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________________ सामायिक : स्वभाव में ठहर जाना अगर आपने कभी कोई गेस्टाल्ट चित्र देखे हैं तो आप समझ पाएंगे। मनोविज्ञान की किताबों में गेस्टाल्ट के चित्र दिए होते हैं। कभी एक चित्र आप में से बहुत लोगों ने देखा होगा, नहीं देखा होगा तो देखना चाहिए। एक बूढ़ी का चित्र बना होता है, एक बूढ़ी स्त्री का चित्र बना होता है। बहुत से गेस्टाल्ट चित्र बने हैं। बूढ़ी का चित्र बना होता है, आप उसको गौर से देखें तो बूढ़ी दिखाई पड़ती है। फिर आप देखते ही रहें, देखते ही रहें, देखते ही रहें, अचानक आप पाते हैं कि चित्र बदल गया। और एक जवान स्त्री दिखाई पड़नी शरू हो गयी। वह भी उन्हीं रेखाओं में छिपी हुई है। वह भी उन्हीं रेखाओं में छिपी हई है. लेकिन एक बड़े मजे की बात होगी कि जब तक आपको बूढ़ी का चित्र दिखाई पड़ेगा, तब तक जवान स्त्री का चित्र नहीं दिखाई पड़ेगा। और जब आपको जवान स्त्री का चित्र दिखाई पड़ेगा तो बूढ़ी खो जाएगी। दोनों आप एक साथ नहीं देख सकते, यह गेस्टाल्ट का मतलब है। गेस्टाल्ट का मतलब है कि पैटर्न हैं देखने के, और विपरीत पैटर्न एक साथ नहीं देखे जा सकते। जब जवान स्त्री दिखाई पड़ेगीचित्र वही है, रेखाएं वही हैं, आप वही हैं, कुछ बदला नहीं है। लेकिन आपका ध्यान बदल गया। आप बूढ़ी को देखते-देखते ऊब गए, परेशान हो गए। ध्यान ने एक परिवर्तन ले लिया, उसने कुछ नया देखना शुरू किया। क्योंकि ध्यान सदा नया देखना चाहता है। अब वह जवान स्त्री जो अभी तक आपको नहीं दिखाई पड़ी थी, वह दिखाई पड़ गयी। बड़ा मजा यह होगा, आप दोनों को एक साथ नहीं देख सकते हैं, साइमल्टेनियसली, युगपत नहीं देख सकते हैं। अब आपको पता है-पहले तो आपको पता भी नहीं था कि इसमें एक जवान चेहरा भी छिपा हआ है। अब आपको पता है कि दोनों चेहरे छिपे हैं. अब भी आप नहीं देख सकते-अब भी जब तक जवान चेहरा देखते रहेंगे, बूढ़ी का कोई पता नहीं चलेगा। जब आप बूढ़ी को देखना शुरू करेंगे, जवान खो जाएगा। गेस्टाल्ट है यह। चेतना विपरीत को एक साथ नहीं देख सकती। जब तक आप धूल के कण देख रहे हैं, तब तक आप प्रकाश की वल्लरी नहीं देख सकते। और जब आप प्रकाश की वल्लरी देखने लगेंगे तब धूल के कण नहीं देख सकते। जब तक आप विचार को देख रहे हैं, तब तक आप चेतना को नहीं देख सकते। जब आप विचार को नहीं देखेंगे, तब आप चेतना को देखेंगे। और चेतना को एक दफे जो देख ले, उसके जीवन की सारी की सारी रूपरेखा बदल जाती है। अभी हमारी सारी रूपरेखा विचार से निर्धारित होती है, धूलकणों से। फिर हमारी सारी चेतना प्रकाश से प्रवाहित होती है। फिर भी आप दोनों चीजों को एक साथ नहीं देख सकेंगे। जब आप विचार देखेंगे तब चेतना भूल जाएगी। जब आप चेतना देखेंगे तब विचार भूल जाएंगे। लेकिन फिर आपको याद तो रहेगा चाहे कि जवान चेहरा दिखाई याद तो रहेगा कि बढा चेहरा छिपा हआ है। फिर आप बढा चेहरा देख रहे हो तब भी आपको याद रहेगा कि जवान चेहरा भी कहीं मौजूद है, सोया हुआ है, छिपा हुआ है, अप्रगट है। जिस दिन कोई व्यक्ति निर्विचार हो जाता है उस दिन चेतना पर उसका ध्यान जाता है। तब तक ध्यान नहीं जाता। और एक बार चेतना पर ध्यान चला जाए तो फिर चेतना का विस्मरण नहीं होता है। चाहे आप विचार में लगे रहें, दुकान पर लगे रहें, बाजार में काम करते रहें, कुछ भी करते रहें, भीतर चेतना है, इसकी स्पष्ट प्रतीति बनी रहती है। बीमार हो जाएं, रुग्ण हो जाएं, दुखी हो जाएं, हाथ पैर कट जाएं फिर भी भीतर चेतना है, इसकी स्पष्ट स्मृति बनी रहती है। और जब चाहें तब गेस्टाल्ट बदल सकते हैं। एक्सिडेंट हो रहा है और शरीर टूटकर गिर पड़ा, पैर अलग हो गए हैं। जरूरी नहीं है कि आप पैर को ही देखकर दुखी हों। आप गेस्टाल्ट बदल सकते हैं। आप चेतना को देखने लगे, शरीर गया। शरीर का कोई दुख नहीं होगा / आप शरीर नहीं रहे। जब महावीर के कान में खीलियां ठोंकी जा रही हैं तो आप यह मत समझना कि महावीर आप ही जैसे शरीर हैं। आप ही जैसे शरीर होंगे तो खीलियों का दर्द होगा। महावीर का गेस्टाल्ट बदल जाता है। अब महावीर शरीर को नहीं देख रहे हैं, वे चेतना को देख रहे हैं। तो शरीर में खीलियां ठोंकी जा रही हैं तो वे ऐसी ही मालूम पड़ती हैं, जैसे किसी और के शरीर में खीलियां ठोंकी जा रही हैं। जैसे 325 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340017
Book TitleMahavir Vani Lecture 17 Samayik Samay me Thaher Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size75 MB
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