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________________ सामायिक : स्वभाव में ठहर जाना ध्यान करना चाहते हैं, किस पर करें? ध्यान शब्द में ही आब्जेक्ट का खयाल, विषय का खयाल छिपा हुआ है। इसलिए महावीर ने ध्यान शब्द का उतना प्रयोग नहीं किया। ध्यान की जगह ज्यादा उन्होंने प्रयोग किया-सामायिक / वह महावीर का अपना शब्द है, सामायिक। महावीर आत्मा को समय कहते हैं और सामायिक उसे कहते हैं, जब कोई व्यक्ति अपनी आत्मा में ही होता है, तब उसे सामायिक कहते हैं। इधर एक बहुत अदभुत काम चल रहा है वैज्ञानिकों के द्वारा। अगर वह काम ठीक-ठीक हो सका तो शायद महावीर का शब्द सामायिक पुनरुज्जीवित हो जाए। वह काम यह चल रहा है कि आइन्स्टीन ने, प्लांक ने, और अन्य पिछले पचास वर्षों के वैज्ञानिकों ने यह अनुभव किया है कि इस जगत में जो स्पेस है वह श्री-डायमेंशनल है। जो स्थान है, अवकाश है, आकाश है, वह तीन आयामों में बंटा है। हम किसी भी चीज को तीन आयामों में देखते हैं, वह थ्री-डायमेंशनल है। लम्बाई है, चौड़ाई है, मोटाई है। वह तीन है, तीन आयाम में स्थान है। और यह तीनों के साथ समय, टाइम है। ___ अब तक बड़ी कठिनाई थी कि यह समय को कैसे इन तीन आयामों से जोड़ा जाए। क्योंकि जोड़ तो कहीं न कहीं होना ही चाहिए। समय और क्षेत्र, टाइम और स्पेस कहीं जुड़े होने चाहिए, अन्यथा इस जगत का अस्तित्व नहीं बन सकता। इसलिए आइन्स्टीन ने टाइम और स्पेस की अलग-अलग बात करनी बंद कर दी, और 'स्पेसिओटाइम' एक शब्द बनाया, कि समय और क्षेत्र एक ही हैं। का क्षेत्र एक हैं। और आइंस्टीन ने कहा कि समय जो है, वह स्पेस का ही फोर्थ डायमेंशन है, वह क्षेत्र का ही चौथा आयाम है। वह अलग चीज नहीं है। और आइंस्टीन के मरने के बाद इस पर और काम हुआ और पाया गया कि टाइम भी एक तरह की ऊर्जा, एनर्जी है, शक्ति है। और अब वैज्ञानिक ऐसा सोचते हैं कि मनुष्य का शरीर तो तीन आयामों से बना है और मनुष्य की आत्मा चौथे आयाम से बनी है। अगर यह बात सही हो गयी तो चौथे आयाम का नाम टाइम होगा। और महावीर ने पच्चीस सौ साल पहले आत्मा को समय कहा है, टाइम कहा है। ___ कई बार विज्ञान जिन अनुभूतियों को बहुत बाद में उपलब्ध कर पाता है, रहस्य में डूबे हुए संत उसे हजारों साल पहले देख लेते हैं। दस-पंद्रह वर्ष का वक्त है, इस बीच काम जोर से चल रहा है। बड़ा काम रूस के वैज्ञानिक कर रहे हैं। और वे निरंतर इस बात के निकट पहुंचते जा रहे हैं कि समय ही मनुष्य की चेतना है। इसे ऐसा समझें तो थोड़ा खयाल में आ जाए तो हमें फिर ध्यान की धारणा में, महावीर की धारणा में उतरना आसान हो जाए। इसे ऐसा समझें कि पदार्थ बिना समय के भी कल्पना की जा सकती है, कंसीवेबल है। लेकिन चेतना बिना समय के कल्पना भी नहीं की जा सकती। सोच लें कि समय नहीं है जगत में, तो पदार्थ तो हो सकता है, पत्थर हो सकता है, लेकिन चेतना नहीं हो सकेगी। क्योंकि चेतना की जो गति है, वह स्थान में नहीं है, समय में है। चेतना की जो गति है, वह समय में है, वह स्थान में नहीं है, वह स्पेस में नहीं है-वह टाइम में है, समय में है। जब आप यहां उठकर आते हैं अपने घर से, तो आपका शरीर यात्रा करता है, एक वह यात्रा होती है स्थान में। आप घर से निकले, और कार में बैठे, बस में बैठे, ट्रेन में बैठे, चले; यह यात्रा स्थान में है। आपकी जगह एक पत्थर भी रख देते तो वह भी कार में बैठकर यहां तक आ जाता। लेकिन कार में बैठे हुए आपका मन एक और गति भी करता है जिसका कार से कोई संबंध नहीं है। वह गति समय में है। हो सकता है आप जब घर में हों, और जब कार में बैठे हों, तभी आप समय में इस हाल में आ गए हों, मन में इस हाल में आ गए हों। लेकिन कार अभी घर के सामने खड़ी है। सच तो यह है कि आप कार में बैठते ही इसलिए हैं कि आपका मन कार के पहले इस हाल की तरफ गति करता है। इसलिए आप कार में बैठते हैं, नहीं तो आप कार में नहीं बैठेंगे। 317 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340017
Book TitleMahavir Vani Lecture 17 Samayik Samay me Thaher Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size75 MB
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