़ता है, व्यवहार पसंद पड़ता है, इसलिए मैं चुनता हूं। ___ जब मैं एक स्त्री को चुनता हूं तो मैं अपने मन को ही चुनता हूं, उसको नहीं चुनता, मेरी पसन्दगी को चुनता हूं। फिर यह स्त्री उपद्रवी मालूम पड़ती है, झगड़ालू मालूम पड़ती है। फिर इसमें दूसरे गुण दिखायी पड़ने शुरू होते हैं, तब मैं इसे तलाक देता हूं। फिर दुबारा मैं एक स्त्री चुनता हूं। मैं फिर वही गुण खोजूंगा जो मैंने पहली स्त्री में खोजे थे, और हर गुण के साथ जुड़ा हुआ दुर्गुण है। जो स्त्री एक खास ढंग से चलती है उसमें खास तरह का दुर्गुण होगा, और जो स्त्री एक खास तरह से मुझे पसन्द पड़ती है, उसका दूसरा पहलू भी खास ढंग का होगा, जो मझे दिक्कत देगा। पहली स्त्री में मैंने उसका चेहरा चन लिया. मैंने पर्णिमा चन ली. लेकिन अमावस भी वह अमावस भी आयेगी। और जब अमावस आयेगी तब मुझे तकलीफ होगी। तब मैं कहूंगा, यह मैंने फिर भूल कर ली। लेकिन फिर तीसरी बार मैं चुनूंगा, लेकिन फिर मैं पूर्णिमा चुनूंगा। फिर अमावस होगी। ___ हर व्यक्तित्व के कैरेक्टर हैं / जो मुझे पसन्द पड़ता है उसके साथ जुड़ी हुई बात भी है। वह बात मुझे दिखायी नहीं पड़ रही है। वह जब दिखायी पड़ेगी, तब समझ में आयेगा / वह आदमी आठ दफा हर बार एक-सी स्त्रियां चुन लेता है। इसे समझें। एक आदमी को ऐसी स्त्री पसन्द है जो बिलकुल दब्बू हो / हर बात में उसकी मानकर चले / लेकिन दब्बूपन भी एक तरकीब है दूसरे को दबाने की। दब्बू भी बिलकुल दब्ब नहीं होते। वह अपने दब्बपन से भी दबाते हैं। __तो एक स्त्री आपने चुन ली कि दब्बू है, मानकर चलेगी, सब ठीक है। लेकिन यह पहला चेहरा है। यह सिर्फ शुरुआत है, यह खेल का प्रारंभ है, नियम हैं खेल के / आपको दब्बू स्त्री पसन्द है तो पसन्द पड़ गयी, लेकिन कोई आदमी दब्बू नहीं है भीतर से / कोई हो ही कता दब्बू / तो जैसे ही काम पूरा हो गया, शादी हो गयी, रजिस्ट्री हो गयी, अब वह दब्बूपन खिसकना शुरू हो जायेगा। वह तो सिर्फ तरकीब थी। वह उस व्यक्ति की तरकीब थी आपको पकड़ने की। वह तो मछली के लिए कांटे पर जो आटा लगा था, वही था। लेकिन कोई आटा खिलाने के लिए नहीं बैठा रहता जाकर मछलियों को। वह कांटा खिलाने के लिए बैठा रहता है। जरूरी नहीं कि उसको भी पता हो, वह भी शायद सोचता हो कि आटा खिला रहे हैं मछलियों को / लेकिन आटा जब मंह में चला जायेगा तो कांटा अटक 111 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340033
Book TitleMahavir Vani Lecture 33 Akele hi hai Bhogna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size74 MB
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