SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-वाणी भाग : 1 पत्थर खुद कार में नहीं बैठेगा, उसे किसी को बिठाना पड़ेगा। बैठकर भी वह वैसा ही रहेगा जैसा अनबैठा था। बैठकर उसे आप यहां उतार लेंगे, लेकिन उस पत्थर के भीतर कुछ भी न होगा। जब आप कार में बैठे हुए हैं तो दो गतियां हो रही हैं-एक तो आपका शरीर स्थान में यात्रा कर रहा है और एक आपका मन, आपका शरीर स्थान में यात्रा कर रहा है, और आपका मन समय में यात्रा कर रहा है। चेतना की गति समय में है। महावीर ने चेतना को समय ही कहा है, और ध्यान को सामायिक कहा है। अगर चेतना की गति समय में है तो चेतना की गति के ठहर जाने का नाम सामायिक है। शरीर की सारी गति ठहर जाए ,उसका नाम आसन है, और चित्त की सारी गति ठहर जाए, उसका नाम ध्यान है। अगर आप कार में ऐसे बैठकर आ जाएं जैसे पत्थर आता है तो आप ध्यान में थे। आपके भीतर कोई गति न हो सिर्फ शरीर गति करे और आप कार में बैठकर ऐसे आ जाएं, जैसे पत्थर आया है, तो आप ध्यान में थे। ध्यान का अर्थ है-चेतना हो, गति शून्य हो जाये, मूवमेंट शून्य हो जाये। यह ध्यान का अर्थ है महावीर का। अब इस ध्यान की तरफ जाने के लिए महावीर आपको क्या सलाह देते हैं, इसे हम दो-तीन हिस्सों में समझने की कोशिश करें। ___ कभी आपने छप्पर छाए हए मकान के नीचे देखा होगा कि कोई रंध्र से प्रकाश की किरणें भीतर घस आती हैं। प्रकाश की एक वल्लरी, एक धारा कमरे में गिरने लगती है। सारा कमरा अंधेरा है। छप्पर से एक धारा प्रकाश की नीचे तक उतर रही है। तब आपने एक बात और भी देखी होगी कि उस प्रकाश की धारा के भीतर धूल के हजारों कण उड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। अंधेरे में वे दिखाई नहीं पड़ते, कमरे में वे सभी जगह उड़ रहे हैं। अंधेरे में दिखाई नहीं पड़ते, सभी जगह उड़ रहे हैं। उस प्रकाश की वल्लरी में दिखाई पड़ते हैं। क्योंकि दिखाई पड़ने के लिए प्रकाश होना जरूरी है। शायद आपको खयाल आता होगा कि प्रकाश की वल्लरी में ही वे उड़ रहे हैं तो आप गलती में हैं। वे तो पूरे कमरे में उड़ रहे हैं। लेकिन प्रकाश की वल्लरी में दिखाई पड़ रहे हैं। ___ आपकी चेतना ऐसी ही स्थिति में है। जितने हिस्से में ध्यान पड़ता है, उतने हिस्से में विचार के कण दिखाई पड़ते हैं। बाकी में भी विचार उड़ते रहते हैं, वे आपको दिखाई नहीं पड़ते। ___ इसलिए मनोवैज्ञानिक मन को दो हिस्सों में तोड़ देता है—एक को वह कांशस कहता है, एक को अनकांशस कहता है। एक को चेतन, एक को अचेतन। चेतन उस हिस्से को कहता है जिस पर ध्यान पड़ रहा है और अचेतन उस हिस्से को कहता है जिस पर ध्यान नहीं पड़ रहा है। चेतना उस हिस्से को कहेंगे जिसमें कि प्रकाश की किरण पड़ रही है और धूल के कण दिखाई पड़ रहे हैं; और अचेतन उसको कहें ... बाकी कमरे को जहां अंधेरा है, जहां प्रकाश नहीं पड़ रहा है, धूल कण तो वहां भी उड़ रहे हैं पर उनका कोई पता नहीं चलता है। आपके चेतन मन में आपको विचारों का उड़ना दिखाई पड़ता है, चौबीस घंटे विचार चलते रहते हैं। सरकते रहते हैं। कभी आपने खयाल नहीं किया, कि जब प्रकाश की किरण उतरती है अंधेरे कमरे में तो जो धूल का कण उनमें उड़ता हुआ आता है, आपने खयाल किया, वह आसपास के अंधेरे से उड़ता हुआ आता है। फिर प्रकाश की किरण में प्रवेश करता है, थोड़ी देर में फिर अंधेरे में चला जाता है। शायद आपको यह भ्रांति हो कि वह जब प्रकाश में होता है तभी उसका अस्तित्व है, तो आप गलती में हैं। आने के पहले भी वह था, जाने के बाद भी वह है। ___ आपने कभी अपने विचारों का अध्ययन किया है कि वे कहां से आते हैं और कहां चले जाते हैं। शायद आप सोचते होंगे कि इधर से प्रवेश करते हैं और नष्ट हो जाते हैं। पैदा होते हैं और नष्ट हो जाते हैं। पैदा और नष्ट नहीं होते। आपके अंधेरे चित्त से आते हैं, आपके प्रकाश चित्त में दिखाई पड़ते हैं, फिर अंधेरे चित्त में चले जाते हैं। अगर आप अपने विचारों को उठता देखने की कोशिश करें 318 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340017
Book TitleMahavir Vani Lecture 17 Samayik Samay me Thaher Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size75 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy