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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 तंत्र या योग दोनों ही मनष्य की काम-ऊर्जा को रूपांतरित करना चाहते हैं। यह रूपांतरण दो तरह से हो सकता है. या तो काम-ऊर्जा के गहन अनुभव में जाया जाये-होशपूर्वक, या फिर सारी आदत बदल दी जाये, ताकि काम ऊर्जा नयी आदत के मार्ग को पकड़कर ऊर्ध्वगामी हो जाये। रूपांतरण सदा ही अति से होता है एक्सट्रीम से होता है। अगर आप एक पहाड़ से कूदना चाहते हैं तो आपको किनारे से ही कूदना पड़ेगा, आप पहाड़ के मध्य से नहीं कूद सकते। कूदने का अर्थ ही होता है कि जहां खाई निकट है वहां से आप कूद सकते हैं। जीवन में जो भी छलांग होती है, वह अति से होती है। मध्य से कोई छलांग नहीं हो सकती। अति, छोर से आदमी कूदता है। __ काम-ऊर्जा की दो अतियां हैं-या तो काम ऊर्जा में इतने समग्र भाव से, पूरी तरह उतर जाये व्यक्ति कि छोर पर पहुंच जाये का के अनुभव के, तो वहां से छलांग हो सकती है। और या फिर इतना अस्पर्शित रहे, बाहर रहे, काम के अनुभव में प्रवेश ही न करे, द्वार पर ही खड़ा रहे तो वहां से भी छलांग हो सकती है। मध्य से कोई छलांग नहीं है। सिर्फ बुद्ध ने कहा है कि मध्य मार्ग है। महावीर मध्य को मार्ग नहीं कहते, तंत्र भी मध्य का मार्ग नहीं कहता। बुद्ध ने कहा है कि 'मध्य मार्ग' है। लेकिन अगर बुद्ध की बात को भी हम ठीक से समझें तो वह मध्य को इतनी अति तक ले जाते हैं कि मध्य मध्य नहीं रह जाता, अति हो जाता, वे कहते हैं, इंचभर बायें भी नहीं, इंचभर दायें भी नहीं, बिलकुल मध्य बिलकुल मध्य का मतलब है, नयी अति। अगर कोई बिलकुल मध्य में रहने की कोशिश करे तो वह नये छोर को उपलब्ध हो जाता है। _मध्य में जैसा मैंने कल कहा, अगर पानी को हम शून्य डिग्री के नीचे ले जायें तो बर्फ बन जाये छलांग हो गयी। अगर हम उसे भाप बनाना चाहें तो सौ डिग्री गर्मी तक ले जायें तो छलांग हो गयी। लेकिन कुनकुना पानी कोई छलांग नहीं ले सकता। न इस तरफ, न उस तरफ, वह मध्य में है। अधिक लोग कुनकुने पानी की तरह हैं, ल्यूक वार्म / न वे बर्फ बन सकते हैं, न वे भाप बन सकते हैं। वे छोर पर नहीं हैं कहीं से जहां से छलांग हो सके। प्रत्येक व्यक्ति को छोर पर जाना पड़ेगा, एक अति पर जाना पड़ेगा। ये दो अतियां हैं, योग और तंत्र की। योग अभिव्यक्ति को बदलता है, तंत्र अनुभूति को बदलता है। दोनों तरफ से यात्रा हो सकती इन मित्र ने कहा है, अगर तंत्र थोड़े ही लोगों के लिए है तो आप उसकी चर्चा न ही करते तो अच्छा था। वह खतरनाक हो सकता - जो चीज खतरनाक हो, उसकी चर्चा ठीक से कर लेनी चाहिए। क्योंकि खतरे से बचने का एक ही उपाय है कि हम उसे जानते हों। दूसरा कोई उपाय नहीं है। लेकिन जब मैं कहता हूं, तंत्र बहुत थोड़े लोगों के लिए है, तो आप यह मत समझ लेना कि योग बहुत ज्यादा लोगों के लिए है। बहुत थोड़े लोग ही छलांग लेते हैं, चाहे योग से, चाहे तंत्र से, अधिक लोग तो कुनकुने ही रहते हैं जीवन भर, न कभी उबलते, न कभी ठंडे होते। यहां जो मिडियाकर, यह जो मध्य में रहने वाला बड़ा वर्ग है, यह कोई छलांग नहीं लेता, और यह छलांग ले भी नहीं सकता। दोनों छोर से छलांग होती है। छोर पर हमेशा थोड़े से लोग पहुंच पाते हैं। छोर पर पहुंचने का अर्थ है, कुछ त्यागना पड़ता है। ___ ध्यान रहे, किसी भी छोर पर जाना हो तो कुछ त्यागना पड़ता है। अगर तंत्र की तरफ जाना हो, तो भी बहुत कुछ त्यागना पड़ता है। अगर योग की तरफ जाना हो, तो भी बहुत कुछ त्यागना पड़ता है। अलग-अलग चीजें त्यागनी पड़ती हैं, लेकिन त्यागना तो पड़ता ही है। छोर पर पहुंचने का मतलब ही यह है कि मध्य में रहने की जो सुविधा है, वह त्यागनी पड़ती है। मध्य में कभी कोई 424 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340023
Book TitleMahavir Vani Lecture 23 Bramhacharya Kamvasna se Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size75 MB
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