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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 गलत होंगे! वे बबूल की आत्मा से निकलते हैं। लेकिन बबूल जब अपने कांटों को देखता है तो कहता है कि दुखी हूं। वृक्ष तो मैं ऐसा नहीं हूं कि मुझसे कांटे निकलें। परिस्थिति ने निकाल दिए होंगे। या अपने को समझाए कि हो सकता है कि कुछ लोगों के भोजन के लिए मैंने ये कांटे निकाले हों-कि ऊंट हैं, बकरियां हैं, वे भोजन कर सकें, नहीं तो भूखे मर जाएंगे। ऐसे मुझमें कांटे का क्या सवाल है! कांटे भी निकलते हैं तो किसी की करुणा से निकलते हैं। क्रोध भी आता है आपको तो किसी को बदलने के लिए आता है। कि उस आदमी को बदलना पड़ेगा न! दया के कारण आप क्रोध करते हैं। बाप कर रहा है बेटे पर, मां कर रही बेटी पर-दया के कारण, करुणा के कारण कि इसको बदलना है, नहीं तो बिगड़ जाएगा। और मजा यह है कि सब क्रोध के बाद कहीं कोई सुधार दिखाई नहीं पड़ता। सारी दुनिया क्रोध करती आ रही है। सब याल में क्रोध कर रहे हैं कि नहीं तो लोग बिगड जाएंगे, और लोग हैं कि बिगडते ही चले जा रहे हैं। कोई किसी में अंतर नहीं दिखाई पड़ता है। नहीं, मालूम ऐसा होता है कि क्रोध का संबंध दूसरे को सुधारना कम, यह दूसरे को सुधारना अपने क्रोध के लिए तर्क खोजना ज्यादा है। यह दूसरा भी कल बड़े होकर यही तर्क खोजेगा और रेशनलाइज करेगा। यह भी अपने बच्चों को ऐसे ही सुधारेगा। ये जो कर्म हैं, इन पर जिनका ध्यान है वे पश्चात्ताप से आगे नहीं बढ़ेंगे और पश्चात्ताप आगे बढ़ना ही नहीं है-पीछे लौटना है एक कदम, फिर एक कदम वापिस; फिर एक कदम आगे, फिर एक कदम पीछे। फिर क्रोध किया, फिर पैर उठाकर पीछे रख लिया; फिर क्रोध किया, फिर पैर उठाकर पीछे रख लिया। यह एक ही जगह पर दौड़ने जैसी क्रिया है, कहीं जाती नहीं। पश्चात्ताप से सजग हों, पश्चात्ताप आपको बदलेगा नहीं; बदलने का धोखा देता है। क्योंकि जब पश्चात्ताप के क्षण में आप होते हैं तो आप अपने सारे अच्छे गुण चुन लेते हैं। जब आप कहते हैं-मिच्छामि दुक्कड़म, तब आप एक प्रतिमा होते हैं साक्षात क्षमा की। मगर आप बाइलिंग्वल हैं, द्विभाषी हैं। वह दूसरी भाषा भीतर छिपी बैठी है। वह अगर दूसरा आदमी कह देगा कि अच्छा आप तो मानते हो लेकिन मैं नहीं मानता क्योंकि मैंने कोई अपराध आपकी तरफ किया नहीं; तो उसी वक्त दूसरी भाषा आपके भीतर सक्रिय हो जाए कि यह आदमी दुष्ट है। मैंने क्षमा मांगी और इसने क्षमा भी नहीं मांगी। या आप किसी से कहें कि मैं क्षमा मांगता हूं और वह कह दे कि किया क्षमा। तो पीड़ा शुरू हो जाएगी तत्काल। दूसरी भाषा आ जाएगी। सुना है मैंने कि एक चूहा अपने बिल के बाहर घूम रहा था। अचानक पैरों की आवाज सुनी-परिचित थी, बिल्ली की मालूम पड़ती थी-घबराकर अपने बिल के भीतर चला गया। लेकिन जैसे ही भीतर गया, चकित हुआ। बाहर तो कुत्ता भोंक रहा था - भों-भों। चूहा बाहर आया। तत्काल बिल्ली के मुंह में चला गया। चारों तरफ देखा, कुत्ता कहीं भी नहीं था। चूहे ने पूछा कि तू मुझे मार डाल, उसमें कोई हर्जा नहीं, लेकिन एक बात... और मरते हुए प्राणी की एक जिज्ञासा को पूरा कर दे। वह कुत्ता कहां गया? बिल्ली ने कहा-यहां कोई कुत्ता नहीं है। यू नो, इट पेइज़ टु बी बाइलिंग्वल। मैं कुत्ते की आवाज करती हूं, हूं बिल्ली एण्ड इट पेइज़ / तुम फंस गए मेरे चक्कर में, नहीं तो तुम फंसते नहीं। द्विभाषी हूं, कुत्ते की भाषा बोलती हूं, हूं बिल्ली। इससे चूहे बड़ी आसानी से फंसते हैं। * हम सब बाइलिंग्वल हैं, द्विभाषी हैं, दो-दो भाषा जानते हैं। बोलने की भाषा और है, होने की भाषा और है। पूरे वक्त दो किनारों के बीच चलता रहता है। पश्चात्ताप करके आप बड़े प्रसन्न होते हैं, जैसा क्रोध करके बहुत दुखी और विषाद को उपलब्ध होते हैं। क्रोध करके विषाद आता है कि ऐसा बुरा आदमी मैं नहीं था। पश्चात्ताप करके चित्त प्रफुल्लित होता है, देखो कितना अच्छा आदमी हूं। अहंकार पुनर्प्रतिष्ठित हुआ। नहीं, प्रायश्चित का अर्थ-भूल कर्म में नहीं है, भूल मुझमें है, गलत मैं हूं। 254 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340014
Book TitleMahavir Vani Lecture 14 Prayaschitta Pahla Antar Tap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size81 MB
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