________________ ऊणोदरी एवं वृत्ति-संक्षेप मारने से रुक ही न सकते थे। वही जगह लौट आने की है, वही ऊण की जगह है। वहीं से वापस लौट आने का नाम है अपूर्ण पर छूट जाना। ___ऊणोदरी का अर्थ है-अपूर्ण रह जाए उदर, पूरा न भर पाए। तो आप चार रोटी खाते हैं, तीन खा लें तो उससे कुछ ऊणोदरी नहीं हो जाएगी। पहले वास्तविक भूख खोज लें, फिर वास्तविक भूख को खोजकर भोजन करने बैठें। किसी भी इंद्रिय का भोजन हो, यह सवाल नहीं है। फिल्म देखने आप गए हैं। नब्बे प्रतिशत फिल्म आपने देख ली है, तभी असली वक्त आता है जब छोड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है क्योंकि अन्त क्या होगा! लोग उपन्यास पढ़ते हैं, तो अधिक लोग पहले अंत पढ़ लेते हैं कि अंत क्या होगा! इतनी जिज्ञासा मन की होती है अंत की / पहले अन्त पढ़ लेते हैं, फिर शुरू करते हैं। लेकिन उपन्यास पढ़ रहे हैं और दो पन्ने रह गए हैं और डिटेक्टिव कथा है और अब इन दो पन्नों में ही सारा राज खुलने को है, और आप रुक जाएं तो ऊणोदरी है। ठहर जाएं, मन बहत धक्के मारेगा कि अब तो मौका ही आया था जानने का। यह इतनी देर तो हम केवल भटक रहे थे, अब राज खलने के करीब था। डिटेक्टिव कथा थी, अब तो राज खुलता। अभी रुक जाएं और भूल जाएं। ___ फिल्म देख रहे हैं, आखिरी क्षण आ गया है। अभी सब चीजें क्लाइमेक्स को छूएंगी। उठ जाएं और लौटकर याद भी न आए कि अंत क्या हुआ होगा। किसी से पूछने को भी न जाएं कि अंत क्या हुआ। ऐसे चुपचाप उठकर चले जाएं, जैसे अंत हो गया। ऊणोदरी का अर्थ आपके खयाल में दिलाना चाहता हूं। ऐसे उठकर चले जाएं अंत होने के पहले, जैसे अंत हो गया। तो आपको अपने मन पर एक नए ढंग का काबू आना शुरू हो जाएगा। एक नई शक्ति आपको अनुभव होगी। आपकी सारी शक्ति की क्षीणता, आपकी शक्ति का खोना, डिस्सीपेशन, आपकी शक्ति का रोज-रोज व्यर्थ नष्ट होना, आपकी मन की इस आदत के कारण है जो हर चीज को पूर्ण पर ले जाने की कोशिश में लगी है। महावीर कहते हैं—पूर्ण पर जाना ही मत। उसके एक क्षण पहले, एक डिग्री पहले रुक जाना। तो तुम्हारी शक्ति जो पूर्ण को, चरम को छूकर बिखरती है और खोती है, वह नहीं बिखरेगी, नहीं खोएगी। तुम निन्यानबे डिग्री पर वापस लौट आओगे, भाप नहीं बन पाओगे। तुम्हारी शक्ति फिर संगृहीत हो जाएगी। तुम्हारे हाथ में होगी, और तुम धीरे-धीरे अपनी शक्ति के मालिक हो जाओगे। ___ इसे सब तरफ प्रयोग किया जा सकता है। प्रत्येक इंद्रिय का उदर है, प्रत्येक इंद्रिय का अपना पेट है, और प्रत्येक इंद्रिय मांग करती है कि मेरी भूख को पूरा करो। कान कहते हैं संगीत सुनो; आंख कहती है सौंदर्य देखो; हाथ कहते हैं कुछ स्पर्श करो। सब इंद्रियां मांग करती हैं कि हमें भरो। प्रत्येक इंद्रिय पर ऊण पर ठहर जाना इंद्रिय विजय का मार्ग है। बिलकुल ठहर जाना आसान है। ध्यान रहे, किसी उपन्यास को बिलकुल न पढ़ना आसान है। नहीं पढ़ा बात खत्म हो गयी। लेकिन किसी उपन्यास को अंत के पहले तक पढ़कर रुक जाना ज्यादा कठिन है। इसलिए ऊणोदरी को नम्बर दो पर रखा है। किसी फिल्म को न देखने में इतनी अड़चन नहीं है; लेकिन किसी फिल्म को देखकर और अंत के पहले ही उठ जाने में ज्यादा अड़चन है। किसी को प्रेम ही नहीं किया, इसमें ज्यादा अड़चन नहीं है, लेकिन प्रेम अपनी चरम सीमा पर पहुंचे, उसके पहले वापस लौट जाना अति कठिन है। उस वक्त आप विवश हो जाएंगे, आब्सेस्ड हो जाएंगे, उस वक्त तो ऐसा लगेगा कि चीज को पूरा हो जाने दो। जो भी हो रहा है उसे पूरा हो जाने दो। इस वृत्ति पर संयम मनुष्य की शक्तियों को बचाने की अत्यंत वैज्ञानिक व्यवस्था है। ऊणोदरी अनशन का ही प्रयोग है लेकिन थोड़ा कठिन है। आमतौर से आपने सुना और समझा होगा कि ऊणोदरी सरल प्रयोग है। जिससे अनशन नहीं बन सकता वह ऊणोदरी करे। मैं आपसे कहता हूं -ऊणोदरी अनशन से कठिन प्रयोग है। जिससे अनशन बन सकता है, वही ऊणोदरी कर सकता है। 197 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org