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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 और महावीर जो कहते हैं, अनुभव से कहते हैं। उनके पास भी सब था। इसलिए यह कोई सड़क पर खड़े भिखारी की बात नहीं है। सड़क पर खड़े भिखारी की बात में तो धोखा भी हो सकता है, सांत्वना भी हो सकती है / अकसर होती है। सड़क का भिखारी कहता है, क्या मिलेगा यदि सारी पृथ्वी भी मिल जाये? उसका यह मतलब नहीं कि वह सारी पृथ्वी नहीं पाना चाहता / वह यह कह रहा है कि हम पाने योग्य ही नहीं मानते / इसलिए नहीं कि पाने योग्य नहीं मानता, इसलिए कि जानता है कि पाने योग्य मानो तो भी कोई सार नहीं है। छाती पीटनी पड़ेगी, रोना पड़ेगा। होनेवाला नहीं है। अंगूर खट्टे हैं, क्योंकि दूर हैं। भिखारी भी कहता है, अपने मन को समझाने के लिए कहता है / इसलिए अध्यात्म के इतिहास में एक बड़ी विचित्र घटना घटती है। सम्राट भी कहते हैं, भिखारी भी कहते हैं। वचन एक ही हो सकता है, अर्थ एक ही नहीं होते। जब सम्राट कहते हैं, कि नहीं है कोई सार सारी पृथ्वी में, तो यह एक अनुभव का वचन है। और जब भिखारी कहता है तब अकसर, हमेशा नहीं, अकसर अनुभव का वचन नहीं, सांत्वना की चेष्टा है। समझाना है अपने को, बेकार है। कुछ होगा नहीं। तृप्ति होनेवाली नहीं, पूरी पृथ्वी मिल जाये तो भी / यह अपने को संतुष्ट करने की चेष्टा है। ___ महावीर जो कह रहे हैं, यह संतुष्ट करने की चेष्टा नहीं है, यह असंतोष के गहन अनुभव का परिणाम है। तो महावीर कहते हैं, सब भी तुम्हें मिल जाये, तो भी कुछ न होगा। क्योंकि सबके मिलने से भी तुम, तुमको नहीं मिलोगे। सब भी मिल जाये, पूरी पृथ्वी भी मिल जाये तो अपने से मिलन नहीं होगा। और तृप्ति है अपने से मिलन का नाम / दूसरे से मिलने में सिवाय अतृप्ति के कुछ भी पैदा नहीं होता। वह धन हो, कि व्यक्ति हो, कि कुछ भी हो, दूसरे से मिलन, अतृप्ति का ही जन्मदाता है। और अतृप्ति होगी, और मिलने की आकांक्षा होगी, और भ्रम पैदा होगा कि और मिल जाये तो शायद सब ठीक हो जाये। ___ अपने से ही मिलने पर तृप्ति होती है, क्योंकि फिर खोजने को कुछ भी नहीं रह जाता। लेकिन अपने से वह मिलता है, जो जीवेषणा छोड़ देता है। अपने से वह मिलता है जो काम, क्रोध, लोभ, मोह के पागलपन को छोड़ देता है। क्योंकि यह पागलपन दूसरे में ही उलझाये रखते हैं। यह अपने पास आने ही नहीं देते। ___ क्रोध का मतलब है-दौड़ गये आग में दूसरे की तरफ। अक्रोध का अर्थ है-लौट आये आग से अपनी तरफ / मोह का अर्थ है-जुड़ गये दूसरे से पागल की तरह / अमोह का अर्थ है, लौट आये बुद्धिमान की तरह, अपनी तरफ / अहंकार का अर्थ है-दूसरे की आंखों में दिखने की चेष्टा / पागलपन है, क्योंकि सब दूसरे भी इसी कोशिश में लगे हैं। मान अहंकार छोड़ देने का अर्थ है, अपनी ही आंख में अपने को देखने की चेष्टा, आत्मदर्शन / अहंकार का अर्थ है-दूसरे की आंखों में दिखने की चेष्टा / निर-अहंकार का अर्थ है-अपना दर्शन / अपनी आंखों में अपने को देखने की चेष्टा / अपने को मैं देख लूं, अपने को मैं पा लूं, अपने साथ मैं हो जाऊं, अपने में मैं जी लूं, तो है परम तृप्ति / दूसरे में मैं दौड़ता रहूं, दौड़ता रहूं, दौड़ है जरूर, पहुंचना बिलकुल नहीं है / यात्रा बहुत होती है, मतलब कुछ नहीं निकलता। इसलिए महावीर कहते हैं कि इन चार को ठीक से पहचान लेना / और जब ये चार तुम्हें पकड़ें, तो एक बात का ध्यान रखना, स्मरण रखना कि समस्त पथ्वी को पा लेने पर भी कछ होता नहीं है। 'जानकर संयम का आचरण करना।' / संयम का क्या अर्थ है? संयम का अर्थ है, यह जो चार पगलपन हैं हमारे बाहर ले जानेवाले, इनसे बचना / संयम का अर्थ है सन्तुलन / क्रोध में सन्तुलन खो जाता है। आप वह करते हैं जो नहीं करना चाहते थे। वह करते हैं जो नहीं कर सकते थे, वह भी कर 94 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340032
Book TitleMahavir Vani Lecture 32 Ye Char Shatru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size80 MB
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