________________ महावीर-वाणी भाग : 1 आप अगर पंखे के, चलते पंखे के ऊपर बैठ जाएं तो आप बीच के स्थान से गिरेंगे नहीं। क्योंकि गिरने में जितना समय लगता है, उतनी देर में दूसरी पंखुड़ी आपके नीचे आ जाएगी। तब...तब पंखा ठोस मालूम पड़ेगा, चलता हुआ मालूम नहीं पड़ेगा। __ अगर गति अधिक हो जाए तो चीजें ठहरी हुई मालूम पड़ती हैं। अधिक गति के कारण, ठहराव के कारण नहीं। जिस कुर्सी पर आप बैठे हैं, उसकी गति बहुत है। उसका एक-एक परमाणु उतनी ही गति से दौड़ रहा है अपने केन्द्र पर जितनी गति से सूर्य की किरण चलती हैं -- एक सैकंड में एक लाख छियासी हजार मील। इतनी तीव्र गति से चलने की वजह से आप गिर नहीं जाते कुर्सी से, नहीं तो आप कभी भी गिर जाएं। तीव्र गति आपको संभाले हुए है। फिर यह गति भी बहु-आयामी है, मल्टी-डायमैंशनल है। जिस कुर्सी पर आप बैठे हैं उसकी पहली गति तो यह है कि उसके परमाणु अपने भीतर घूम रहे हैं। हर परमाणु अपने न्यूक्लियस पर, अपने केन्द्र पर चक्कर काट रहा है। फिर कुर्सी जिस पृथ्वी पर रखी है, वह पृथ्वी अपनी कील पर घूम रही है। उसके घूमने की वजह से भी कुर्सी में दूसरी गति है। एक गति कुर्सी की आन्तरिक है कि उसके परमाणु घूम रहे हैं, दूसरी गति - पृथ्वी अपनी कील पर घूम रही है इसलिए कुर्सी भी पूरे समय पृथ्वी के साथ घूम रही है। तीसरी गति - पृथ्वी अपनी कील पर घूम रही है और साथ ही पूरे सूर्य के चारों ओर परिभ्रमण कर रही है; घूमते हुए अपनी कील पर सूर्य का चक्कर लगा रही है। वह तीसरी गति है। कुर्सी में वह गति भी काम कर रही है। चौथी गति - सूर्य अपनी कील पर घूम रहा है, और उसके साथ उसका पूरा सौर परिवार घूम रहा है। और पांचवी गति - सूर्य, वैज्ञानिक कहते हैं कि महासूर्य का चक्कर लगा रहा है। बड़ा चक्कर है वह, कोई बीस करोड़ वर्ष में एक चक्कर पूरा हो पाता है। तो वह पांचवीं गति कुर्सी भी कर रही है। और वैज्ञानिक कहते हैं कि छठवीं गति का भी हमें आभास मिलता है कि वह जिस महासूर्य का, यह हमारा सूर्य परिभ्रमण कर रहा है; वह महासूर्य भी ठहरा हुआ नहीं है। वह अपनी कील पर घूम रहा है। और सातवीं गति का भी वैज्ञानिक अनुमान करते हैं कि वह जिस और महासूर्य का, जो अपनी कील पर घूम रहा है, वह दूसरे सौर परिवारों से प्रतिक्षण दूर हट रहा है। कोई और महासूर्य या कोई महाशून्य सातवीं गति का इशारा करता है। वैज्ञानिक कहते हैं - ये सात गतियां पदार्थ की हैं। __ आदमी में एक आठवीं गति भी है, प्राण में, जीवन में एक आठवीं गति भी है। कुर्सी चल नहीं सकती, जीवन चल सकता है। आठवीं गति शरू हो जाती है। एक नौवीं गति, धर्म कहता है मनष्य में है और वह यह है कि आदमी चल भीतर जो ऊर्जा है वह नीचे की तरफ जा सकती है या ऊपर की तरफ जा सकती है। उस नौवीं गति से ही तप का संबंध है। आठ गतियों तक विज्ञान काम कर लेता है, उस नौवीं गति पर, दि नाइन्थ, वह जो परम गति है चेतना के ऊपर-नीचे जाने की, उस पर ही धर्म की सारी प्रक्रिया है। मनुष्य के भीतर जो ऊर्जा है, वह नीचे या ऊपर जा सकती है। जब आप कामवासना से भरे होते हैं तो वह ऊर्जा नीचे जाती है; जब आप आत्मा की खोज से भरे होते हैं तो वह ऊर्जा ऊपर की तरफ जाती है। जब आप जीवन से भरे होते हैं तो वह ऊर्जा भीतर की तरफ जाती है। और भीतर और ऊपर धर्म की दृष्टि में एक ही दिशा के नाम हैं। और जब आप मरण से भरते हैं, मृत्यु निकट आती है तो वह ऊर्जा बाहर जाती है। दस वर्षों पहले तक, केवल दस वर्षों पहले तक वैज्ञानिक इस बात के लिए राजी नहीं थे कि मृत्यु में कोई ऊर्जा मनुष्य के बाहर जाती है, लेकिन रूस के डेविडोविच किरलियान की फोटोग्राफी ने पूरी धारणा को बदल दिया है। किरलियान की बात मैंने आपसे पीछे की है। उस संबंध में जो एक बात आज काम की है और आपसे कहनी है। किरलियान ने जीवित व्यक्तियों के चित्र लिए हैं, तो उन चित्रों में शरीर के आसपास ऊर्जा का वर्तुल, इनर्जी फील्ड चित्रों में आता है। हायर सेंसिटिविटी फोटोग्राफी में, बहुत संवेदनशील फोटोग्राफी में आपके आसपास ऊर्जा का एक वर्तुल आता है। लेकिन अगर मरे आदमी 152 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org