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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 महावीर का तीसरा सूत्र है, वृत्ति-संक्षेप। वृत्ति-संक्षेप से परंपरागत जो अर्थ लिया जाता है वह यह है कि अपनी वृत्तियों और वासनाओं को सिकोड़ना। अगर दस कपड़ों से काम चल सकता है तो ग्यारह पास में न रखना। अगर एक बार भोजन से काम चल सकता है तो दो बार भोजन न करना। ऐसा साधारण अर्थ है, लेकिन वह अर्थ केन्द्र से संबंधित न होकर केवल परिधि से संबंधित है। नहीं, महावीर का अर्थ गहरा है और दूसरा है। इसे थोड़ा गहरे में समझना पड़ेगा। वृत्ति-संक्षेप एक प्रक्रिया है। आपके भीतर प्रत्येक वृत्ति का केन्द्र है-जैसे, सेक्स का एक केन्द्र है, भूख का एक केन्द्र है, प्रेम का एक केन्द्र है. बद्धि का एक केन्द्र है। लेकिन साधारणतः हमारे सारे केन्द्र कंफ्यूज्ड हैं क्योंकि एक केन्द्र का काम दूसरे केन्द्र से हम लेते रहते हैं। दूसरे का तीसरे से लेते रहते हैं। काम भी नहीं हो पाता है, और केन्द्र की शक्ति भी व्यय और व्यर्थ नष्ट होती है। गुरजिएफ कहा करता था-गुरजिएफ ने वृत्ति-संक्षेप के प्रयोग को बहुत आधारभूत बनाया था अपनी साधना में। गुरजिएफ कहा करता था कि पहले तो तुम अपने प्रत्येक केन्द्र को स्पष्ट कर लो और प्रत्येक केन्द्र के काम को उसी को सौंप दो, दूसरे केन्द्र से काम मत लो। अब जैसे कामवासना है तो उसका अपना केन्द्र है प्रकृति में, लेकिन आप मन से उस केन्द्र का काम लेते हैं, सेरिब्रल हो जाता है सेक्स, मन में ही सोचते रहते हैं। कभी-कभी तो इतना सेरिब्रल हो जाता है कि वास्तविक कामवासना उतना रस नहीं देती, जितना कामवासना का चिंतन रस देता है। अब यह बहुत अजीब बात है। यह ऐसा हुआ है कि वास्तविक भोजन रस नहीं देता, जितना भोजन का चिन्तन रस देता है। यह ऐसे हुआ है कि पहाड़ पर जाने में उतना मजा नहीं आता जितना घर बैठकर पहाड़ पर जाने के संबंध में सोचने में, सपने देखने में मजा आता है। ___ और हम प्रत्येक केन्द्र को ट्रांसफर करते हैं, दूसरे केन्द्र पर सरका देते हैं। इससे खतरे होते हैं। दो खतरे होते हैं-एक खतरा तो यह होता है कि जिस केन्द्र का काम नहीं है, अगर उस पर हम कोई दूसरा काम डाल देते हैं तो वह उसे पूरी तरह तो कर नहीं सकता, वह उसका काम नहीं है। वह कभी नहीं कर सकता। इसलिए सदा अतृप्त बना रहेगा, तप्त कभी नहीं हो सकता है। कहीं बुद्धि से सोच-सोचकर भूख तृप्त हो सकती है? कहीं कामवासना का चिंतन कामवासना को तृप्त कर सकता है? कैसे करेगा, वह उस केन्द्र का काम ही नहीं है। वह तो ऐसा है जैसे कोई आदमी सिर के बल चलने की कोशिश करे। काम पैर का है, वह सिर से चलने की कोशिश करे। तो दोहरे दुष्परिणाम होंगे। जिस केन्द्र से आप दूसरे केन्द्र का काम ले रहे हैं, वह कर नहीं सकता है. एक। जो वह कर सकता था वह भी नहीं कर पाएगा। क्योंकि आप उसको ऐसे काम में लगा रहे हैं, उसकी शक्ति उसमें व्यय हो तो जो वह कर सकता था, नहीं कर पाएगा। और जिस केन्द्र से आपने काम छीन लिया है, उस पर शक्ति इकट्ठी होती रहेगी। वह धीरे-धीरे विक्षिप्त होने लगेगा, क्योंकि उससे आप काम नहीं ले रहे हैं। आप पूरे के पूरे कंफ्यूज्ड हो जाएंगे। आप का व्यक्तित्व एक उलझाव हो जाएगा, एक सुलझाव नहीं। गुरजिएफ कहता था-प्रत्येक केन्द्र को उसके काम पर सीमित कर दो। महावीर का वृत्ति-संक्षेप से यही अर्थ है। प्रत्येक वत्ति को उसके केन्द्र पर संक्षिप्त कर दो, उसके केन्द्र के आसपास मत फैलने दो, मत भटकने दो। तो व्यक्तित्व में एक सुगढ़ता आती है, स्पष्टता आती है और आप कुछ भी करने में समर्थ हो पाते हैं। अन्यथा हमारी सारी वृत्तियां करीब-करीब बुद्धि के आसपास इकट्ठी हो गयी हैं। तो बुद्धि जिस काम को कर सकती है वह नहीं कर पाती है, क्योंकि आप उससे दूसरे काम ले रहे हैं। और जो काम आप ले रहे हैं वह बद्धि कर नहीं सकती क्योंकि वह उसकी प्रकति के बाहर है, वह उसका काम नहीं है। इस दुनिया में जो इतनी बुद्धिहीनता है उसका कारण यह नहीं है कि इतने बुद्धिहीन आदमी पैदा होते हैं। इस दुनिया में जो इतनी स्टुपिडिटी दिखाई पड़ती है, इतनी जड़ता दिखाई पड़ती है, उसका यह कारण नहीं है कि इतने बुद्धि रिक्त लोग पैदा होते हैं, उसका कुल कारण इतना है कि बुद्धि 198 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340011
Book TitleMahavir Vani Lecture 11 Unodari evam Vrutti Sankshep
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size75 MB
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