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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 कहीं और दूर डिस्टेंस पर खीलियां ठोंकी जा रही हैं। महावीर दूर हो गए। महावीर मर रहे हैं तो आप ही जैसे नहीं मर रहे हैं। गेस्टाल्ट और है। महावीर चेतना को देख रहे हैं, जो नहीं मरती।। ___ जब जीसस को सूली पर लटकाया जा रहा है तो गेस्टाल्ट और है। जीसस उस शरीर को नहीं देख रहे हैं, जो सूली पर लटकाया जा रहा है। जब मंसूर को काटा जा रहा है तो गेस्टाल्ट और है। मंसूर उस शरीर को नहीं देख रहा है, जो काटा जा रहा है, इसलिए मंसूर हंस रहा है। और कोई पूछता है—मंसूर, तुम काटे जा रहे हो और हंस रहे हो? तो मंसूर ने कहा कि मैं इसलिए हंसता हूं कि जिसे तुम काट रहे हो वह मैं नहीं हूं। और जो मैं हूं तुम उसे छू भी नहीं पा रहे हो तो मुझे बड़ी हंसी आ रही है। तुम्हारी तलवारें मेरे आसपास से गुजर जा रही हैं लेकिन मुझे स्पर्श नहीं कर पाती हैं। यह गेस्टाल्ट का परिवतेन है, ध्यान का परिवर्तन है, ध्यान का फोकस बदल गया है, वह कुछ और देख रहा है। तो रात्रि विचार के लिए तीन प्रक्रियाएं-सुबह पहले विचार की प्रतीक्षा की एक प्रक्रिया और शेष सारे दिन साक्षी का भाव, विटनेस है। जो भी हो रहा है उसका मैं साक्षी हूं, कर्ता नहीं। भोजन कर रहे हैं तो दो चीजें रह जाती हैं। दो भी नहीं रह जाती, साधारण आदमी को एक ही चीज रह जाती है-भोजन रह जाता है। अगर थोड़ा बुद्धिमान आदमी है तो दो चीजें होती हैं-भोजन होता है, भोजन करनेवाला होता है। __बुद्धिमान से मेरा मतलब है? जो थोड़ा सोच-समझकर जीता है। जो बिलकुल ही गैर-सोच-समझकर जीता है, भोजन ही रह जाता है, इसलिए वह ज्यादा भोजन कर जाता है, क्योंकि भोजन करनेवाला तो मौजूद नहीं था। कल उसने तय किया था कि इतना ज्यादा भोजन नहीं करना है। पच्चीस दफे तय कर चुका है कि इतना ज्यादा भोजन नहीं करना है। इससे यह बीमारी पकड़ती है, यह रोग आ जाता है। रोग से दुखी होता है-यह भोजन इतना नहीं करना। तय कर लिया। कल जब फिर भोजन करने बैठता है तो ज्यादा भोजन करता है और वही चीजें खा लेता है जो नहीं खानी थीं। क्यों? भोजन करनेवाला मौजूद ही नहीं रहता। सिर्फ भोजन रह जाता है। भोजन ने तो तय नहीं किया था, इसलिए भोजन को जितना करवाना है, करवा देता है। जिसको हम थोड़ा बुद्धिमान आदमी कहें, वह दोनों का होश रखता है-भोजन का भी, भोजन करनेवाले का भी। लेकिन महावीर जिसे साक्षी कहते हैं, वह तीसरा होश है। वह होश इस बात का है कि न तो मैं भोजन है और न मैं भोजन करनेवाला है। भोजन भोजन है. भोजन करनेवाला शरीर है, मैं दोनों से अलग है। एक ट्राएंगल का निर्माण है, एक त्रिकोण का, एक त्रिभुज का। तीसरे कोण पर मैं हूं। इस तीसरे कोण पर, इस तीसरे बिंदु पर चौबीस घण्टे रहने की कोशिश साक्षीभाव है। कुछ भी हो रहा है, तीन हिस्से सदा मौजूद हैं और मैं तीसरा हूं, मैं दो नहीं हूं। ज्यादा भोजन कर लेनेवाला एक ही कोण देखता है। अगर कहीं प्राकृतिक चिकित्सा के संबंध में थोड़ी जानकारी बढ़ गयी तो दूसरा कोण भी देखने लगता है कि मैं करनेवाला, ज्यादा न कर लूं। पहले भोजन से एकात्म हो जाता था अब करने वाले शरीर से एकात्म हो जाता है। लेकिन साक्षी नहीं होता। साक्षी तो तब होता है, जब दोनों के पार तीसरा हो जाता है। और जब वह देखता है कि यह रहा भोजन, यह रहा शरीर, यह रहा मैं और मैं सदा अलग हूं।। इसलिए महावीर ने कहा है-पृथकत्व। साक्षी भाव का उन्होंने प्रयोग नहीं किया। उन्होंने पृथकत्व शब्द का प्रयोग किया है-अलगपन। इसको महावीर ने कहा है भेद विज्ञान, द साइंस आफ डिवीजन / महावीर का अपना शब्द है, भेद विज्ञान / द साइंस टु डिवाइड। चीजों को अपने-अपने हिस्सों में तोड़ देना है। भोजन वहां है, शरीर यहां है, मैं दोनों के पार हूं-इतना भेद स्पष्ट हो जाए तो साक्षी जन्मता है। तो तीन बातें स्मरण रखें-रात नींद के समय स्मरण, प्रतिक्रमण, पुनर्जीवन। सुबह पहले विचार की प्रतीक्षा, ताकि अंतराल दिखाई 326 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340017
Book TitleMahavir Vani Lecture 17 Samayik Samay me Thaher Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size75 MB
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