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________________ रस-परित्याग और काया-क्लेश काया-क्लेश की साधना नहीं है। क्योंकि जो आदमी काया को दुख देने में लगा है, वह आदमी फिर किसी सुख की आकांक्षा में पड़ा। प्रयत्न हम सुख के लिए ही करते हैं। ध्यान रहे प्रयत्न मात्र सुख के लिए है। जब तक हम कोई प्रयत्न करते हैं, तब तक हम सुख की ही आकांक्षा से करते हैं। एक आदमी अपने शरीर को भी सता सकता है, सिर्फ इस आशा में कि इससे मोक्ष मिलेगा, आनंद मिलेगा, आत्मा मिलेगी, परमात्मा मिलेगा। तो सुख की आकांक्षा जारी है। __ महावीर की काया-क्लेश की धारणा किसी सुख के लिए शरीर को दुख देने की नहीं है। परंपरागत व्याख्याकार कहते हैं कि जैसे आदमी धन कमाने के लिए दुख उठाता है, ऐसा ही मोक्ष पाने के लिए दुख उठाना पड़ेगा। गलत कहते हैं। बिलकुल ही गलत कहते हैं। जैसे कोई आदमी व्यायाम करता है तो शरीर को कष्ट देता है ताकि स्वास्थ्य ठीक हो जाए, ऐसा ही काया-क्लेश करना पड़ेगा। गलत कहते हैं। बिलकुल गलत कहते हैं। काया तो क्लेश ही है अब और क्लेश आप उसमें जोड़ नहीं सकते। आपके हाथ बाहर है क्लेश जोड़ना। अगर आपके हाथ के भीतर हो क्लेश जोड़ना, तब तो क्लेश कम करना भी आपके हाथ के भीतर हो जाएगा। यह समझ लें। अगर आप शरीर में दुख जोड़ सकते हैं तो घटा क्यों नहीं सकते। फिर वह सांसारिक कौन-सी गलती कर रहा है, वह कह रहा है-तुम जोड़ने की कोशिश में लगे हो। अगर जोड़ने में सफल हो जाओगे-पांच दुख की जगह अगर तुम दस कर सकते हो तो मैं पांच की जगह शून्य क्यों नहीं कर सकता! अगर दुख जुड़ सकते हैं तो दुख घट भी सकते हैं। जहां जोड़ हो सकता है, वहां घटना भी हो सकता है। तो यह तथाकथित धार्मिक आदमी जो शरीर को दुख दे रहा है इसमें, और भोगी जो शरीर के दुख कम करने में लगा है, कोई भेद नहीं है। इनका तर्क एक ही है। इनकी निष्ठा भी एक है। इनकी श्रद्धा में भेद नहीं है। एक कह रहा है-हम जोड़ लेंगे; एक कह रहा है हम घटा लेंगे। इनके गणित में फर्क नहीं है। इनके गणित का हिसाब एक ही है। महावीर कहते हैं-न तम जोड़ सकते. न तम घटा सकते। जो है, उसे चाहो तो स्वीकार कर लो, चाहो तो अस्वीकार कर दो। इतना तुम कर सकते हो। जो आल्टरनेटिव है, जो विकल्प है वह स्वीकार और अस्वीकार में है। वह घटाने और बढ़ाने में नहीं है। तुम चाहो तो स्वीकार कर लो, तुम चाहो तो अस्वीकार कर दो। ध्यान रहे, स्वीकार कर लोगे तो दुख शून्य हो जाएगा। अस्वीकार कर दोगे तो दुख जितना अस्वीकार करोगे, उतना गुना ज्यादा हो जाएगा। काया-क्लेश का अर्थ है, पूर्ण स्वीकृति, जो है उसकी वैसी ही स्वीकृति। ___ महावीर के कानों में जिस दिन खीलें ठोंके गए, तो कथा कहती है, इंद्र ने आकर महावीर को कहा कि आप मुझे आज्ञा दें। हमें बड़ी पीड़ा होती है। आप जैसे निस्पृह व्यक्ति को लोग आकर कानों में खीलें ठोंक दें, सतायें, परेशान करें-हमें पीड़ा होती है। ___ तो महावीर ने कहा कि मेरे शरीर में ठोंके जाने से तुम्हें इतनी पीड़ा होती है तो तुम्हारे शरीर में ठोंके जाने से तुम्हें कितनी न होगी? इंद्र कुछ भी न समझा। उसने कहा कि निश्चित होती है। तो मैं आपकी रक्षा करने लगू? महावीर ने कहा-तुम भरोसा देते हो कि तुम्हारी रक्षा से मेरे दुख कम हो जाएंगे? इंद्र ने कहा-कोशिश कर सकता हूं। कम होंगे कि नहीं, मैं नहीं कह सकता। महावीर ने कहा-मैंने भी जन्मों-जन्मों तक कोशिश करके देखी, कम नहीं हुए। अब मैंने कोशिश छोड़ दी। अब मैं इतनी कोशिश भी न करूंगा कि तुमको मैं रक्षा के लिए रखू। नहीं, तुम जाओ। तुम्हारी भी भूल वही है जो उस कान में खीलें ठोंकनेवाले की भूल थी। वह सोचता था खीलें ठोंककर मेरे दुख बढ़ा देगा; तुम सोचते हो मेरे साथ रहकर मेरे दुख घटा दोगे। गणित तुम्हारा एक है। मुझे छोड़ दो, जो है मुझे स्वीकार है। उसने खीलें जरूर ठोंके। मुझ तक नहीं पहुंची उसकी खीलें, मैं बहुत दूर खड़ा हूं। मैंने स्वीकार कर लिया है, मैं दूर खड़ा हूं। एक्सेस इज ट्रासेंडेंस। जैसे ही किसी ने स्वीकार किया, अतिक्रमण हो जाता है। जिस स्थिति को आप 227 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340012
Book TitleMahavir Vani Lecture 12 Ras Parityag aur Kaya Klesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size77 MB
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