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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 तो कोई दो सौ वैज्ञानिक पूरे यूरोप महाद्वीप से इकट्ठे थे, देखने को। सैकड़ों पक्षी गिराकर बताए गए। अब पक्षियों को समझाकर राजी नहीं किया जा सकता। न ही उस आदमी ने अपनी मर्जी के पक्षी गिराए। सड़क पर चलते हए वैज्ञानिकों ने कहा कि इस पक्षी को, तो उस पक्षी को गिरा दिया। जिन्दा कहा तो जिन्दा गिरा दिया, मुर्दा कहा तो मुर्दा गिरा दिया। _उस आदमी से पूछा जाता है और उसका जो प्रधान है साथ का, उससे पूछा जाता है कि क्या है राज? तो वह कहता है-हम कुछ नहीं करते। जैसा कि वैक्यूम क्लीनर होता है न आपके घर में, धूल को सक-अप कर लेता है, क्लीनर को आप चलाते हैं फर्श पर, धूल को वह भीतर खींच लेता है। क्लीनर खाली होता है और खींचने का रुख करता है-जैसे कि आप जोर से हवा को भीतर खींच लें, सक कर लें। जैसा कि बच्चा दूध पीता है मां के स्तन से-सक करता है, खींच लेता है। तो वह कहता है-हमने इस आदमी को इसी के लिए तैयार किया है कि उसकी प्राण ऊर्जा को सक कर ले, बस। वह पक्षी बैठा है, यह उस पर ध्यान करता है और प्राण-ऊर्जा को अपने भीतर खींचने का संकल्प करता है। अगर सिर्फ इतना ही संकल्प करता है कि इतनी प्राण ऊर्जा मेरे तक आए कि पक्षी बैठा न रह जाए, गिर जाए, तो पक्षी गिरता है। अगर यह पूरी प्राण-ऊर्जा को खींच लेता है तो पक्षी मर जाता है। इसके चित्र भी लिए गए कि जब वह सक-अप करता है, पक्षी से ऊर्जा के गुच्छे उस आदमी की तरफ भागते हुए चित्र में आए। ___ काफ्का का कहना है कि यह ऊर्जा हम इकट्ठी भी कर सकते हैं, और मरते हुए आदमी को जैसे आप आक्सीजन देते हैं, किसी न किसी दिन प्राण ऊर्जा भी दी जा सकेगी। जब तक आक्सीजन नहीं दे सकते थे, तब तक आदमी आक्सीजन की कमी से मर जाता था। काफ्का कहता है-बहुत जल्दी अस्पतालों में हम सिलिंडर रख देंगे, जिनमें प्राण-ऊर्जा भरी होगी और मरनेवाले आदमी को प्राण-ऊर्जा दे दी जाए। उसकी ऊर्जा बाहर निकल रही है, उसे दूसरी ऊर्जा दे दी जाए तो वह कुछ देर तक जीवित रह सकता है, ज्यादा देर भी जीवित रह सकता है। अमरीका का एक वैज्ञानिक था. जिसका मैंने कल आपसे थोडा उल्लेख किया. और वह आदमी था. विलेहम रेक। आपने कभी आकाश के पास या समुद्र के किनारे बैठकर आकाश में देखा हो तो आपको कुछ आकृतियां आंख में ऊंची-नीची उठती दिखाई पड़ती हैं। सोचते हैं कि आंख का भ्रम होगा और अब तक वैज्ञानिक समझते थे कि सिर्फ आंख का भ्रम है, एक डिल्यूज़न है। या यह सोचते थे कि आंख पर कुछ स्पाट होंगे विकृत, उनकी वजह से वह आकृतियां बाहर दिखाई पड़ती हैं। लेकिन विलेहम रैक की खोजों ने यह सिद्ध किया है कि वे आकृतियां प्राण-ऊर्जा की हैं। उन आकृतियों को अगर कोई पीना सीख जाए, तो वह महा-प्राणवान हो जाएगा और वे आकृतियां हमसे ही निकलकर हमारे चारों तरफ फैल जाती हैं। उसको उसने आर्गान इनर्जी कहा है, जीवन ऊर्जा कहा प्राण-योग, या प्राणायाम वस्तुतः मात्र वायु को भीतर ले जाने और बाहर ले जाने पर निर्भर नहीं है। गहरे में जो कि साधारणतः खयाल में नहीं आता कि एक आदमी प्राणायाम सीख रहा है तो वह सोचता है बस ब्रीदिंग की एक्सरसाइज है, वह सिर्फ वायु का कोई अभ्यास कर रहा है। लेकिन जो जानते हैं, और जाननेवाले निश्चित ही बहुत कम हैं, वे जानते हैं कि असली सवाल वायु को बाहर और भीतर ले जाने का नहीं है। असली सवाल वायु के मार्ग से वह जो आर्गान इनर्जी के गुच्छे चारों तरफ जीवन में फैले हुए हैं, उनको भीतर ले जाने का है। अगर वे भीतर जाते हैं तो ही प्राण-योग है, अन्यथा वायु-योग है, प्राण-योग नहीं है। प्राणायाम नहीं है, अगर वे गुच्छे भीतर नहीं जाते। वे गुच्छे भीतर जाते हैं तो ही प्राण-योग है। उन गुच्छों से आयी हुई शक्ति का उपयोग तप में किया जाता है। खुद की शक्ति का, चारों तरफ जीवन की शक्ति का, पौधों की शक्ति का, पदार्थों की शक्ति का प्रयोग किया जाता है। एक अनूठी बात आपको कहं। चकित होंगे आप जानकर कि काफ्का, किरलियान, विलेहम रेक और अनेक वैज्ञानिकों का अनुभव 162 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340009
Book TitleMahavir Vani Lecture 09 Tap Urja Sharir ka Anubhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size71 MB
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