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________________ तप : ऊर्जा-शरीर का अनुभव सम्मोहित कर दिया जाए, कोई तीस दिन लगेंगे, तीस सिटिंग लेने पड़ेंगे - तीस दिन पन्द्रह-पन्द्रह मिनट आपको बेहोश करके कहना पडेगा कि आपकी प्राण-ऊर्जा इस कागज में है। और जिस दिन हम इसको फाडेंगे, तम बिस्तर पर पड जाओगे, उठन सकोगे। तीसवें दिन आपको... होशपूर्वक आप बैठे, वह कागज फाड़ दिया जाए, आप वहीं गिर जाएंगे, लकवा खा गए। उठ नहीं सकेंगे। क्या हुआ? संकल्प गहन हो गया। संकल्प ही सत्य बन जाता है। यह हमारा संकल्प है जन्मों-जन्मों का कि यह शरीर में हैं। यह संकल्प, वैसे ही जैसे कागज मैं हूं या तोता मैं हूं। इसमें कोई फर्क नहीं है। यह एक ही बात है। इस संकल्प को तोड़े बिना तप की यात्रा नहीं होगी। इस संकल्प के साथ भोग की यात्रा होगी। यह संकल्प हमने किया ही इसलिए है कि हम भोग की यात्रा कर सकें। अगर यह संकल्प हम न करें तो भोग की यात्रा नहीं हो सकेगी। __ अगर मुझे यह पता हो कि यह शरीर मैं नहीं हूं तो इस हाथ में कुछ रस न रह गया कि इस हाथ से मैं किसी सुन्दर शरीर को छुळं। यह हाथ मैं हं ही नहीं। यह तो ऐसा ही हुआ जैसा एक डंडा हाथ में ले लें और उस डंडे से किसी का शरीर छुऊं, तो कोई मजा न आए। क्योंकि डंडे से क्या मतलब है? हाथ से छूना चाहिए। लेकिन तपस्वी का हाथ भी डंडे की भांति हो जाता है। जैसे वह संकल्प को खींच लेता है भीतर कि यह हाथ मैं नहीं है, हाथ डंडा हो गया। अब इस हाथ से किसी का सन्दर चेहरा छओ किन छुओ, यह डंडे से छूने जैसा होगा। इसका कोई मूल्य न रहा। इसका कोई अर्थ न रहा। भोग की सीमा गिरनी और टूटनी और सिकुड़नी शुरू हो जाएगी। ___ भोग का सूत्र है - यह शरीर मैं हूं। तप का सूत्र है - यह शरीर मैं नहीं हूं। लेकिन भोग का सूत्र पाजिटिव है - यह शरीर मैं हूं। और अगर तप का इतना ही सूत्र है कि यह शरीर मैं नहीं हूं तो तप हार जाएगा, भोग जीत जाएगा। क्योंकि तप का सूत्र निगेटिव है। तप का सूत्र नकारात्मक है कि यह मैं नहीं हूं। नकार में आप खड़े नहीं हो सकते। शून्य में खड़े नहीं हो सकते। खड़े होने के लिए जगह चाहिए पाजिटिव। जब आप कहते हैं - 'यह शरीर मैं हूं', तब कुछ पकड़ में आता है। जब आप कहते हैं - 'यह शरीर मैं नहीं हूं', तब कुछ पकड़ में आता नहीं। इसलिए तप का दूसरा सूत्र है कि मैं ऊर्जा-शरीर हूं। यह आधा हुआ, पहला हुआ कि यह शरीर मैं नहीं हूं, तत्काल दूसरा सूत्र इसके पीछे खड़ा होना चाहिए कि मैं ऊर्जा-शरीर हूं, इनर्जी बाडी हूं। प्राण-शरीर हूं। अगर यह दूसरा सूत्र खड़ा न हो तो आप सोचते रहेंगे कि यह शरीर मैं नहीं हूं और इसी शरीर में जीते रहेंगे। लोग रोज सुबह बैठकर कहते हैं कि यह शरीर मैं नहीं हूं, यह शरीर तो पदार्थ है। और दिनभर उनका व्यवहार, यही शरीर है। इतना काफी नहीं है। किसी पाजिटिव विल को, किसी विधायक संकल्प को नकारात्मक संकल्प से नहीं तोड़ा जा सकता। उससे भी ज्यादा विधायक संकल्प चाहिए। यह शरीर मैं नहीं हूं, यह ठीक है। लेकिन आधा ठीक है। मैं प्राण-शरीर हूं, इससे पूरा सत्य बनेगा। तो दो काम करें। इस शरीर से तादात्म्य छोड़ें और प्राण-ऊर्जा के शरीर से तादात्म्य स्थापित करें - बी आइडेंटिफाइड विद इट। मैं यह नहीं हूं और मैं यह हूं, और जोर पाजिटिव पर रहे। इम्फैसिस इस बात पर रहे कि मैं ऊर्जा-शरीर हूं। ऊर्जा-शरीर हूं, इस पर जोर रहे - तो मैं यह भौतिक शरीर नहीं हूं, यह उसका परिणाम मात्र होगा, छाया मात्रा होगा। अगर आपका जोर इस बात पर रहा कि यह शरीर मैं र मैं नहीं हूं तो गलती हो जाएगी। क्योंकि वह मैं जो शरीर हूं वह छाया नहीं बन सकता, वह मूल है। उसे मूल में रखना पड़ेगा। इसलिए मैंने आपको समझाया, क्योंकि समझाने में पहले यही समझाना जरूरी है कि यह शरीर मैं नहीं हूं। लेकिन जब आप संकल्प करें तो संकल्प पर जोर दूसरे सूत्र पर रहे, अर्थात दूसरा सूत्र संकल्प में पहला सूत्र रहे और पहला सूत्र संकल्प में दूसरा सूत्र रहे। जोर कि मैं ऊर्जा-शरीर हूं, इसलिए मैंने इतनी ऊर्जा शरीर की आपसे बात की कि ताकि आपके खयाल में आ जाए और यह भौतिक शरीर मैं नहीं हूं, यह तप की भूमिका है। कल से हम तप के अंगों पर चर्चा करेंगे। 165 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340009
Book TitleMahavir Vani Lecture 09 Tap Urja Sharir ka Anubhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size71 MB
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