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________________ संग्रह : अंदर के लोभ की झलक आपकी तरफ देखे कर देती है। आंख की पुतली बड़ी हो जाती है, चित्र तत्काल भीतर चला जाता है, जैसे कैमरे के लेंस से चित्र भीतर चला जाता है। उस स्त्री के साथ बिनाका टुथपेस्ट भी भीतर चला जाता है। यह कंडीशनिंग हो जाती है। अगर रोज-रोज यह होता रहे, तो जब भी आप सुंदर स्त्री के संबंध में सोचेंगे, आपके भीतर बिनाका भी आवाज लगायेगा, और एक दिन आप जब दुकान पर जाकर कहेंगे कि बिनाका टुथपेस्ट दे दें, तो आप बिनाका टुथपेस्ट नहीं मांग रहे हैं, आप अनजाने अचेतन मन से बिनाका के साथ जो स्मृति जुड़ गयी है स्त्री की, वह मांग रहे हैं। यह सम्मोहन है। यह सम्मोहन हजार तरह से चलता है, चारों तरफ चलता है। और ऐसा नहीं कि कोई जानकर जब विज्ञापन से आपको सम्मोहित करता है, यह तो अब होश की बात हो गयी, विज्ञापनदाता समझ गया है कि आपको कैसे पकड़ना है। मन के पकड़ने के नियम जाहिर हो गये हैं। लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। नियम जाहिर नहीं थे, तब भी...तब भी आदमी वस्तुओं से सम्मोहित हो रहा था। हम सदा ही वस्तुओं से सम्मोहित होते रहे हैं। इस सम्मोहन का नाम मूर्छा है। ___ मूर्छा का अर्थ है-कोई वस्तु इस भांति आपको पकड़ ले कि मन में यह भाव पैदा हो जाये कि इसके बिना अब कोई सुख नहीं मिल सकता। महावीर कहते हैं, जिस आदमी को ऐसा भाव पैदा हो गया, उसको दुख मिलेगा। जब तक वस्तु न मिलेगी, तब तक लगेगा, इसके बिना सुख नहीं मिल सकता, और जब वस्तु मिल जायेगी तो...वस्तु के कारण नहीं दिखायी पड़ रहा था कि सुख मिलेगा कि नहीं मिलेगा, यह आपका सम्मोहन था। वस्तु के मिलते ही टूट जायेगा। इसे ठीक से समझ लें। सम्मोहन तभी तक रह सकता है, जब तक आपके हाथ में वस्तु न हो। आपको लगे कि कोहिनूर हीरा मेरे पास हो तो मैं जगत का सबसे बड़ा आदमी हो जाऊंगा, लेकिन जब तक आपके हाथ में कोहिनूर हीरा नहीं है, तभी तक यह सम्मोहन काम कर सकता है। कोहिनूर हीरा आपके हाथ में आ जाये, सम्मोहन नहीं बचेगा। क्योंकि कोहिनूर हीरा हाथ में आ जायेगा और सुख का कोई पता नहीं चलेगा। तो सम्मोहन तत्काल टूट जायेगा। सम्मोहन टूटेगा तो दुख शुरू हो जायेगा। और जितनी बड़ी अपेक्षा बांधी थी सुख की, उतने ही बड़े गर्त में दुख के गिर जायेंगे। अपेक्षा के अनुकूल दुख होता है, ठीक उसी अनुपात में। अगर आपने सोचा था कि कोहिनूर के मिलते ही मोक्ष मिल जायेगा तो फिर कोहिनूर के मिलते ही आपसे बड़ा दुखी आदमी दुनिया में दूसरा नहीं होगा। इसलिए धनी आदमी दुखी हो जाते हैं। गरीब आदमी इतना दुखी नहीं होता। यह जरा अजीब लगेगी मेरी बात। ___ गरीब आदमी कष्ट में होता है, दुख में नहीं होता। अमीर आदमी कष्ट में नहीं होता, दुख में होता है। कष्ट का मतलब है अभाव और दुख का मतलब है, भाव। कष्ट हम उस चीज से उठाते हैं, जो हमें नहीं मिली है और जिसमें हमें आशा है कि मिल जाये तो सुख मिलेगा। इसलिए गरीब आदमी हमेशा आशा में होता है, सुख मिलेगा, आज नहीं कल, कल नहीं परसों; इस जन्म में नहीं, अगले जन्म में, मगर सुख मिलेगा। यह आशा उसके भीतर एक थिरकन बनी रहती है। कितना ही कष्ट हो, अभाव हो, वह झेल लेता है, इस आशा के सहारे कि आज है कष्ट, कल होगा सुख। आज को गुजार देना है। कल की आशा उसे खींचे लिए चली जाती है। फिर एक दिन यही आदमी अमीर हो जाता है। ___ अमीर का मतलब, जो-जो इसने सोचा था आशा में, वह सब हाथ में आ जाता है। इस जगत में इससे बड़ी कोई दुर्घटना नहीं है, जब आशा आपके हाथ में आ जाती है। तब तत्क्षण सब फ्रस्ट्रेशन हो जाता है, सब विषाद हो जाता है। क्योंकि इतनी आशाएं बांधी थीं, इतने लंबे-लंबे सपने देखे थे, वे सब तिरोहित हो जाते हैं। हाथ में कोहिनूर आ जाता है, सिर्फ पत्थर का एक टुकड़ा मालूम पड़ता है। सब आशाएं खो गयीं। अब क्या होगा? अमीर आदमी इस दुख में पड़ जाता है कि अब क्या होगा? अब क्या करना है? 451 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340024
Book TitleMahavir Vani Lecture 24 Sangraha Andar ke Lobh ki Zalak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size73 MB
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