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________________ अकेले ही है भोगना कभी भी नहीं। क्योंकि जिस दिन आप ऐसा समझ लेंगे, उस दिन आपके जीवन में क्रांति घटनी शुरू हो गयी, उस दिन आपने धर्म के मन्दिर में प्रवेश करना शुरू कर दिया। ___ हम सदा सोचते हैं, दुखी हो रहे हैं दूसरे के कारण / कभी ऐसा नहीं लगता कि अपने कारण दुखी हो रहे हैं। न वह गाली देता, न हम दुखी होते / न उस आदमी ने हमारी चोरी की होती, न हम दुखी होते / न वह आदमी पत्थर मारता, न हम दुखी होते। साफ ही है बात कि दूसरे हमें दुख दे रहे हैं इसलिए हम दुखी हो रहे हैं। अगर कोई हमें दुख न दे तो हम दुखी न होंगे। यह बात इतनी तर्कपूर्ण लगती है हमारे मन को कि दूसरी बात का खयाल ही नहीं आता कि हम अपने कारण दुखी हो रहे हैं। पति पत्नी के कारण, बेटा मां के कारण, भाई भाई के कारण, हिन्दुस्तान पाकिस्तान के कारण, पाकिस्तान हिन्दुस्तान के कारण, हिन्दू मुसलमान के कारण, मुसलमान हिन्दुओं के कारण; सब किसी और की वजह से दुखी हो रहे हैं। राजनीति का मौलिक आधार यह सूत्र है, कि दुख दूसरे के कारण है। और धर्म का यह मौलिक सूत्र है, कि दुख अपने कारण है। सारी राजनीति इस पर खड़ी है कि दुख दूसरे के कारण है। इसलिए दूसरे को मिटा दो, दुख का कारण मिट जायेगा / या दूसरे को बदल डालो, दुख का कारण मिट जायेगा। या परिस्थिति को दूसरा कर लो, दुख मिट जायेगा। दुनिया में दो तरह की बुद्धियां हैं—राजनीतिक और धार्मिक / और ये दो सूत्र हैं उनके आधार में, अगर आप सोचते हैं कि दूसरे के कारण दुखी हैं तो आप राजनीतिक चित्तवाले व्यक्ति हैं। आपको कभी खयाल भी न आया होगा, कि पत्नी सोच रही है, पति के कारण दुख है। इसमें कोई राजनीति है। पूरी राजनीति है। इसलिए राजनीति में जो होगा, वह यहां भी होगा / कलह खड़ी होगी / संघर्ष खड़ा होगा, एक दूसरे को बदलने की चेष्टा होगी, एक दूसरे को अपने ढंग पर लाने का प्रयास होगा, एक दूसरे को मिटाने की चेष्टा होगी। __ हम इस भाषा में कभी सोचते नहीं। क्योंकि भाषा अगर सख्त हो तो हमारे भ्रम तोड़ सकती है। इसलिए हम ऐसा कभी नहीं कहते कि हम एक दूसरे को मिटाने की चेष्टा में लगे हैं, हम कहते हैं, एक दूसरे को बदल रहे हैं। बदलने का मतलब क्या है? तुम जैसे हो, वैसे मेरे दुख के कारण हो / तुमको मैं बदलूंगा / जब तुम अनुकूल हो जाओगे मेरे, तो मेरे सुख के कारण हो जाओगे। दूसरी बात ध्यान में ले लें। चूंकि हम सोचते हैं कि दूसरा दुख का कारण है, इसलिए हम यह भी सोचते हैं कि दूसरा सुख का कारण है। न दूसरा दुख का कारण है, न दूसरा सुख का कारण है / सदा कारण हम हैं / जिस दिन आदमी इस सत्य को समझना शुरू कर देता है, उस दिन धार्मिक होना शुरू हो जाता है। क्यों? यह जोर इतना क्यों है महावीर का कि दुख या सुख के कारण हम हैं। इसके जोर के गहरे... अवलोकन पर निर्भर यह बात है। और यह कोई महावीर अकेले का कहना नहीं है। इस पृथ्वी पर जिन लोगों ने भी मनुष्य के सुख-दुख के संबंध में गहरी खोज की है, निरपवाद रूप से वे इस सूत्र से राजी हैं। इसलिए मैं नहीं कहता कि ईश्वर का मानना धर्म का मूल सूत्र है। क्योंकि बहुत धर्म ईश्वर नहीं मानते खुद महावीर नहीं मानते / बुद्ध नहीं मानते / ईश्वर मूल आधार नहीं है धर्म का / कोई सोचता हो, वेद मूल आधार है तो गलती में है. कोई सोचता हो बाइबिल मल आधार है तो गलती में है। कोई सोचता हो कि यह है मल आधार धर्म का कि दंख और सुख का कारण मैं हूं, तो गलती में नहीं। तो धर्म की मौलिक पकड़ उसकी समझ में आ गयी। यह निरपवाद सत्य है। वेद माने, कोई कुरान, कोई बाइबिल, महावीर, बुद्ध, जीसस, मुहम्मद, किसी को माने, अगर इस सूत्र पर उसकी समझ आ गयी है तो कहीं से भी रास्ता मिल जायेगा।अगर यह सूत्र उसके खयाल में नहीं आया तो वह किसी को भी मानता रहे, कोई रास्ता मिल नहीं सकता। 107 Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.340033
Book TitleMahavir Vani Lecture 33 Akele hi hai Bhogna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size74 MB
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