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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 और की क्षमता के अनुकरण में चलने की कोशिश की तो आप अपने को रोज-रोज झंझट में पा सकते हैं। क्योंकि वह आपका मार्ग नहीं है, वह आपका द्वार नहीं है। __ इसलिए बहुत दुर्भाग्य जो जगत में घटा है, वह यह है कि अपने धर्म को जन्म से तय करते हैं। इससे बड़ी कोई दुर्भाग्य की घटना पृथ्वी पर नहीं है। क्योंकि इस कारण सिर्फ उपद्रव पैदा होता है, और कुछ भी नहीं होता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म सचेतन रूप से खोजना चाहिए। वह जीवन का जो परम लक्ष्य है, वह जन्म के होने से नहीं होता तय, वह आपको खोजना पड़ेगा। वह बड़ी मुश्किल से साफ होगा। लेकिन जिस दिन वह साफ हो जाएगा, उस दिन आपके लिए सब सुगम हो जाएगा। दुनिया से धर्म के नष्ट होने के बुनियादी कारणों में एक यह है कि हम धर्म को जन्म से जोड़े हैं। धर्म हमारी खोज नहीं है और इसलिए यह भी होता है कि महावीर के वक्त में महावीर का विचार जितने लोगों के जीवन में क्रांति ला पाया, फिर पच्चीस सौ साल में भी उतने लोगों की जिंदगी में नहीं ला पाया। इसका कुल कारण इतना है कि महावीर के पास जो लोग आते हैं वह उनकी कांशस च्वाइस है, वह जन्म नहीं है। महावीर के पास जो आएगा वह चुनकर आ रहा है। उसका बेटा जन्म से जैन हो जाएगा। वह खुद चुनकर आया था। उसका चुनाव था। उसके व्यक्तित्व और महावीर के व्यक्तित्व में कोई कशिश, कोई मैगनिटिज्म था, जिसने उसे खींचा था, वह उनके पास आ गया। लेकिन उसका बेटा? उसका बेटा सिर्फ पैदा होने से महावीर के पास जाएगा, वह कभी पास नहीं पहुंचेगा। इसलिए महावीर या बुद्ध या कृष्ण या क्राइस्ट, इनके जीवन के क्षणों में इनके पास जो लोग आते हैं, उनके जीवन में आमूल रूपांतरण हो जाता है। फिर यह दुबारा घटना नहीं घटती। और हर पीढ़ी धीरे-धीरे औपचारिक हो जाती है। धर्म और औपचारिक, फार्मल हो जाता है। क्योंकि हम इस घर में पैदा हुए हैं, इसलिए इस मंदिर में जाते हैं। घर और मंदिर का कोई संबंध है? मेरा व्यक्तित्व क्या है, मेरी दिशा, मेरा आयाम क्या है। कौनसा चुंबक मुझे खींच सकता है, या किस चुंबक से मेरे संबंध जुड़ सकते हैं, वह प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं खोजना चाहिए। ___ हम एक धार्मिक दुनिया बनाने में तभी सफल हो पाएंगे जब हम प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म चुनने की सहज स्वतंत्रता दे दें। अन्यथा दुनिया में धर्म न हो पाएगा। अधर्म होगा। और धार्मिक लोग औपचारिक होंगे और अधार्मिक वास्तविक होंगे। क्योंकि बड़े मजे की बात है। कोई आदमी कभी भी नास्तिकता को कांशसली चनता है, चनना पडता है। वह कहता है, 'नहीं है ईश्वर'. तो उसका चुनाव होता है। और जो आदमी कहता है, 'ईश्वर है', यह उसके बाप दादों का चुनाव है। इसलिए नास्तिक के सामने आस्तिक हार जाते हैं। उसका कारण है। क्योंकि आपका तो वह चुनाव ही नहीं है। आप आस्तिक हैं, पैदाइश। वह आदमी नास्तिक है, चुनाव से। उसकी नास्तिकता में एक बल, एक तेजी, एक गति, एक प्राण का स्वर होता है। आपकी आस्तिकता सिर्फ फार्मल है। हाथ में एक कागज का टुकड़ा है, जिस पर लिखा है, आप किस घर में पैदा हुए हैं। वही होता है। नास्तिक से हार जाता है आस्तिक, लेकिन ज्यादा दिन यह नहीं चलेगा। अब तक ऐसा हुआ था। अब नास्तिकता भी धर्म बन गयी है। ___ 1917 की रूसी क्रांति के बाद नास्तिकता भी धर्म है। इसलिए रूस में अब नास्तिक बिलकुल कमजोर हैं। रूस के नास्तिक पैदाइश से नास्तिक हैं। उसका बाप नास्तिक था इसलिए वह नास्तिक है। इसलिए अब नास्तिकता भी निर्बल, नपुंसक हो गयी है। उसमें भी वह बल नहीं रह जाएगा। निश्चित ही बल होता है, अपने चुनाव में। मैं अगर मरने के लिए भी गड्ढे में कूदने जाऊं, और वह मेरा चुनाव है, तो मेरी मृत्यु में भी जीवन की आभा होगी। और अगर मुझे स्वर्ग भी मिल जाए धक्के देकर, फार्मल, कोई मुझे पहुंचा दे स्वर्ग में, तो मैं उदास-उदास स्वर्ग की गलियों में भटकने लगूंगा। वह मेरे लिए नरक हो जाएगा। उससे मेरी आत्मा का कहीं तालमेल नहीं होनेवाला है। 124 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340007
Book TitleMahavir Vani Lecture 07 Sanyam ki Vidhayak Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size79 MB
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