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________________ संग्रह : अंदर के लोभ की झलक तो महावीर जितनी निर्दोषता से देखते हैं, हम नहीं देख पाते। महावीर अगर आपका हाथ, हाथ में लें, तो वे आपको ही छू लेंगे। जब हम एक दूसरे का हाथ लेते हैं तो सिर्फ हड्डी मांस ही स्पर्श हो पाता है। छू लेंगे आपको ही क्योंकि बीच में कोई वासना का वेग नहीं है। कोई वासना का बुखार नहीं है। सब शांत है। हाथ सिर्फ छूने का ही काम करता है। इस हाथ की अपने तरफ से कोई आकांक्षा, कोई वासना नहीं है, तो महावीर इस हाथ के द्वारा आपके भीतर तक को स्पर्श कर लेंगे। इंद्रियां महावीर और बुद्ध की अत्यंत निर्मल हो गयी हैं। वेशद्ध हो गई हैं, वे उतना ही काम करती हैं, जितना करना जरूरी है। अपनी तरफ से वे कुछ भी जोड़ती नहीं।। ___ हमारी सारी इंद्रियां विक्षिप्त हैं, और विक्षिप्त होंगी। क्योंकि जब मालिक मूर्छित है तो नौकर सम्यक नहीं हो सकते। जब एक रथ का सारथी सो गया हो तो घोड़े कहीं भी दौड़ने लगें, यह स्वाभाविक है। और उन सारे घोड़ों के बीच कोई ताल-मेल न रह जाये, यह भी स्वाभाविक है। ___ हमारी इंद्रियों के बीच कोई ताले-मेल भी नहीं है, भोगी की सभी इंद्रियां उसे विपरीत दिशाओं में खींचती रहती हैं। आंख कुछ देखना चाहती है, कान कुछ सुनना चाहता है, हाथ कुछ और छूना चाहते हैं इन सबके बीच विरोध है, इस विरोध से बड़ा कंट्राडिक्शन है, जीवन में बड़ी विसंगतियां पैदा होती हैं। जैसे, आप एक स्त्री के प्रेम में पड़ गये हैं, एक पुरुष के प्रेम में पड़ गये हैं। आपने कभी खयाल नहीं किया होगा कि सभी प्रेम इतनी कठिनाइयों में क्यों ले जाते हैं, और सभी प्रेम अंततः दुख क्यों बन जाते हैं। उसका कारण है। किसी का चेहरा आपको सुंदर लगा, यह आंख का रस है। अगर आंख बहुत प्रभावी सिद्ध हो जाये तो आप प्रेम में पड़ जायेंगे। लेकिन कल उसकी गंध शरीर की आपको अच्छी नहीं लगती, तब नाक इनकार करने लगेगी। आप उसके शरीर को छूते हैं, लेकिन उसके शरीर की ऊष्मा आपके हाथ को अच्छी नहीं लगती, तो हाथ इनकार करने लगेंगे। __आपकी सारी इंद्रियों के बीच कोई ताल-मेल नहीं है, इसलिए प्रेम विसंवाद हो जाता है। एक इंद्रिय के आधार पर आदमी चुन लेता है, बाकी इंद्रियां धीरे-धीरे अपना-अपना स्वर देना शुरू करेंगी और तब एक ही व्यक्ति के प्रति कोई इंद्रिय अच्छा अनुभव करती है, दूसरी इंद्रिय बुरा अनुभव करती है। आपके मन में हजार विचार एक ही व्यक्ति के प्रति हो जाते हैं। से अधिक लोग आंख का इशारा मान कर चलते हैं। क्योंकि आंख बडी प्रभावी हो गयी है। हमारे चनाव में, नब्बे प्रतिशत आंख काम करती है। हम आंख की मान लेते हैं, दूसरी इंद्रियों की हम कोई फिक्र नहीं करते। आज नहीं कल कठिनाई शुरू हो जाती है। क्योंकि दूसरी इंद्रियां भी असर्ट करना शुरू करती हैं, अपने वक्तव्य देना शुरू करती हैं। ___ आंख की गुलामी मानने को कान राजी नहीं है। इसलिए आंख ने कितना ही कहा हो कि चेहरा सुंदर है, इस कारण वाणी को कान मान लेगा कि सुंदर है, यह आवश्यक नहीं है। आंख की आवाज को, आंख की मालकियत को, नाक मानने को राजी नहीं है। आंख ने कहा हो कि शरीर सुंदर है, लेकिन नाक तो कहेगी कि शरीर से जो गंध आती है, अप्रीतिकर है। फिर क्या होगा? एक ही व्यक्ति के प्रति पांचों इंद्रियों के अलग-अलग वक्तव्य जटिलता पैदा कर देते हैं। यह जो जटिलता है, केवल उसी व्यक्ति में नहीं होती, जिसका भीतर मालिक जगा होता है। तो फिर पांचों इंद्रियों को जोड़ने वाला एक केंद्र भी होता है। हमारे भीतर कोई केंद्र नहीं है। हमारी हर इंद्रिय मालकियत जाहिर करती है। और हर इंद्रिय का वक्तव्य आखिरी है। कोई दूसरी इंद्रिय उसके वक्तव्य को काट नहीं सकती। हम सभी इंद्रियों के वक्तव्य इकट्ठे करके एक विसंगतियों का ढेर हो जाते हैं। 445 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340024
Book TitleMahavir Vani Lecture 24 Sangraha Andar ke Lobh ki Zalak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size73 MB
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