SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-वाणी भाग : 2 मृत्यु की एक व्यवस्थित प्रक्रिया है। जैसे कि सर्जन आपकी कोई हड्डी काट रहा हो तो अनस्थिसिया दे देता है, बेहोशी की दवा दे देता है। क्योंकि डर है कि जब वह हड्डी काटेगा तो आप लड़ेंगे काटने से कि न काटी जाये / घबरायेंगे, पीड़ित होंगे, परेशान होंगे / रेसिस्टेंस खड़ा होगा। तो आपके शरीर में दो तरह की धाराएं हो जायेंगी, एक तरफ काटने की बात है, और एक तरफ आप बचाने की चेष्टा करेंगे। अगर आपको सुई भी चुभाई जाये तो आप बचाने की चेष्टा करेंगे अपने को / स्वाभाविक है / तो बेहोश करना जरूरी है, ताकि आप उपद्रव खड़ा न करें। __ मृत्यु सबसे बड़ी सर्जरी है। एक हड्डी नहीं कटती, सारी हड्डियों से संबंध कटता है। एक मांस-पेशी नहीं कटती, सारे मांस से संबंध टूट जाता है। जिस शरीर के साथ आप सत्तर वर्ष तक एक होकर जीये थे, और जिसके खून-खून और रोयें-रोयें में आपकी चेतना समाविष्ट हो गयी थी, और जिसमें समाविष्ट ही नहीं हो गयी थी, आपने एकात्म बना लिया था कि मैं शरीर हं, उससे अलग होना बड़ी से बड़ी सर्जरी है। ___ आप होश में तभी रह सकते हैं, जब आपका मृत्यु से विरोध न हो / अगर विरोध न हो, आप मौन और शांति स्वीकारपूर्वक अगर मृत्यु में डूबें-उसी को महावीर ने संथारा कहा है, आत्म-मरण कहा है तो आप बेहोशी में नहीं होंगे, तो मृत्यु को अनस्थिसिया की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन हम इतने घबरा जाते हैं और इतने तनाव से भर जाते हैं और इतना बचना चाहते हैं और अपनी खाट को इतने जोर से पकड़ लेते हैं कि कहीं मृत्यु छीनकर न ले जाये / इतने तनाव में भर जाते हैं कि वह तनाव एक सीमा पर आ जाता है। उस सीमा के आगे जाना शरीर अनस्थिसिया को छोड़ देता है और हम बेहोश हो जाते हैं। अधिक लोग...अधिकतम लोग बेहोशी में मरते हैं, इसलिए हमें मृत्यु की फिर नये जन्म में कोई याद नहीं रह जाती / जो लोग होश में मरते हैं, उनको दूसरे जन्म में याद रह जाती है। क्योंकि याद हमेशा होश की रह सकती है, बेहोशी की याद नहीं रह सकती। ___ यह जो बेहोशी की घटना घटती है मृत्यु में, यह हमारी ही जीवेषणा का परिणाम है / तो महावीर कहते हैं, जीवेषणा छोड़ दो, जीयो / और जो जीवन को जीता है, अभी और कल की फिक्र नहीं करता, वह मृत्यु को भी जी लेगा, जब मृत्यु आयेगी, और कल की फिक्र से मृत्यु को देख लिया, उसने जीवन को भी देख लिया, क्योंकि वह होश, जो मृत्यु के मुकाबले भी टिक गया, वही है जीवन / वह जागति जो मृत्यु भी न बुझा सकी, वह समझ जो मृत्यु भी मिटा न सकी, वह बोध जो मृत्यु भी धुंधला न कर सकी, वही बोध है जीवन / . महावीर जीवन विरोधी नहीं हैं, जीवेषणा विरोधी हैं। और जीवेषणा मिटे, तो ही जीवन का अनुभव सम्भव है। अब हम उनके सूत्र को लें। 'संसार में जितने भी प्राणी हैं, सब अपने कृतकर्मों के कारण ही दुखी होते हैं। अच्छा या बुरा जैसा भी कर्म हो, उसका फल भोगे बिना छुटकारा नहीं मिलता।' 'पापी जीव के दुख को न जातिवाले बंटा सकते हैं, न मित्र, न पुत्र, न भाई, न बंधु / जब दुख आ पड़ता है तब अकेला ही उसे भोगना है, क्योंकि कर्म अपने कर्ता के पीछे लगते हैं, अन्य किसी के नहीं।' इसमें कुछ क्रमिक रूप से हम बिन्दु समझ लें। संसार में जितने प्राणी हैं, सब अपने कृतकों के कारण ही दुखी होते हैं- पहली बात / यह आधारभूत है। अगर आप दुखी होते हैं तो अपने ही कारण / लेकिन हम सभी सोचते हैं कि दूसरे के कारण / कभी आपने ऐसा समझा है कि दुखी आप हो रहे हैं, अपने कारण? 106 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340033
Book TitleMahavir Vani Lecture 33 Akele hi hai Bhogna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy