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________________ प्रायश्चित : पहला अंतर तप तो जब आप एक व्यक्ति में सौंदर्य देखना शुरू करते हैं तो आप चुनाव कर लेते हैं एक किनारे का। भूल जाते हैं—नदी दो किनारों में बहती है। दूसरा किनारा भी है। उस दूसरे के किनारे के बिना न तो नदी हो सकती है, न यह किनारा हो सकता है। अकेला किनारा कहीं होता है? किनारे का मतलब यह होता है कि वह दूसरे का जोड़ है। पर आप चुनाव कर लेते हैं। फिर आज नहीं कल सौंदर्य से थक जाएंगे। सब चीजें थका देती हैं, सब चीजें उबा देती हैं। मन चाहता है—रोज नया, रोज नया। फिर पुराना उबाने लगता है। फिर जब पुराना उबा देता है तो जो हिस्से आपने छोड़ दिए थे पहले चुनाव में वे प्रगट होने लगते हैं। दूसरा किनारा दिखाई पड़ता है और जिसके प्रति आप प्रेम से भरे थे, उसी के प्रति घृणा से भर जाते हैं। जिसके प्रति आप श्रद्धा से भरे थे, उसीके प्रति अश्रद्धा से भर जाते हैं। जिसको आप भगवान कहने गए थे उसी को आप शैतान कहने जा सकते हैं। इसमें कोई अड़चन नहीं है। जिससे आपने कहा था-तेरे बिना जी न सकेंगे; उससे ही आप कह सकते हैंअब तेरे साथ न जी सकेंगे। ___ मन द्वंद्व में चलता है, क्योंकि चुनाव करता है। इसलिए जिसे द्वंद्व के बाहर होना है उसे चुनाव रहित होना पड़े, च्वाइसलैस होना पड़े। चुनता ही नहीं है-काला है तो उसे भी देखता है, सफेद है तो उसे भी देखता है और मान लेता है कि काला हो नहीं सकता सफेद के बिना, सफेद हो नहीं सकता काले के बिना-फिर उस आदमी की दष्टि में कभी परिवर्तन नहीं होता। मैं चकित होता हं। सब संबंध परविर्तित होते हैं। एक आदमी मेरे पास आता है, इतनी श्रद्धा और इतनी भक्ति से भरकर आता है कि कभी सोचा भी नहीं जा सकता कि यह आदमी कभी विपरीत चला जाएगा। लेकिन मैं जानता हूं कि इसकी श्रद्धा और भक्ति चुनाव है। यह विपरीत जा सकता है। जब यह विपरीत जाने लगता है तो दूसरे लोग मेरे पास आकर कहते हैं कि यह कैसे संभव है। आपके जो इतना निकट है, आपको जो इतनी भक्ति देता है वह आपके विपरीत जा रहा है। उनको पता नहीं कि यह बिलकुल नियमानुसार हो रहा है। यह बिलकुल नियमानुसार हो रहा है। एक किनारा उसने चुना था, अब वह उस किनारे को छोड़कर दूसरा चुनेगा। और पहले किनारे को जब चुना था तब भी आपने अपने को तर्क दे लिए थे कि मैं सही हूं और दूसरे किनारे को चुनते वक्त भी आप अपने को तर्क दे लेंगे कि आप सही हैं। और मैं आपसे कहता हूं कि एक किनारे को चुनना गलत है। वह किनारा कौन-सा है, यह सवाल नहीं है। वह तर्क क्या है, यह सवाल नहीं है। जब कोई आकर मुझे भगवान मानने लगता है तब भी मैं जानता हूं, वह एक किनारे को चुन रहा है। वह चुनाव गलत है। एक किनारे को चुन लेना गलत है। यह सवाल नहीं है कि वह क्या तर्क अपने को दे रहा है। वही आदमी कल मुझे शैतान मान लेगा और तब भी तर्क खोज लेगा! मैं नहीं कहता कि उसका शैतान ही मान लेना गलत है। मैं कहता हूं उसका चुनाव गलत है। वह पूरे को नहीं देख रहा। चुनेगा तो बदलेगा। जहां तक चुनाव है वहां तक परिवर्तन होगा। जब आप क्रोध में होते हैं तब आप एक हिस्सा चुन लेते हैं अपने व्यक्तित्व का वह जो क्रोध करनेवाला है। जब क्रोध निकल जाता है, बिदा हो जाता है तब आप अपने व्यक्तित्व का दूसरा हिस्सा चुनते हैं जो पश्चात्ताप करनेवाला है। क्रोध कर लेते हैं एक हिस्से से, वह एक चुनाव था, आपकी प्रतिमा का एक रूप था। फिर पश्चात्ताप कर लेते हैं, वह आपकी प्रतिमा का दूसरा चुनाव है। किनारों के बीच नाव बहती रहती है। आपकी नदी बहती रहती है। आप यात्रा करते रहते हैं। कभी इस किनारे लगा देते हैं नाव को, कभी उस किनारे लगा देते हैं। / प्रायश्चित दो किनारों के बीच चुनाव नहीं है। प्रायश्चित बहुत अदभुत घटना है। पश्चात्ताप देख लेता है, कर्म की कोई भूल है। प्रायश्चित देखता है, मैं गलत हूं। कर्म नहीं, क्योंकि कर्म क्या गलत होगा! गलत आदमी से गलत कर्म निकलते हैं, कर्म कभी गलत नहीं होते। गलत आदमी से गलत कर्म निकलते हैं। बबूल के कांटे गलत नहीं होते, वे बबूल की आत्मा से निकलते हैं। कांटे क्या 253 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340014
Book TitleMahavir Vani Lecture 14 Prayaschitta Pahla Antar Tap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size81 MB
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