________________ धम्म-सूत्र: 3 जहा सागडिओ जाणं, समं हिच्चा महापहं। विसमं मग्गमोइण्णो, अक्खे भग्गम्मि सोयई।। एवं धम्मं विउक्कम्म, अहम्मं पडिवज्जिया। बाले मुच्चुमुहं पत्ते, अक्खेभग्गे व सोयई।। जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई / अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जन्ति राइओ।। जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई। धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जन्ति राइओ।। जरा जाव न पीडेई, वाही जाव न वड्ढई। जाविन्दिया न हायंति, ताव धम्मं समायरे।। जिस प्रकार मूर्ख गाड़ीवान जान-बूझकर साफ-सुथरे राजमार्ग को छोड़ विषम (टेढ़े-मेढ़े, ऊबड़-खाबड़) मार्ग पर चल पड़ता है और गाड़ी की धुरी टूट जाने पर शोक करता है, वैसे ही मूर्ख मनुष्य जान-बूझकर धर्म मार्ग को छोड़कर अधर्म मार्ग को पकड़ लेता है और अंत में मृत्यु मुख में पहुंचने पर जीवन की धुरी टूट जाने पर शोक करता है। जो रात और दिन एक बार अतीत की ओर चले जाते हैं, वे फिर कभी वापस नहीं लौटते हैं। जो मनुष्य अधर्म करता है, उसके वे रात-दिन बिलकुल निष्फल रहते हैं। लेकिन जो मनुष्य धर्म करता है, उसके वे रात-दिन सफल हो जाते हैं। जब तक बुढ़ापा नहीं सताता, जब तक व्याधियां नहीं बढ़तीं, जब तक इंद्रियां अशक्त नहीं होती, तब तक धर्म का आचरण कर लेना चाहिए, बाद में कुछ नहीं होगा। 366 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.