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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 के चक्के से हवाई जहाज तक आने में / और यह दस हजार साल में एक आदमी का काम नहीं होने वाला है, हजारों लोग काम करेंगे। विज्ञान परंपरा है, ट्रेडिशन है। हजारों लोगों के श्रम का परिणाम है। धर्म? महावीर न हों, बुद्ध न हों, तो भी आप महावीर हो सकते हैं / कोई बाधा नहीं है / जरा भी बाधा नहीं है। क्योंकि मेरे महावीर या मेरे बुद्ध होने में महावीर और बुद्ध के ऊपर उनके कंधे पर खड़े होने की कोई जरूरत नहीं है। कोई खड़ा हो भी नहीं सकता। धर्म के जगत में हर आदमी अपने पैर पर खड़ा होता है, विज्ञान के जगत में हर आदमी दूसरे के कंधे पर खड़ा होता है। इसलिए विज्ञान की शिक्षा दी जा सकती है, धर्म की शिक्षा नहीं दी जा सकती। विज्ञान की शिक्षा हमें देनी ही पड़ेगी। अगर हम एक बच्चे को गणित न सिखायें, तो कैसे समझेगा आइंस्टीन को? धर्म का मामला उल्टा है। अगर हम एक बच्चे को बहुत धर्म सिखा दें तो फिर महावीर को न समझ सकेगा। धर्म की कोई शिक्षा नहीं हो सकती / शिक्षा बाहर की होती है, भीतर की नहीं होती, भीतर की साधना होती है। बाहर की शिक्षा होती है। शिक्षा से स्मृति प्रबल होती है, साधना से ज्ञान के द्वार टूटते हैं। इसको और इस तरह से समझ लें कि बाहर के संबंध में हम जो जानते हैं वह नयी बात है, जो कल पता नहीं थी और अगर हम खोजते न तो कभी पता न चलती। भीतर के संबंध में जो हम जानते हैं वह सिर्फ दबी थी। पता थी गहरे में / खोज लेने पर जब हम उसे पाते हैं तो वह कोई नयी चीज नहीं है। बुद्ध से पूछे, महावीर से पूछे, वे कहेंगे, जो हमने पाया, वह मिला ही हुआ था। सिर्फ हमारा ध्यान उस पर नहीं था। __ आपके घर में हीरा पड़ा हो, रोशनी न हो, दीया जले, रोशनी हो जाये, हीरा मिल जाये तब आप ऐसा नहीं कहेंगे कि हीरा कोई नई चीज है जो हमारे घर में जुड़ गयी, थी ही घर में / प्रकाश नहीं था, अंधेरा था, दिखायी नहीं पड़ता था। जान आपके पास है. सिर्फ ध्यान उस पर पड जाये। लेकिन विज्ञान आपके पास नहीं है. उसे खोजना पडता है। जैसे हीरे को खदान से खोजकर, निकालकर घर लाना पड़े। इस फर्क के कारण विज्ञान सीखा जा सकता है। जो खदान तक गये हैं, जिन्होंने हीरा खोदा है, कैसे लाये हैं, क्या है तरकीब? वह सब सीखी जा सकती है। धर्म सीखा नहीं जा सकता, साधा जा सकता है। साधने और सीखने में बुनियादी फर्क है / सीखना, सूचनाओं का संग्रह है। साधना, जीवन का रूपांतरण है। अपने को बदलना होता है। इसलिए कम पढा लिखा आदमी भी धार्मिक हो सकता है। लेकिन कम पढ़ा लिखा आदमी वैज्ञानिक नहीं हो पाता / बिलकुल साधारण आदमी, जो बाहर के जगत में कुछ भी नहीं जानता है, वह भी कबीर हो सकता है. कष्ण हो सकता है, क्राइस्ट हो सकता है। ___क्राइस्ट खुद एक बढ़ई के लड़के हैं, कबीर एक जुलाहे के, कुछ जानकारी बाहर की नहीं है। कोई पांडित्य नहीं है, कोई बड़ा संग्रह नहीं है, फिर भी अन्तःप्रज्ञा का द्वार खुल सकता है। क्योंकि जो पाने जा रहे हैं, वह भीतर छिपा ही हुआ है, थोड़े से खोदने की बात है। हीरा पास है, मुट्ठी बंद है, उसे खोल लेने की बात है। यह जो मुट्ठी खोलना है, यह साधना है / हीरा क्या है, कहां छिपा है, किस खदान में मिलेगा, कैसे खोदा जायेगा, इन सबकी जानकारी बाह्य सूचना है। शास्त्रों में अगर हम यह भेद कर लें तो हम शास्त्रों को बचाने में सहयोगी हो जायेंगे, अन्यथा हमारे सब शास्त्र डूब जायेंगे। क्योंकि कृष्ण के मुंह से ऐसी बातें निकलती हैं जो जानकारी की हैं। वह गलत होंगी आज नहीं कल / महावीर ऐसी बातें बोलते हैं, जो जानकारी की हैं, वह गलत हो जायेंगी। विज्ञान के जगत में कोई कभी सदा सही नहीं हो सकता / रोज विज्ञान आगे बढ़ेगा और अतीत को गलत करता जायेगा। बुद्ध ने ऐसी बातें कही हैं जो गलत हो जायेंगी / जीसस ने, मुहम्मद ने, ऐसी बातें कही हैं जो गलत हो जायेंगी। लेकिन इससे कोई भी धर्म का संबंध नहीं है। धर्मशास्त्र में दोनों बातें हैं, वे भी जो भीतर से आयी हैं, और वे भी जो बाहर से आयी हैं। अगर भविष्य में हमें धर्मशास्त्र की प्रतिष्ठा बचानी हो तो हमें धर्मशास्त्र के विभाजन करने शुरू कर देने चाहिए। जानकारी एक तरफ हटा देनी चाहिए, अनुभव एक तरफ। 28 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340029
Book TitleMahavir Vani Lecture 29 Aliptata aur Anasakti ke Bhav Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size71 MB
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