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________________ सारा खेल काम-वासना का तो आप समझना कि वहां बेहोशी है, शराब है। और शराब ही आपको खींच रही है। शराब, शराब की बोतलों में ही नहीं होती, आंखों में भी होती है, वस्त्रों में भी होती है, चेहरों में भी होती है, हाथों में भी होती है, चमड़ी में भी होती है। शराब बड़ी व्यापक घटना है। महावीर कहते हैं कि जो व्यक्ति इस तरह के रसों का सेवन करता है जो मादक हैं, और जो अपने भीतर की मादकता को मिटाता नहीं, बढ़ाता है, उसकी तरफ वासनाएं ऐसे ही दौड़ने लगेंगी जैसे फल भरे वृक्ष के पास पक्षी दौड़ आते हैं / और जो व्यक्ति अपने पास वासनाएं बुला रहा है वह अपने हाथ से अपने बन्धन आकर्षित कर रहा है। वह अपनी हथकड़ियों और अपनी बेड़ियों को निमंत्रण दे रहा है कि आओ, वह अपने हाथ से अपने कारागृहों को बुला रहा है कि आओ, और मेरे चारों तरफ निर्मित हो जाओ। वह व्यक्ति कभी मुक्त, वह व्यक्ति कभी शांत, वह व्यक्ति कभी शून्य, वह व्यक्ति कभी सत्य को उपलब्ध नहीं हो सकता है / क्योंकि सत्य की पहली शर्त है, स्वतंत्रता। सत्य की पहली शर्त है, एक मुक्त भाव / और वासनाओं से कोई कैसे मुक्त हो सकता है? _ 'काम-भोग अपने आप न किसी मनुष्य में समभाव पैदा करते हैं, और न किसी में राग-द्वेष रूपी विकृति पैदा करते हैं / परन्तु मनुष्य स्वयं ही उनके प्रति राग-द्वेष के नाना संकल्प बनाकर मोह से विकारग्रस्त हो जाता है।' यह सूत्र कीमती है। महावीर कहते हैं कि सारा खेल काम-वासना का तुम्हारा अपना है। मैं कुम्भ के मेले में था / एक मित्र मेरे साथ थे। मेला शुरू होने में अभी देर थी कुछ / हम दोनों बैठे थे गंगा के किनारे, दूर बहुत दूर नहीं, दिखायी पड़े इतने दूर / एक महिला अपने बाल संवार रही थी स्नान करने के बाद / उसकी पीठ ही दिखायी पड़ती थी। मित्र बिलकुल पागल हो गये। बात-चीत में उनका रस जाता रहा / उन्होंने मुझसे कहा कि रुकें / मैं इस स्त्री का चेहरा न देख लूं तब तक मुझे चैन न पड़ेगा। मैं जाऊं, चेहरा देख आऊं। वह गये, और वहां से बड़े उदास लौटे / वह स्त्री नहीं थी, एक साधु था जो अपने बाल संवार रहा था / गये, तब उनके पैरों की चाल, लौटे तब उनके पैरों का हाल! मगर संकोची होते, शिष्ट होते, मन में ही रख लेते, और जिन्दगी भर परेशान रहते। सच में ही पीछे से आकृति आकर्षक मालूम पड़ी थी। पर वह आकर्षण वहां था या मन में था? क्योंकि वहां जाकर पता चला कि पुरुष है, तो आकर्षण खो गया। आकर्षण स्त्री में है या स्त्री के भाव में है? आकर्षण पुरुष में है या पुरुष के भाव में? गहरा आकर्षण भीतर है, उसे हम फैलाते हैं बाहर / बाहर खूटियां हैं सिर्फ, उन पर हम टांगते हैं अपने आकर्षण को। और ऐसा भी नहीं है कि ऐसी घटना घटे, तभी पता चलता है। आज आप किसी के लिए दीवाने हैं, बड़ा रस है। और कल सब फीका हो जाता है, और आप खुद ही नहीं सोच पाते कि क्या हुआ, कल इतना रस था, आज सब फीका क्यों हो गया? व्यक्ति वही है, सब रस फीका हो गया! ___ मन का जो आकर्षण था, वह पुनरुक्ति नहीं मांगता / अगर व्यक्ति का ही आकर्षण हो तो वह आज भी उतना ही रहेगा, कल भी उतना था, परसों भी उतना ही रहेगा। लेकिन मन नये को मांगता है। इसलिए जिसे आज आकर्षित जाना है, पक्का समझ लेना, कल वह उतना __यह मन तो नये को मांगता है। पुराने में इसका रस खोने लगता है। यह मन का स्वभाव है। कुछ भूल नहीं है इसमें, सिर्फ उसका स्वभाव है। आज जो भोजन किया, कल जो भोजन किया, परसों जो भोजन किया, तो चौथे दिन घबराहट हो जायेगी। मन तो ऐसा ही मांगता है; आज भी वही पत्नी है, कल भी वही पत्नी है, परसों भी वही पत्नी है। चौथे दिन मन उदास हो जायेगा / मन तो नये को मांगता 73 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340031
Book TitleMahavir Vani Lecture 31 Sara Khel Kamvasna ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size72 MB
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