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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 है। इसलिए अगर पत्नी में आकर्षण जारी रखना है, तो नये के सब उपाय बिलकुल बन्द कर देने चाहिए, तो मार पीटकर आकर्षण चलता रहता है। इसलिए हमने विवाह के इतने इंतजाम किये हैं, ताकि बाहर कोई उपाय ही न रह जाये। ___ जिन मुल्कों ने बाहर के उपाय छोड़ दिये, वहां विवाह टूट रहा है। विवाह बच नहीं सकता। विवाह एक बड़ी आयोजना है, वह आयोजना ऐसी है कि पुरुष फिर किसी और स्त्री को ठीक से देख भी न पाये / स्त्री फिर किसी और पुरुष के निकट पहुंच भी न पाये। तो फिर मजबूरी में उन दोनों को हमने छोड़ दिया। उसका मतलब यह हुआ कि मुझे आज भी वही भोजन दें, कल भी वही भोजन दें, परसों भी वही भोजन दें, और अगर किसी और भोजन का कोई उपाय ही न हो, और मेरी कालकोठरी में वही भोजन मुझे उपलब्ध होता हो, तो चौथे दिन भी मैं वही भोजन करूंगा। पांचवें दिन भी करूंगा। लेकिन अगर मुझे और भोजन उपलब्ध हो सकते हों, कोई अड़चन न आती हो, कोई असुविधा न होती हो, तो नहीं करूंगा। __ इसलिए एक बात पक्की है, विवाह तभी तक टिक सकता है दुनिया में, जब तक हम बाहर के सारे आकर्षणों को पूरी तरह रोक रखते हैं। और बाहर के आकर्षण में जितना आकर्षण मिलता है, उससे ज्यादा खतरा मिले, उपद्रव मिले, झंझट मिले, परेशानी मिले, तो रुक सकता है। नहीं तो विवाह टूट जायेगा। लेकिन यह विवाह जो टूट जायेगा, झूठा ही होगा। जिस दुनिया में सारा आकर्षण मिलता हो और विवाह बच जाये, तो ही समझना कि विवाह है। नहीं तो धोखा था इसलिए जिस दिन विवाह के कोई दिन बंधन नहीं होंगे, उसी दिन हमें पता चलेगा कि कौन पति-पत्नी है, उसके पहले कोई पता नहीं चल सकता-कोई उपाय नहीं पता चलने का। मुझे क्या पसन्द है, मेरा किसके साथ गहरा नाता है, आंतरिक, वह तभी पता चलेगा जब बदलने के सब उपाय हों, और बदलाहट न हो, जब बदलने के कोई उपाय ही न हों, और बदलाहट न हो तो सभी पत्नियां सतियां हैं। कोई अड़चन नहीं है, और सभी पति एक पत्नीव्रती हैं। जितना हमारे चारों तरफ खूटियां हों, उतना ही हमें पता चलेगा कि कितना प्रोजेक्शन है, कितना हमारा मन एक खूटी से दूसरी खूटी, दूसरी से तीसरी पर नाचता रहता है। जो हम रस पाते हैं उस खूटी से, वह भी हमारा दिया हुआ दान है, यह महावीर कह रहे हैं। उससे कुछ मिलता नहीं है हमें। ___ एक कुत्ता है, वह एक हड्डी को मुंह में लेकर चूस रहा है / कुत्ता जब हड्डी चूसे, तो बैठकर ध्यान करना चाहिए उस पर क्योंकि वह बड़ा गहरा काम कर रहा है, जो सभी आदमी करते हैं / कुत्ता हड्डी चूसता है, तो हड्डी में कुछ रस तो होता नहीं, लेकिन कुत्ते के खुद ही मुंह में जख्म हो जाते हैं / हड्डी चूसने से, उनसे खून निकलने लगता है। वह जो खून निकलने लगता है, वह कुत्ता समझता है, हड्डी से आ रहा है। वह खून गले में जाता है, स्वादिष्ट मालूम पड़ता है, अपना ही खून है। लेकिन कुत्ता समझे भी कैसे कि हड्डी से नहीं निकल रहा है। जब हड्डी चूसता है, तभी निकलता है। स्वभावतः तर्कयुक्त है, गणित साफ है कि जब हड्डी चूसता हूं, तभी निकलता है, हड्डी से निकलता है। लेकिन वह निकलता है अपने ही मसूढ़ों के टूट जाने से, अपने ही मुंह में घाव हो जाने से / कुत्ता मजे से हड्डी चूसता रहता है, और अपना ही खून पीता रहता है। ___ जब आप किसी और से रस लेते हैं, तब आप हड्डी चूस रहे हैं / रस आपके ही मन का है, अपना ही खून झरता है। किसी दूसरे से कोई रस मिलता नहीं, मिल सकता नहीं। अगर एक व्यक्ति संभोग में भी सोचता है, सुख मिल रहा है तो वह अपने ही खून झरने से मिलता है, किसी दूसरे से कुछ लेना-देना नहीं है / हड्डी चूसना है / लेकिन कठिन है, न कुत्ते की समझ में आता है, न आदमी की समझ में आता है। खुद को समझना जटिल है। ___ महावीर कहते हैं। काम-भोग अपने आप न मनुष्य में समभाव पैदा करते हैं, न तो सोचना कि काम-भोग से कोई समता उपलब्ध होती है, सुख उपलब्ध होता है, शांति उपलब्ध होती है। इससे विपरीत भी मत सोचना / साधु-संन्यासी यही सोचते हैं, काम-भोग से दुख 74 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org:
SR No.340031
Book TitleMahavir Vani Lecture 31 Sara Khel Kamvasna ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size72 MB
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