SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-वाणी भाग : 1 रहे हैं वहीं-वहीं मन और गहरी रेखाएं स्मति की निर्मित कर लेता है। नहीं, मन को दबाने, समझाने, भुलाने की कोई व्यवस्था रस-परित्याग नहीं लाती। फिर रस-परित्याग कैसे फलित होता है? रस-परित्याग का जो वास्तविक रूपांतरण है, वह मन और चेतना के बीच संबंध टूटने से घटित होता है। मन और चेतना के बीच ही असली घटना घटती है। इसे थोड़ा समझ लें तो खयाल में आ जाए। ___ मन उसी बात में रस ले पाता है जिसमें चेतना का सहयोग हो, को-आपरेशन हो। जिस बात में चेतना का सहयोग न हो, उसमें मन रस नहीं ले पाता। असमर्थ है। एक आदमी रास्ते से भागा जा रहा है। आज भी रास्ते की दुकानों के विंडो केसेज में वे ही चीजें सजी हैं जो कल तक सजी थीं, लेकिन आज उसे दिखाई नहीं पड़ती। रास्ते पर अब भी सुंदर कारें भागी जा रही हैं, लेकिन आज उसे दिखाई नहीं पड़तीं। उसके घर में आग लगी है, वह भागा चला जा रहा है। क्या हुआ? घर में आग लगी है तो हो क्या गया? चीजें तो अब भी गुजर रही हैं। मन वही है, इंद्रियां वही हैं, उन पर संघात वही पड़ रहे हैं, संवेदनाएं वही हैं, लेकिन आज उसकी चेतना कहीं और है। आज उसकी चेतना अपने मन के, अपनी इंद्रियों के साथ नहीं है। आज उसकी चेतना भाग गई है। वह वहां है जहां मकान में आग लगी है। लेकिन घर जाकर पहंचे और पता चले कि किसी और के मकान में आग लगी है। गलत खबर मिली थी। सब वापस लौट आएगा। गया। ठीक छह बजे जीवन नष्ट होने को था, और छह बजने के पांच मिनट पहले खबर आयी जार की कि वह क्षमा कर दिया गया है। दोस्तोवस्की ने ... बाद में निरंतर कहता था-उस क्षण जब छह बजने के करीब आ रहे थे तब मेरे मन में न कोई वासना थी, न कोई इच्छा थी, न कोई रस था, कुछ भी न था। मैं इतना शांत हो गया था, और मैं इतना शून्य हो गया था कि मैंने उस क्षण में जाना कि साधु, संत जिस समाधि की बात करते हैं वह क्या है। लेकिन जैसे ही जार का आदेश पहुंचा और मुझे सुनाया गया कि मैं छोड़ दिया जा रहा हूं, मेरी फांसी की सजा माफ कर दी गई। अचानक, जैसे मैं किसी शिखर से नीचे गिर गया। बस वापस लौट आया। सब इच्छाएं: सब क्षुद्रतम इच्छाएं, जिनका कोई मूल्य नहीं था क्षणभर पहले, वे सब वापस लौट आयीं। पैर में जता काट रहा था, उसका फिर पता चलने लगा। जूता काट रहा था पैर में, उसका फिर पता चलने लगा। नया जूता लेना है, उसकी योजना चल रही थी—सब वापस। दोस्तोवस्की कहता था-उस शिखर को मैं दुबारा नहीं छू पाया। जो उस दिन आसन्न मृत्यु के निकट अचानक घटित हुआ था। हुआ क्या था? अब मृत्यु इतनी सुनिश्चित हो तो चेतना सब संबंध छोड़ देती है। इसलिए समस्त साधकों ने मृत्यु के सुनिश्चय के अनुभव पर बहुत जोर दिया है। बुद्ध तो भिक्षुओं को मरघट में भेज देते थे कि तुम तीन महीने लोगों को मरते, जलते, मिटते, राख होते देखो। ताकि तुम्हें अपनी मृत्यु बहुत सुनिश्चित हो जाए। और जब तीन महीने बाद कोई साधक मृत्यु पर ध्यान करके लौटता था तो जो पहली घटना उसके मित्रों को दिखाई पड़ती थी, वह थी रस-परित्याग। रस चला गया। रस के जाने का सूत्र है-चेतना और मन का संबंध टूट जाए। वह संबंध कैसे टूटेगा और संबंध कैसे निर्मित हुआ है? जब तक मैं सोचता हूं-मैं मन हूं, तब तक संबंध है। यह आइडेंटिटी, यह तादात्म्य कि मैं मन हूं, तब तक संबंध है। यह संबंध का टूट जाना, यह जानना कि मैं मन नहीं हूं, रस छिन्न-भिन्न हो जाता है-खो जाता है। रस-परित्याग की प्रक्रिया है - मन के प्रति साक्षीभाव, विटनेसिंग। जब आप भोजन कर रहे हैं तो मैं नहीं कहूंगा आपको कि 216 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340012
Book TitleMahavir Vani Lecture 12 Ras Parityag aur Kaya Klesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size77 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy